फ़िराक़ गोरखपुरी की शायरी:
प्रमुख पूर्वाधुनिक शायरों में विख्यात, जिन्होंने आधुनिक उर्दू गज़ल के लिए राह बनाई/अपने गहरे आलोचनात्मक विचारों के लिए विख्यात/भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित
एक मुद्दत से तेरी याद भी आई न हमेंऔर हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैंतुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
कोई समझे तो एक बात कहूँइश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी होतुम को देखें कि तुम से बात करें
मौत का भी इलाज हो शायदज़िंदगी का कोई इलाज नहीं
हम से क्या हो सका मोहब्बत मेंख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
न कोई वादा न कोई यक़ीं न कोई उमीदमगर हमें तो तेरा इंतिज़ार करना था
अब तो उन की याद भी आती नहींकितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ
तेरे आने की क्या उमीद मगरकैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं
जो उन मासूम आँखों ने दिए थेवो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ