ख़्वाजा मीर दर्द की शायरी: सूफ़ी शायर, मीर तक़ी मीर के समकालीन। भारतीय संगीत के गहरे ज्ञान के लिए प्रसिध्द

ज़िंदगी है या कोई तूफ़ान है! हम तो इस जीने के हाथों मर चले

तर-दामनी पे शैख़ हमारी न जाइयो दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें

नहीं शिकवा मुझे कुछ बेवफ़ाई का तेरे हरगिज़ गिला तब हो अगर तू ने किसी से भी निभाई हो

है ग़लत गर गुमान में कुछ है तेरे सिवा भी जहान में कुछ है

जग में आ कर इधर उधर देखा तू ही आया नज़र जिधर देखा

मैं जाता हूँ दिल को तेरे पास छोड़  के मेरा याद तुझ को दिलाता रहेगा

कभी रोना कभी हँसना कभी हैरान हो जाना मोहब्बत क्या भले-चंगे को दीवाना बनाती है

जान से हो गए बदन ख़ाली जिस तरफ़ तू ने आँख भर देखा

हाल मुझ ग़म-ज़दा का जिस जिस ने जब सुना होगा रो दिया होगा

दोनों जहान की न रही फिर ख़बर उसे दो प्याले तेरी आँखों ने जिस को पिला दिए