वसीम बरेलवी की शायरी: वसीम बरेलवी एक प्रसिद्ध उर्दू शायर हैं जो बरेली (उप्र) के हैं। इनका जन्म ८ फ़रवरी १९४० को हुआ था। आजकल बरेली कालेज, बरेली (रुहेलखंड विश्वविद्यालय) में उर्दू विभाग में प्रोफ़ेसर हैं।

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे

आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है

दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता

वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता

तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा

रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगी देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है

तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है

शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ कीजिए मुझे क़ुबूल मेरे हर कमी के साथ

तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ हर शख़्स तुम्हारी ही तरफ़ देख रहा है

वो दिन गए कि मोहब्बत थी जान की बाज़ी किसी से अब कोई बिछड़े तो मर नहीं जाता