आखों पर ख़ूबसूरत शायरी
मैं डर रहा हूँ तुम्हारी नशीली आँखों से
कि लूट लें न किसी रोज़ कुछ पिला के मुझे
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जाम
आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं
'मीर' उन नीम-बाज़ आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
आँखों में जो बात हो गई है इक शरह-ए-हयात हो गई है
तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हाँ मुझी को ख़राब होना था
"यूँ ही गुजर जाती है शाम अंजुमन में, कुछ तेरी आँखों के बहाने कुछ तेरी बातो के बहाने..."
झील अच्छा, कँवल अच्छा के जाम अच्छा है, तेरी आँखों के लिए कौन सा नाम अच्छा है..
वो कहने लगी, नकाब में भी पहचान लेते हो हजारों के बीच? मैंने मुस्करा के कहा,
तेरी आँखों से ही शुरू हुआ था इश्क हज़ारों के बीच..
आपकी आँखें उठी तो दुआ बन गई, आपकी आँखें झुकी
तो अदा बन गई, झुक कर उठी तो हया बन गई, उठ कर झुकी
तो सदा बन गई..