बहुत सोचा बहुत समझा बहुत ही देर तक परखा, कि तन्हा हो के जी लेना मोहब्बत से तो बेहतर है।
अकेले रोना भी क्या खूब कारीगरी है, सवाल भी खुद के होते है और जवाब भी खुद के
स्टेशन जैसी हो गयी है ज़िन्दगी, जहां लोग तो बहुत है, पर अपना कोई नहीं।
अकेलेपन का भी अपना ही मज़ा है, जो न समझे इसे उसके लिए सजा है, अज़ीब सी तक़दीर लिखीं है मेरी खुदा ने, सफ़र ही सफ़र लिखा है हमसफ़र कोई नहीं।
एक चाहत होती है, जनाब अपनों के साथ जीने की, वरना पता तो हमें भी है कि, ऊपर अकेले ही जाना है।
तुम क्या जानो हम अपने आप, में कितने अकेले है,पूछो इन, रातो से जो रोज़ कहती है के, खुदा के लिए आज तो सो जाओ।
अकेलेपन का दर्द भी अजीब होता है, दर्द तो होता है लेकिन दर्द के आँसू आँखों से बाहर नहीं आते।
कभी कभी सच्चाई के रास्ते भी साथ नहीं देते है, जब हम अकेले सिर्फ अकेले होते है।
कितना अकेला हो जाता है वो शख्स, जिसे जानते तो बहुत लोग है, मगर समझते कोई नही
मुझको मेरे अकेलेपन से अब शिकायत नहीं है, मैं पत्थर हूँ मुझे खुद से भी मुहब्बत नहीं है।