उसके गोरे रंग पर वो नाजुक सा तिल, उफ्फ नजर की क्या बिसात की उसे लग जाये।
एक तिल का पहरा भी जरूरी है लबो के आसपास, डर है कहीं तेरी मुस्कुराहट को कोई नजर ना लगा दे।
खामोश रहकर भी तीखा सवाल करता हैं, उसके होठों का तिल बड़ा बवाल करता हैं।
बड़े फक्र से उसके आरिज से हो गुजरा वो तिल बेबाक, बड़ा मेरे दिल का इकलौता रकीब हो निकला वो तिल।
तेरे होठो के नीचे का काला तिल बड़ा बवाल करता है, तेरी मासूमियत पे छिपी तेरी शैतानियों पर सवाल करता है।
अब मैं समझा तेरे रुखसार पे तिल का मतलब, दौलत ऐ हुस्न पे दरबान बिठा रखा है।
तुम छुपा लो अपनी गर्दन जुल्फों से तो बात बन जाये, यूं उस पर पड़े तिल पे नजर ठनी तो इश्क तो होगा ही।
उसकी सूरत पर यूं तो कोई दाग नहीं, पर उसके गालों पे जो काला तिल है वही मेरा दिल है।
यही चेहरा यही आंखें यही रंगत निकले, जब कोई ख्वाब तराशूं तेरी सूरत निकले।
कातिल तिल ने किस सफाई से धोई है आस्तीं, उसको खबर नहीं की लहू बोलता भी हैं।
उड़ने लगती हैं पतंग मेरे दिल की, जब बात हो तेरे होठों के गुड और गालों के तिल की।