गुलजार द्वारा कही गई माँ पर शायरी

दवा अगर काम ना आए तो नजर भी उतारती है कि यह मां है साहब हार कहां मानती है

लोग चले जाते हैं जन्नत को पाने की खातिर बे खबरों को इतना बता दो कि माँ घर पर है

मांग लो यह दुआ की फिर यही जहां मिले फिर वही गोद मिले फिर वही माँ मिले

जिसके होने से मैं खुद को मुक्कम्मल मानता हूँ, में खुदा से पहले मेरी माँ को जानता हूँ।

माँ कर देती है पर गिनाती नहीं है, वो सह लेती है पर सुनाती नहीं है।

उसकी डांट में भी प्यार नजर आता है, माँ की याद में दुआ नजर आती है।

जब नींद नहीं आती, तब मां की लोरी याद आती है।

जो शिक्षा का ज्ञान दे उसे शिक्षक कहते है, और जो खुशियों का वरदान दे उसे मां कहते है।

हर झुला झूल के देखा पर, माँ के हाथ जैसा जादू कही नही देखा।

माँ खुद भूखी होती है,  मुझे खिलाती है, खुद दुःखी होती है, मुझे चेन  की नींद सुलाती है।