तुझ से कुछ मिलते ही वो बेबाक हो जाना मिरा और तिरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है
भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं इलाही तर्क-ए-उल्फ़त पर वो क्यूँकर याद आते हैं
देखो तो चश्म-ए-यार की जादू-निगाहियाँ बेहोश इक नज़र में हुई अंजुमन तमाम
अजब क्या जो है बद-गुमाँ सब से वाइज़ बुरा सुनते सुनते बुरा कहते कहते
बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी बादल जो नज़र आए बदली मेरी नीयत भी
तुम ने बाल अपने जो फूलों में बसा रक्खे हैं शौक़ को और भी दीवाना बना रक्खा है