तुझ से कुछ मिलते ही  वो बेबाक हो जाना मिरा और तिरा दाँतों में वो  उँगली दबाना याद है

भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं इलाही तर्क-ए-उल्फ़त पर वो क्यूँकर याद आते हैं  

देखो तो चश्म-ए-यार की जादू-निगाहियाँ बेहोश इक नज़र में हुई अंजुमन तमाम

अजब क्या जो है बद-गुमाँ सब से वाइज़ बुरा सुनते सुनते बुरा कहते कहते

याद हर हाल में रहे वो मुझे अल-ग़रज़ बात रह गई दिल की

निगाह-ए-यार जिसे आश्ना-ए-राज़ करे वो अपनी ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे क्यूँ न नाज़ करे 

शाम हो या कि सहर याद उन्हीं की रखनी दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना 

बरसात के आते ही  तौबा न रही बाक़ी बादल जो नज़र आए  बदली मेरी नीयत भी 

तुम ने बाल अपने जो फूलों में बसा रक्खे हैं शौक़ को और भी दीवाना बना रक्खा है