तुझे पलकों पर बिठाने को जी चाहता है, तेरी बाहों से लिपटने को जी चाहता है, खूबसूरती की इंतेहा है तू... तुझे ज़िन्दगी में बसाने को जी चाहता है।
क्या लिखूं तेरी तारीफ-ए-सूरत में यार, अलफ़ाज़ कम पड़ रहे हैं तेरी मासूमियत देखकर।
रुख से पर्दा हटा तो, हुस्न बेनकाब हो गया, उनसे मिली नज़र तो, दिल बेकरार हो गया।
मस्त नज़रों से देख लेना था अगर तमन्ना थी आज़माने की, हम तो बेहोश यूँ ही हो जाते क्या ज़रूरत थी मुस्कुराने की?
हुस्न वालों को संवरने की क्या जरूरत है, वो तो सादगी में भी क़यामत की अदा रखते हैं।
उसके हुस्न से मिली है मेरे इश्क को ये शौहरत, मुझे जानता ही कौन था तेरी आशिक़ी से पहले।
कुछ इस तरह से वो मुस्कुराते हैं, कि परेशान लोग उन्हें देख कर खुश हो जाते हैं, उनकी बातों का अजी क्या कहिये, अल्फ़ाज़ फूल बनकर होंठों से निकल आते हैं।
ये आईने ना दे सकेंगे तुझे तेरे हुस्न की खबर, कभी मेरी आँखों से आकर पूछो के कितनी हसीन हों तुम
क्या लिखूँ तेरी सूरत-ए-तारीफ मेँ, मेरे हमदम अल्फाज खत्म हो गये हैँ, तेरी अदाएँ देख-देख के
ये हुस्न, ये सावन, ये बारिश, ये हवाएं लगता है मुहब्बत ने आज किसी का साथ दिया है ख्वाहिश बन मेरे रूह की महका दे तू मुझे, खो जाऊ मैं तुझमे, अपना ले तू मुझे