मीना कुमारी की शायरी में दर्द है, तन्हाईयां हैं और नाराज़गी है...

दिन डूबे हैं या डूबे  बारात लिये क़श्ती साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता

बहते हुए आंसू ने आंखों से कहा थम कर जो मय से पिघल जाए  वो जाम नहीं होता

हंस हंस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकड़े  हर शख़्स की क़िस्मत में ईनाम नहीं होता

जब ज़ुल्फ़ की कालिख़ में घुल जाए कोई राही बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता

आगाज़ तॊ होता है अंजाम नहीं होता जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता

यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे

बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजा कर शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे

बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे  कोई तो पार उतरे  कोई तो पार गुज़रे

तू ने भी हम को देखा हमने भी तुझको देखा  तू दिल ही हार गुज़रा  हम जान हार गुज़रे