आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैंमेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहताकोई एहसास तो दरिया की अना का होताआप के बाद हर घड़ी हम नेआप के साथ ही गुज़ारी है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोईआइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं
वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैंहाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते है
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा थाकल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है
काई सी जम गई है आँखों पर
सारा मंज़र हरा सा रहता हैउठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर
चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोईजैसे एहसान उतारता है कोईआइना देख कर तसल्ली हुईहम को इस घर में जानता है कोई
सहर न आई कई बार नींद से जागेथी रात रात की ये ज़िंदगी गुज़ार चले
काई सी जम गई है आँखों पर
सारा मंज़र हरा सा रहता हैउठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर
चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते हैशाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है