Gulzar Shayari   दिल को सकून देने वाली  गुलज़ार की शायरी

वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी  नफरत भी तुम्हारी थी, हम अपनी वफ़ा का इंसाफ  किससे माँगते.. वो शहर भी तुम्हारा था  वो अदालत भी तुम्हारी थी.

बेशूमार मोहब्बत होगी  उस बारिश  की बूँद को इस ज़मीन से, यूँ ही नहीं कोई मोहब्बत मे  इतना गिर जाता है! 

तन्हाई अच्छी लगती है  सवाल तो बहुत करती पर,. जवाब के लिए ज़िद नहीं करती.. 

"खता उनकी भी नहीं यारो  वो भी क्या करते, बहुत चाहने वाले थे किस  किस से वफ़ा करते !" 

मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को  खुद से पहले सुला देता, हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है।

मोहब्बत आपनी जगह, नफरत अपनी जगह मुझे दोनो है तुमसे.

मुझसे तुम बस मोहब्बत  कर लिया करो, नखरे करने में वैसे भी  तुम्हारा कोई जवाब नहीं!

काँच के पीछे चाँद भी था और  काँच के ऊपर काई भी तीनों थे हम वो भी थे और  मैं भी था तन्हाई भी 

तजुर्बा कहता है रिश्तों  में फासला रखिए, ज्यादा नजदीकियां अक्सर  दर्द दे जाती है...