उसकी बातें उसकी आँखें उसकी ज़ुल्फ़ें क्या कहने उसकी इक सूरत में मुझको जन्नत सारी लगती है
कम से कम अपने बाल तो बाँध लिया करो। कमबख्त..बेवजह मौसम बदल दिया करते हैं।
इस रात की तारीकी पर कुछ तो असर आए चेहरे से हटा जुल्फ़ें के चाँद नज़र आए
इन घटाओ ने जोरदार बारिश लाई है, लगता है किसी ने फिर से जुल्फ़ें बिखराई है.
गुलों की तरह हम ने ज़िंदगी को इस कदर जाना किसी की ज़ुल्फ़ में इक रात सोना और बिखर जाना
माना हर खुशी सनम तेरी जुल्फों के साये में है, मगर वो मज़ा है कहाँ, जो दिल के लुट जाने में है .
चली आओ खिड़की पर जुल्फें संवारते हुए, ताकि शाम आज की कुछ तो हसीन बने.
तेरे जुल्फों के अंधियारे में अपना शहर भूल आया, मैं वही शख्स हूँ जो तेरे दिल में, अपना घर भूल आया.