फिराक गोरखपुरी"

साहित्यकार का जन्म और उसकी मृत्यु,उसके माता पिता,देश काल सबकुछ जैसे उसकी प्रतिबद्धता और संकल्प पर आधारित हो जाता है,कितना उत्तम चितेरा कितनी सुन्दर आकृति फलक पर उकेर सकता,कितना स्वयं की प्रस्तुति में आकर्षण उतपन्न कर सकता है यही अधिक सार्थक और उपयोगी हो सकता है इसी के साथ सब कुछ स्वयमेव ही अनुरूपता का आभास कराते दिखेगे । कौन कितना उर्जित है,कौन कितना उत्कृष्ट है,कौन इस समष्टि की सृष्टि से कितना और किस तरह का ग्राह्य कर सकता है,उसकी इस क्रियाशीलतामें सामाजिक अनुबंधन कितना आकर्षक बनता है अपने आप में गर्वित करने वाला पल होता है ।

Nov 20, 2023 - 16:16
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फिराक गोरखपुरी"
Firaq Gorakhpuri

 साहित्य सृजन का गह्वर बहुत ही गहन गहरे घनत्व से घिरा होता है,अतीत की विरासत और भविष्य का सत्यं शिवं सुन्दरं स्वरूप सहेजना होता है,दायित्व का अंतर्मुखी बोध समाज में सहेजना होता है,समाज का वह चितेरा जिसके नैतिक कंधों पर सुसंस्कृत समाज की समरसता का उत्तरदायित्व होता है, कैसे और किस तरह उसकी गरिमा अनवरत अपने यथार्थ स्वरूप में लोगों तक पहुंच सके इसका विशेष ध्यान रखना होता है,वह दृष्टि जो दृश्य को दिगदिगंत कर सके,जिसके विसारदीय स्मरण लोक हितों की अनदेखी नहीं कर सके,समाज के विभिन्न परिवेश को स्वयं में समाहित करके उसे नये परिवेश में लोगों तक ले जाए तो जैसे उसकी मुमुक्षता स्वयमेव शिखरत्व प्राप्त कर लेती है।

साहित्यकार का जन्म और उसकी मृत्यु,उसके माता पिता,देश काल सबकुछ जैसे उसकी प्रतिबद्धता और संकल्प पर आधारित हो जाता है,कितना उत्तम चितेरा कितनी सुन्दर आकृति फलक पर उकेर सकता,कितना स्वयं की प्रस्तुति में आकर्षण उतपन्न कर सकता है यही अधिक सार्थक और उपयोगी हो सकता है इसी के साथ सब कुछ स्वयमेव ही अनुरूपता का आभास कराते दिखेगे ।
कौन कितना उर्जित है,कौन कितना उत्कृष्ट है,कौन इस समष्टि की सृष्टि से कितना और किस तरह का ग्राह्य कर सकता है,उसकी इस क्रियाशीलतामें सामाजिक अनुबंधन कितना आकर्षक बनता है अपने आप में गर्वित करने वाला पल होता है ।

गरीबी अमीरी,साधन युक्त और साधन हीन इस तन मन को कौन कितना संयमित और सुव्यवस्थित कर सकता है अनुपमेय हो सकता है,यही ग्राह्यता उसे समाज के शीर्ष पर स्थापित भी करती है,बचपन से ही बच्चे के पालक उसके भविष्य की भविष्यवाणियाँ करने लगते है,उसके आचार विचार व्यवहार से लोग बरबस ही प्रभावित होने लगते हैं,लोगों की दुवाएं उसके मार्ग प्रशस्त करने लगती है ।ऐसे कई त्याग तपस्वी और स्वार्थ रहित मनीषियों ने मां भारती के आँचल को धानी धानी किया है ।

भाषाएं ज्ञान को अपरमित विस्तार देती है,और अध्ययन उसे समदर्शी और मानवानुकूल बनाती है,असीमित आकाश की गहनता को भेदने के लिए ग्यान चक्षु को पंख देने की आवश्यकता होती है, साहित्य और साहित्यकार अन्योन्याश्रित संबंध है,एक दूजे के अभाव में पूर्णता की कल्पना अधूरी ही रहती है,हमारे साहित्यिक जगत का एक दैदीप्यमान नक्षत्र जो आज भी अपनी गरिमामयी भंगिमा के साथ स्वयं के विश्वास को निरन्तर कसौटी पर कसता रहता है,उसका बहुत ही प्यारा सा नाम रघुपति सहाय था, गरीबी और अभावों से संघर्ष करता हुआ अपने लक्ष्य तक पहुँचने में निर्भयता के साथ अडिगता के साथ प्रगति पथ पर अग्रसर होता रहा,भाषा को उसने भावों की भंगिमा बना लिया,चाहे अनचाहे वाणी जैसे कोई मंत्रोच्चार करने लगती है,भावों को संजोना नहीं पड़ता वरन भाव स्वयमेव उसकी वाणी से धारा प्रवाह के साथ निःसृत होने लगते है ।

गजलों का सजल गज़लकार फिराक गोरखपुरी,साहित्य की दुनियां का बे ताज बादशाह,शिक्षा से सुसज्जित एक अप्रतिम शिक्षक जिसने हजारों लाखो विद्यार्थियों को अपने विद्या दान से राष्ट्र के शिक्षार्थियों को शीर्ष  पर स्थापित करने का कर्तव्य निभाया है ।
किसी की क्या मजाल कि कोई उस फिराक को भूलने की गलती करे । 

स्वतंत्रता संग्राम का सेनानी,जिसने भारतीय आजादी की लडाई में,महात्मा गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन का हिस्सा बना और डेढ साल की राजनैतिक कैद मिली,आइ,सी,एस में चुने जाने के पश्चात भी राष्ट्रीय सम्मान के हित में अपना त्याग पत्र दे दिया,जेल से छूट कर बाहर निकले तो अखिल भारतीय कांग्रेस के कार्यालय में अवर सचिव पद पर नियुक्त कर दिया लेकिन यह सब कुछ उनका मुकाम नहीं था वरन उनकी यात्रा के छोटे छोटे पड़ाव थे,1930ई मेंउन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर के तौर पर अपनी नियुक्ति को स्वीकार किया,यहीं से उर्दू साहित्य के सबसे बड़े भागीदार बनकर उसकी रूमानियत,शास्त्रीयता और रहस्य को अपनी तरह से सामाजिक दुख दर्द को व्यक्तिगत अनुभूति के साथ अपनी गजलों का हिस्सा बनाया,अपने दैनिक जीवन की अनुभूति को सार्वभौम बना दिया।

जो जिया उसे वर्तमान और भविष्य के लिये संजोया और संवारा,भारतीय संस्कृति में लोकभाषा के साथ प्रतीकों को जोडकर फिराक ने अपनी शायरी का प्रासाद निर्मित किया,भारतीय संस्कृति की इतनी गहरी पैठ और समझ ने ही इनकी शायरी में भारतीय जीवन शैली की बारीकियों को बेहद गंभीरता से उकेरा कि वह भारतीयता का जीवंत प्राण बन गयी ।

1970ई में फिराक द्वारा रचित "गुले नग्मा"को ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुन लिया गया,यह अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार फिराक के लिए उनकी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का मेरु बन गया ।एक ऐसा महान व्यक्तित्व जिसने अपने जीवन के चतुर्दिक आयाम को असामान्य बना दिया ।इन्हें सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया,साहित्य एकेडमी सम्मान से भी फिराक जी सम्मानित हुए,1968ई में पद्म भूषण सम्मान से भी भारत सरकार ने सम्मानित किया।इनकी रचनाओं में,स्वयं को कनक जैसा तपने की

आवश्यकता होती है,आप जितने प्रखर और शिखरत्व के विन्दु को स्पर्श करेंगे उतना ही उसे सम्मान और अधिकार मिलेगा ।
"खुदी को कर बलन्द इतना कि हर शमशीर से पहले ।
खुदा बन्दे से यह पूछें बता बता तेरी रजा क्या है ।

ऐसे शायरों को रचने वाले फिराक गजल के और भारतीयता के सचमुच साहित्यिक साहित्यकार थे ।
उनकी रचनाएं:
1:गजलिस्तान 
2: शेरिस्तान 
3: नग्म-ए-साज 
4: धरती की करवट 
5: रूप 
6: जुगनू 
7: रम्ज व कायनात 
8: तरान-ए-इश्क 
9: परछाइयां 
10: हजार दास्तान 
11: अंधी रात 
आदि रचनाओं से फिराक साहब हिन्दी उर्दू अरबी फारसी और अंग्रेजी भाषा के मूर्धन्य भाषा विज्ञ्य बन गये ।

29 जून 1914को उनका वैवाहिक जीवन प्रसिद्ध जमींदार विन्देश्वरी प्रसाद की बेटी किशोरी देवी से हुआ,कला स्नातक में पूरे प्रदेश में चौथे स्थान पर आने से उनका कद बढ गया था,उनका जन्म 28=08=1896ई गोरखपुर उत्तर प्रदेश में हुआ थ ।उनकी मृत्यु दिनांक 03=03=1982 को नयी  दिल्ली में हुआ ।कविता,उर्दू शायरी,और साहित्यिक आलोचक के रूप में साहित्य की सेवा की ।फिराक ने अपने साहित्यिक जीवन का आरम्भ गजल से ही किया था,अपने परम्परागत भाव बोध और शब्द भण्डार के उपयोग पर इन्होंने उर्दू साहित्य की अपनी रचनाओं में एक अलग पहचान और मुकाम दिया ।अपने साहित्यिक रचनाओं के बल पर भारतीय शैली को उच्चतम विन्दु प्रदान किया ।रघुपति सहाय से फिराक गोरखपुरी की साहित्यिक यात्रा बहुत ही प्रभावशाली और रचनात्मक रही ।

कृपाशंकर मिश्र मुम्बई महाराष्ट्र 

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