भारतीय साहित्य और संत परंपरा

वेदों की संख्‍या 4 है – ऋग्‍वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद। इन वेदों के 4 उपवेद भी हैं। मुख्‍य ब्राह्मणग्रंथ 5 हैं। उपनिषदों की कुल संख्‍या 108 हैं और इनमें से मुख्‍य 12 माने जाते हैं। आप सोचिए कि जब सृष्टि ने अपना कार्य प्रारंभ भी नहीं किया था, तब से इस देश में ज्ञान के सोते बहने शुरू हो गए थे! हमारे देश के संतों ने आत्‍मसाक्षात्‍कार तो किया ही और लोक मंगल-कामना से समाज को अपना मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए उन्‍होंने साहित्‍य का ही सहारा लिया। हमारे देश महान संतों, ऋषियों, तपस्‍वी, साधुओं की एक अनादि एवं महान परंपरा का वाहक रहा है।

Jun 21, 2024 - 12:44
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भारतीय साहित्य और संत परंपरा
Indian literature and saint tradition

भारतभूमि संतों की भूमि है। लोकहित की कामना को लेकर किया गया रचनाकर्म ‘साहित्‍य’ कहलाया। इस अर्थ में हमारे वेद विश्‍व के सर्वाधिक प्राचीन एवं सर्वप्रथम साहित्‍य हैं, यह निर्विवाद सत्‍य है। वेद ‘अपौरूषेय’ है, अर्थात् वेदों की रचना किसी मनुष्‍य द्वारा नहीं की गई, फिर भी हमारे वेदों में कई ऋषियों के नाम आते हैं और किन्‍हीं-किन्‍हीं मंत्रों में ऋषि माताओं के नाम भी आते हैं। इससे यह भी सिद्ध होता है कि यह जो असत्‍य विमर्श गढ़ा जाता है कि वेद अध्‍ययन का अधिकार माताओं और बहनों को नहीं था, यह कपोलकल्पित है और हमारे धर्म को नीचा दिखाने की दृष्टि से कहा जाता है। यह प्रश्‍न यह उठता है कि अगर वेद अपौरूषेय हैं, तो फिर स्‍थान-स्‍थान पर ऋषियों के नाम क्‍यों आते हैं। इसका करण यह है कि वेद तो परब्रह्म परमेश्‍वर के द्वारा नि:श्‍वास की तरह ही नि:सृत हुए थे तथा उक्‍त ऋषि इन मंत्रों के रचयिता नहीं, अपितु दृष्‍टा थे अर्थात् इन ऋषियों को वेदमंत्रों का साक्षात्‍कार हुआ था – ‘‘ऋषयो मंत्रदृष्‍टार:’’। देखा जाए तो हम जो कुछ भी रचते हैं, वह हमारा भी कहॉं होता है! यह कोई लेखक ही आसानी से समझ सकता है कि उसकी रचना में स्‍वयं का कुछ भी नहीं होता, वह तो कोई परम् दैवीय शक्ति ही हमसे लिखवाती है (हालॉंकि यह भी उतना ही सत्‍य है कि आजकल आसुरी शक्तियॉं भी लोगों से बहुत कुछ लिखवाने लगी हैं, मगर वह विषय दीगर है)। वेदों के परमात्‍मा के मुख से निकलने के विषय में वेदपण्डित सायण आचार्य कहते हैं कि ‘‘यस्‍य नि:श्‍वसितं वेदा यो वेदेभ्‍योऽखिलंजगत्।’’ वहीं जर्मनी के वेद विद्वान प्रो. मैक्‍समूलर कहते हैं कि ‘‘विश्‍व के प्राचनीतम वांग्‍मय वेद ही हैं, जो दैविक एवं अध्‍यात्मिक विचारों को काव्‍यमय भाषा में अद्भुत रीति से प्रकट करने वाला कल्‍याणप्रदायक है।’’ महाभारत के शांतिपर्व (232/24) में भी यह उल्‍लेख आया है कि ‘‘अनादिनिधना विद्या वागुत्‍सृष्‍टा स्‍वयंभुवा’’ अर्थात् ‘‘जिसमें से सम्‍पूर्ण जगत उत्‍पन्‍न हुआ, ऐसी अनादि वेद विद्यारूप वाणी का निर्माण जगत के निर्माता (ईश्‍वर) ने सर्वप्रथम किया।’’
वेदों की संख्‍या 4 है – ऋग्‍वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद। इन वेदों के 4 उपवेद भी हैं। मुख्‍य ब्राह्मणग्रंथ 5 हैं। उपनिषदों की कुल संख्‍या 108 हैं और इनमें से मुख्‍य 12 माने जाते हैं। आप सोचिए कि जब सृष्टि ने अपना कार्य प्रारंभ भी नहीं किया था, तब से इस देश में ज्ञान के सोते बहने शुरू हो गए थे! हमारे देश के संतों ने आत्‍मसाक्षात्‍कार तो किया ही और लोक मंगल-कामना से समाज को अपना मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए उन्‍होंने साहित्‍य का ही सहारा लिया। हमारे देश महान संतों, ऋषियों, तपस्‍वी, साधुओं की एक अनादि एवं महान परंपरा का वाहक रहा है। मध्‍यकाल में जहॉं मुख्‍य रूप से महाकवि तुलसीदास जी, नानक देव जी, गुरू गोविंद सिंह जी, महात्‍मा बुद्ध, मीराबाई, सूरदास, संत ज्ञानेश्‍वर, संत एकनाथ, संत नामदेव, संत तुकाराम, समर्थ रामदास, कबीरदास जी, संत रैदास, संत तिरुवल्‍लुवर, संत रामानुज आदि हुए, वहीं आधुनिक युग में मुख्‍यत: महर्षि अरविंद, स्‍वामी विवेकानंद, आचार्य रजनीश, महिर्ष योगी आदि की एक विस्‍तृत श्रृंखला है। यह सूची अत्‍यंत ही छोटी है, क्‍योंकि भारत-भूमि के प्रत्‍येक कोस पर किसी-न-किसी संत का प्रादुर्भाव अवश्‍य ही हुआ है और उन्‍होंने अपने-अपने स्‍तर पर समाज को साहित्‍य के रूप में भी बहुत कुछ दिया भी है। सभी का नाम लिख पाना संभव नहीं है। आप सोचिए कि ऊपर बताए गए साहित्‍य ग्रंथों के अलावा जिनके नाम दिए गए हैं, उन्‍होंने ही कितना साहित्‍य रचा होगा और जिनके नाम स्‍थानाभाव में छूट गए हैं, उनकी तो कल्‍पना करना ही बड़ा दुष्‍कर कार्य है!
एक राष्‍ट्र के रूप में देश को सदैव ही मार्गदर्शन की आवश्‍यकता होती है और वही देश सच्‍चे अर्थों में उन्‍नति कर सकता है, जो धर्मानुसार अपना राज्‍य चलाता है। इसी संत परंपरा का अध्‍यात्मिक प्रताप है कि भारत ने कभी भी किसी की भूमि हड़पने के लिए किसी पर आक्रमण नहीं किया। हम सच्‍चे अर्थों में मानवतावादी हैं। हम भारतीय ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ की कामना करने का भाव रखने वाले लोग हैं। हमसे से कितने ही लोगों ने हमारा सनातनी/भारतीय साहित्‍य नहीं पढ़ा होगा या अत्‍यल्‍प पढ़ा होगा, मगर फिर भी किसी-न-किसी संक्षिप्‍त रूप में ही सही, हमने उसे पढ़ा, देखा या सुना तो अवश्‍य ही है, इसलिए हमारा सनातनी भाव हममें संस्‍कारों के रूप में सदैव विद्यमान है।
दुर्भाग्‍य से आज किन्‍हीं कारणों से हम अपने धार्मिक ग्रंथों या कहना चाहिए साहित्‍य के प्रति सचेत होने के बजाय उपेक्षा का भाव बनाए हुए हैं। बड़े ही दु:ख की बात है कि आज किसी से यदि 4 वेदों के नाम भी पूछ लिए जाते हैं तो वे बगलें झॉंकने लगते हैं! आजकल लोगों के घर में ‘हैरीपॉटर’ या ‘स्‍पाइडर मैन’ की सीरीज़ तो मिल जाएगी, मगर ‘रामचरितमानस’, वेद-वेदांत या उपनिषद की कोई किताब नहीं पाई जाती। यह तो नहीं कहा जा सकता कि हैरीपॉटर या स्‍पाइडर मैन ख़राब हैं, वे मनोरंजन की दृष्टि से अच्‍छी हो सकती हैं, मगर उससे हमारी पीढ़ी को आत्‍मज्ञान या जीवनदर्शन तो नहीं मिल सकता, ये तय है। हमारे देश में ही इतना उत्‍कृष्‍ट एवं विपुल साहित्‍य रचा गया है कि उसमें से भी मुख्‍य-मुख्‍य पढ़ने के लिए भी आपको यह जीवन बहुत कम पड़ जाएगा। सुविधा की बात करें तो आजकल बाज़ार में वेदभाष्‍य भी उपलब्‍ध हैं, मगर यह भी ध्‍यान रखना अत्‍यंत आवश्‍यक है कि वे पूर्णत: प्रामाणिक हों। वैसे आर्ष साहित्‍य के रूप में आपको वेद, धर्म, अध्‍यात्‍म, लोक साहित्‍य से संबंधित प्रामाणिक जानकारी मिल सकती है।

शुभम् भवतु।

दुर्गेश कुमार ‘शाद’

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