अरे, ओ फागुन
युगों -युगों से भीगी नहीं बसंती चोली रही सदा ही सूनी -सूनी मेरी होली
अब की बार अरे ओ फागुन !
मन का आँगन रंग -रंग कर जाना
युगों -युगों से भीगी नहीं बसंती चोली
रही सदा ही सूनी -सूनी मेरी होली
पुलकन -सिहरन अंग -अंग भर जाना।
अजब हवा है , मन के मौसम बहक रहे हैं
दावानल - सम अधर पलाशी दहक रहे हैं
बरसा कर रति-- रंग , दंग कर जाना।
बरसों बाद प्रवासी प्रियतम , घर आयेंगे
मेरे बिरही नैन लजाते सकुचाएंगे
तू पलकों में मिलन -भंग भर जाना।
अब की बार अरे ओ फागुन
मन का आँगन रंग -रंग कर जाना
कृष्णा कुमारी
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