कुमार विश्वास

कुमार विश्वास भारतीय प्रसिद्ध कवियों में से एक है कुमार विश्वास वास्तविक रूप से हिंदी साहित्य के एक महान तथा  महत्वपूर्ण  और  प्रेरणादायक व्यक्ति हैं। जीनकी कविताओं में आम आदमियों की आवाजे  सुनने  मिलती है।वोह एक वरिस्त्र कवि है जो की अपनी भावनाएं एवं आम जनता की आवाज कागज पर उतार देते है वह भारत के युवाओं के बीच एक आइकन बन गए हैं।

Jun 10, 2024 - 17:12
Jun 15, 2024 - 18:42
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कुमार विश्वास
Kumar Vishwas

कुमार विश्वास भारतीय प्रसिद्ध कवियों में से एक है कुमार विश्वास वास्तविक रूप से हिंदी साहित्य के एक महान तथा  महत्वपूर्ण  और  प्रेरणादायक व्यक्ति हैं। जीनकी कविताओं में आम आदमियों की आवाजे  सुनने  मिलती है।वोह एक वरिस्त्र कवि है जो की अपनी भावनाएं एवं आम जनता की आवाज कागज पर उतार देते है वह भारत के युवाओं के बीच एक आइकन बन गए हैं। कुमार विश्वास जब मंच पर खड़े होकर कविता की पंक्तियां बोलते हैं तो लोग उनके फैन बन जाते हैं। वहीं जब राजनीतिक मंच से अपने विरोधियों पर कवि लहजे में तंज कसते हैं उनके बयान सुर्खियां बन जाती है । युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता इस तरह से देखी जा सकती है कि लाखों लोग उनके वीडियो ऑनलाइन देखते हैं, और उनके शो में भी शामिल होते हैं। इस लेखन में हम आज कुमार विश्वास के बारे में और गहराई से जानेंगे । 

•  कुमार विश्वास प्रारंभिक जीवन
कुमार विश्वास का  जन्म 10 फरवरी 1970 को उत्तर प्रदेश के पिलखुवा शहर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम विश्वास कुमार शर्मा है , उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा लाला गंगा सहाय स्कूल से की।  वह राजपूताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज गए और बाद में मोतीलाल नेहरू क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज में शामिल हो गए। उन्होंने इंजीनियरिंग छोड़ दी क्योंकि उनकी इसमें कोई रुचि नहीं थी और फिर उन्होंने हिंदी साहित्य को चुना, जिसमें उन्होंने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 

ऐसा कहा जाता है कि जब वह अपनी पीएच.डी. कर रहे थे । अपनी जाति से अलग पहचान बनाए रखने के लिए उन्होंने अपना नाम विश्वास कुमार शर्मा से बदलकर कुमार विश्वास रख लिया। वह 1994 में इंद्रा गांधी पीजी कॉलेज 'पीलीबंगा' राजस्थान में अध्यापक  बने और लाला लाजपत राय कॉलेज से उन्होंने  हिंदी साहित्य में  भी पढ़ाया। उन्होंने पीएच डी करने के बाद डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की ।एक स्वयंसेवक कार्यकर्ता के रूप में, वह 2012 में आम आदमी पार्टी में शामिल हुए। 

कुमार विश्वास पारिवारिक जीवन 
कुमार विश्वास के पिता का नाम  चंद्रपाल शर्मा और माता रमा शर्मा थीं। उनके पिता पिलखुवा में आरएसएस डिग्री कॉलेज में लेक्चरर थे और उनकी मां एक गृहिणी थीं। उनके चार भाई और एक बहन हैं। उनमें कुमार विश्वास सबसे छोटे हैं.

कुमार विश्वास लव स्टोरी और प्रेमिका का नाम 
जब वह  इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ कर   राजस्थान के एक कॉलेज में हिंदी के टीचर रुप में अपने करियर की शुरुआत कर रहे थे । तब इसी दौरान कुमार विश्वास  मंजू शर्मा  जी से मिले । उस समय मंजू शर्मा भी उसी कॉलेज में टीचर थीं। दोनों के बीच धीरे-धीरे दोस्ती हो गई और यह दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई।  

कुमार विश्वास  उस वक्त  मंजू शर्मा  के लिए काफी खूबशूरत कविताएं लिखा करते थे । वह श्रृंगार  से जुड़ी कविता लिखते थे। मंजू शर्मा कुमार विश्व की  कविताओं से काफी प्रभावित थी। मंजु शर्मा अजमेर की थी उनका घर अजमेर में था, इस परिस्थिति में कुमार विश्वास उनसे मिलने के लिए अजमेर पहुँच जाया करते थे। 

कई साल तक एक-दूसरे के साथ  रिलेशनशिप में रहने के बाद  , कुमार विश्वास तथा मंजू शर्मा ने शादी करने का फैसला बना लिया । उस वक्त  कुमार विश्वास जानते थे कि दोनो की  जाति अलग होने के कारण , परिवार के लोग उनके रिश्ते में हामी नहीं देंगे। इस स्तिथि में कुमार विश्वास अपने मित्रों की मदद से शादी  पहले  तो कोर्ट में और फिर मंदिर में जाकर कर ली  । तब जब घर वालों को पता चला तो दोनों ही परिवार  ने इस शादी का विरोध किया । उनके परिवार वालो  ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया। ऐसे में कुमार विश्वास और मंजू शर्मा को किराए के  घर में  रहना पड़ा था।

विश्वास के फैसले से उनके पिता  चंद्रपाल शर्मा बहुत नाराज थे, परंतु उनके भाई और बहन लगातार उनके पिता को  समझाते रहे। और आखिर में प्यार की जीत हुई ,  दो साल बाद उनके पिता चंद्रपाल शर्मा ने उनके  रिश्ते को हामी दे दी और इस तरह  विश्वास और उनकी अर्धांगिनी को घर में लिया गया । कुछ वर्ष बाद मंजू ने एक बेटी को जन्म दिया तो चीजों में और जादा सुधार आया और मंजू को के  परिवार ने भी कुमार विश्वास को दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया।

कुमार विश्व  कवि और टेलीविजन व्यक्तित्व
उन्हें आज तक चैनल के कॉमेडी कार्यक्रम केवी सम्मेलन की मेजबानी के लिए भी जाना जाता है। कार्यक्रम का प्रीमियर 29 सितंबर 2018 को किया गया था। वह रेगुलर अपनी  प्रस्तुतियाँ देते हैं जिसमें वह अपनी कविता और हिंदी, उर्दू और संस्कृत साहित्य के प्रति प्रेम प्रदर्शित करते हैं

कुमार विश्वास को हिंदी, संस्कृत और उर्दू की व्यापक समझ है और वह सामाजिक समारोहों में अपनी उपस्थिति के लिए जाने जाते हैं।

उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, दुबई, ओमान, सिंगापुर और जापान जैसे विदेशों में कविता पाठ और समारोहों में भी भाग लिया। 

वह इंडियन आइडल टेलीविजन शो में अतिथि न्यायाधीश और ज़ी टीवी के टैलेंट हंट शो सारेगामापा लिटिल चैंप्स में अतिथि भी थे। 

कुमार विश्वास ने 2018 की हिंदी फिल्म परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरण और वीर भगत सिंह के लिए भी दे दे जगह गाना लिखा। 

1 जुलाई 2017 को, वह राहत इंदौरी और शबीनाजी के साथ द कपिल शर्मा शो के एपिसोड में अतिथि थे। 

21 सितंबर 2019 को, वह मनोज बाजपेयी और पंकज त्रिपाठी के साथ द कपिल शर्मा शो के एपिसोड में फिर से अतिथि थे।

तर्पण नामक एक संगीतमय काव्य श्रृंखला भी उनके द्वारा प्रस्तुत की गई थी जहाँ उन्होंने पृष्ठभूमि संगीत के विरुद्ध प्रसिद्ध ऐतिहासिक कवियों की कविताओं का पाठ किया था।

कुमार विश्वास राजनीति जीवन
2005 से वह अरविंद केजरीवाल को जानते हैं। वह अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन में शामिल हुए। वह 2012 में भारतीय राजनीतिक संगठन आम आदमी पार्टी (आप) के लिए स्वयंसेवक बने। वह संगठन की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य भी थे।

उन्होंने 2014 का लोकसभा चुनाव आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में अमेठी से लड़ा, लेकिन वह राहुल गांधी से हार गए और केवल 25000 वोट हासिल किए। वह सोशल मीडिया पर अपने विचारोत्तेजक "ट्वीट्स" के लिए भी प्रसिद्ध हैं। 

•  डॉक्टर कुमार विश्वास को मिले पुरस्कार 
विश्वास को 1994 में आवाम पुरुस्कार समिति ने उन्हें 'काव्य कुमार' पुरस्कार दिया है 

वर्ष 2004 में विश्वास को उन्नाव में साहित्य भारती ने उन्हें 'डॉ सुमन आलंकर्ण' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था ।

वर्ष 2006 में कुमार विश्वास को  हिंदी-उर्दू पुरस्कार समिति ने उन्हें 'साहित्य श्री' पुरस्कार भी दिया गया था ।  

वर्ष 2010 में बंदायू में डॉ उर्मिलेश जन चेतना समिति ने उन्हें 'डॉ उर्मिलेश गीत श्री' सम्मान दिया था

अमेरिका के  कैलिफ़ोर्निया लेजिस्लेचर असेंबली ने कुमार विश्वास को 'सर्टिफ़िकेट ऑफ़ रिकग्निशन' से सम्मानित किया  गया है 

कुमार विश्वास के लिखे गाने 
तुमको जीते-जीते सच के लिए लड़ो मत साथी चंदा रे

ग़ुस्सा मत होना! मेरे मन तेरे पागलपन को बहुत देर से सोकर जागी

मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है

हमारी ज़िंदगी भी एक तवायफ़ का घराना है

बहुत मजबूर होकर गीत रोटी के लिखे मैंने

तुम्हारी याद का क्या है उसे तो रोज़ आना है

कब तक गीत सुनाऊँ राधा

जाहा हर दिन सिस्कना है

तुम अपना कहती थी

कवि और सत्ता का रिश्ता 


• कुमार विश्वास की लिखी हुई फिल्म 
परमाणु: द स्टोरी ऑफ़ पोखरण (2018): इस फ़िल्म के लिए कुमार विश्वास ने एक गाना लिखा है. इसके अलावा, उन्होंने फ़िल्म वीर भगत सिंह के लिए "दे दे जगह" गाना भी लिखा है.

पालकी (2016)
एन इनसिग्निफ़िकेंट मैन (2016)
भैरवी: महिला सशक्तिकरण एवं सामाजिक मुद्दों पर बनाई  इस फ़िल्म के लिए कुमार विश्वास ने एक गाना लिखा , जिसे आशा भोसले ने गाया था 

सूर्यपुत्र महावीर कर्ण: इस फ़िल्म के लिए कुमार विश्वास को डायलॉग, गीतिकाव्य बोल , और एडिशनल स्क्रीनप्ले लिखने का काम मिला है. यह फ़िल्म कई भाषाओं में रिलीज़ होगी

कुमार विश्वास की कविताओं से चुनिंदा पंक्तियां

जवानी में कई ग़ज़लें अधूरी छूट जाती हैं
कई ख़्वाहिश तो दिल ही दिल में पूरी छूट जाती हैं
जुदाई में तो मैं उससे बराबर बात करता हूं
मुलाक़ातों में सब बातें अधूरी छूट जाती हैं

जो मैं या तुम समझ लें वो इशारा कर लिया मैंने 
भरोसा बस तुम्हारा था तुम्हारा कर लिया मैंने 
लहर है हौसला है रब है हिम्मत है दुआएं हैं
किनारा कर ने वालों से किनारा कर लिया मैंने 

मैं अपने गीत ग़ज़लों से उसे पैग़ाम करता हूं
उसी की दी हुई दौलत उसी के नाम करता हूं
हवा का काम है चलना दीये का काम है जलना
वो अपना काम करती है मैं अपना काम करती हूं

किसी के दिल की मायूसी जहां से होके गुज़री है
हमारी सारी चालाकी वहीं पर खोके गुज़री है
तुम्हारी और मेरी रात में बस फ़र्क़ इतना है
तुम्हारी सोके गुज़री है हमारी रोके गुज़री है

पुकारे आंख में चढ़कर तो ख़ूं तो ख़ूं समझता है
अंधेरा किसको कहते हैं ये बस जुगनू समझता है
हमें को चांद तारों में भी तेरा रूप दिखता है
मोहब्बत को नुमाइश को अदाएं तू समझता है

मोहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबिरा दिवाना था कभी मीरा दिवानी है
यहां सब लोग कहते हैं मेरी आंखों में आंसू हैं
जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है

समंदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता 
ये आंसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को अपना तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा नहीं हो सकता

इस अधूरी जवानी का क्या फ़ायदा
बिन कथानक कहानी का क्या फ़ायदा
जिसमें धुलकर नज़र भी न पावन बनी 
आंख में ऐसे पानी का क्या फ़ायदा

वक़्त के क्रूर छल का भरोसा नहीं 
आज जी लो कल का भरोसा नहीं
दे रहे हैं वो अगले जनम की ख़बर 
जिनको अगले ही पल का भरोसा नहीं

ऋषि कश्यप की तपस्या ने तपाया है तुझे
ऋषि अगस्त्य ने हमभार बनाया है तुझे 
कवि ललदत् ने राबिया ने भी गाया है तुझे
बाबा बर्फ़ानी ने दरबार बनाया है तुझे

तेरी झीलों की मोहब्बत में है पागल बादल 
मां के माथे पे दमकते हुए पावन आंचल
तेरी सरगोशी पे कुर्बान मेरा पूरा वतन
मेरे कश्मीर मेरी जान मेरे प्यारे चमन

तेरे गुलमर्ग पे सरताज ताज हार गया
तू वो जन्नत कि जहांगीर भी दिल हार गया
तुझसे मिलने जो गया वो तेरा होकर लौटा
काबुली वाला तेरी गलियों से होकर लौटा

सूफ़ियों ने तुझे पैग़ाम-ए-हक़ सुनाया था
शंकराचार्य ने मंदिर वहीं बनाया था
आ गिले शिकवे करें दोनों मिलके आज दफ़न
मेरे कश्मीर मेरी जान मेरे प्यारे चमन 

तेरे बेटों के संस्कृत के व्याकरण की क़सम
ख़ूबानी सेब जैसे मीठे आचरण की क़सम 
तेरी क़ुरबानी में डूबी हुई सदियों की क़सम 
तेरे पर्वत से उतरती हुई नदियों की क़सम 

गुल के गुलफाम के गुलशन के चिनारों की क़सम
तेरी डल झील के उन सारे शिकारों की क़सम
तुझको सीने से लगाने के हैं ये सारे जतन 
मेरे कश्मीर मेरी जान मेरे प्यारे चमन


कुमार विश्वास की फीस
कुमार विश्वास हाल ही में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायगढ़ में आयोजित रामायण महोत्सव कार्यक्रम में पहुंचे थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्हें इस कार्यक्रम में कविता पढ़ने के लिए 60 लाख रुपये की मोटी फीस दी गई थी। यह भी बताया जाता है कि कुमार विश्वास एक शो में लगभग 15-20 मिनट के एक इवेंट के लिए लगभग 10 लाख रुपये की मोटी फीस लेते हैं। कुमार विश्वास महीने में हर दिन कार्यक्रम बुक रहता है, जिसकी वजह से उन्हें भारत का सबसे अमीर कवि माना जाता है।

कुमार विश्वास कुल संपत्ति एवं कमाई 
कुमार विश्वास एक कवि और राजनेता हैं जिनकी कुल संपत्ति 2023 में लगभग 5 करोड़ रुपये है। 

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान जमा किए गए हलफनामे के अनुसार, कुमार विश्वास ने अपनी आय 26 लाख रुपये प्रति वर्ष घोषित की थी।

उनके पास लगभग 3.80 करोड़ रु. की संपत्ति है उनके पास 2 कारें हैं जो टोयोटा इनोवा और टाटा एरिया हैं जिनकी कीमत लगभग 16.50 लाख रु है।
उनके पास गाजियाबाद में पैतृक गांव पिलखुआ में करीब एक करोड़ रुपये का घर भी है। इसके अलावा ऋषिकेश में दो फ्लैट जिनकी कीमत 90 लाख और 12 लाख रुपये है।

कुमार विश्वास की कमाई मुख्य रूप से कवि सम्मेलनों से होती है। जो पूरे भारत और दुनिया भर में आयोजित होते हैं।

कुमार विश्वास की प्रसिद्ध शायरी - 
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है,
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है.
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है,
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है.
मेरा जो भी तर्जुबा है, तुम्हे बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छु गया था तब, की अब तक गा रहा हूँ मैं
बिछुड़ के तुम से अब कैसे, जिया जाये बिना तडपे
जो मैं खुद ही नहीं समझा, वही समझा रहा हु मैं
मेरे जीने मरने में, तुम्हारा नाम आएगा
मैं सांस रोक लू फिर भी, यही इलज़ाम आएगा
हर एक धड़कन में जब तुम हो, तो फिर अपराध क्या मेरा
अगर राधा पुकारेंगी, तो घनश्याम आएगा
मोहब्बत एक अहसासों की, पावन सी कहानी है,
कभी कबिरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है,
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं,
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है।
अमावस की काली रातों में, जब दिल का दरवाजा खुलता है ,
जब दर्द की प्याली रातों में, गम आंसूं के संग होते हैं ,
जब पिछवाड़े के कमरे में , हम निपट अकेले होते हैं ,
जब उंच-नीच समझाने में , माथे की नस दुःख जाती हैं,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भरी लगता है!!
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
जब बासी फीकी धुप समेटें, दिन जल्दी ढल जाता है,
जब सूरज का लश्कर, छत से गलियों में देर से जाता है,
कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ
किसी की इक तरनुम में, तराने भूल आया हूँ
मेरी अब राह मत तकना कभी ए आसमां वालो
मैं इक चिड़िया की आँखों में, उड़ाने भूल आया हूँ
हमारे शेर सुनकर भी जो खामोश इतना है
खुदा जाने गुरुर ए हुस्न में मदहोश कितना है
किसी प्याले से पूछा है सुराही ने सबब मय का
जो खुद बेहोश हो वो क्या बताये होश कितना है
ना पाने की खुशी है कुछ, ना खोने का ही कुछ गम है
ये दौलत और शोहरत सिर्फ, कुछ ज़ख्मों का मरहम है
अजब सी कशमकश है,रोज़ जीने, रोज़ मरने में
मुक्कमल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है
जब जल्दी घर जाने की इच्छा, मन ही मन घुट जाती है,
जब कॉलेज से घर लाने वाली, पहली बस छुट जाती है,
पनाहों में जो आया हो, उस पर वार क्या करना
जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर से अधिकार क्या करना
मोहब्बत का मज़ा तो, डूबने की कशमकश में है
जो हो मालूम गहरायी, तो दरिया पार क्या करना
वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है
वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से
यहाँ ख़त भी थोड़ी देर में अखबार होता है
जब बेमन से खाना खाने पर, माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मन करने पर भी, पारो पढने आ जाती है
तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता,
कई जन्मों से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता,
कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत है ज़माने से,
मेरी तारीफ़ करता है मोहब्बत क्यों नहीं करता।

मैं उसका हूँ वो इस एहसास से इनकार करती है
भरी महफ़िल में भी, रुसवा हर बार करती है
यकीं है सारी दुनिया को, खफा है हमसे वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है

जब कमरे में सन्नाटे की आवाज सुनाई देती है ,
जब दर्पण में आँखों के नीचे झाई दिखाई देती है ,

जब बड़की भाभी कहती हैं , कुछ सेहत का भी ध्यान करो ,
क्या लिखते हो दिनभर , कुछ सपनों का भी सम्मान करो ,

जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं ,
जब बाबा हमें बुलाते हैं , हम जाते हैं , घबराते हैं ,

जमाना अपनी समझे पर, मुझे अपनी खबर यह है
तुझे मेरी जरुरत है, मुझे तेरी जरुरत है

जब साड़ी पहने एक लड़की का, एक फोटो लाया जाता है ,
जब भाभी हमें मनाती हैं , फोटो दिखलाया जाता है ,

मैं तेरा खोया या पाया हो नहीं सकता
तेरी शर्तो पे गायब या नुमाया हो नहीं सकता
भले साजिश से गहरे दफ़न मुझ को कर भी दो पर मैं
स्रजन का बीज हुँ मिटटी में जाया हो नहीं सकता

कोई पत्थर की मूरत है, किसी पत्थर में मूरत है
लो हमने देख ली दुनिया, जो इतनी खुबसूरत है
जमाना अपनी समझे पर, मुझे अपनी खबर यह है
तुझे मेरी जरुरत है, मुझे तेरी जरुरत है

एक पहाडे सा मेरी उँगलियों पे ठहरा है
तेरी चुप्पी का सबब क्या है? इसे हल कर दे
ये फ़क़त लफ्ज़ हैं तो रोक दे रस्ता इन का
और अगर सच है तो फिर बात मुकम्मल कर दे

दीदी कहती हैं उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं ,
उसके दिल में भैया , तेरे जैसे प्यारे जज्बात नहीं ,

तुम्हारा ख़्वाब जैसे ग़म को अपनाने से डरता है
हमारी आखँ का आँसूं , ख़ुशी पाने से डरता है
अज़ब है लज़्ज़ते ग़म भी, जो मेरा दिल अभी कल तक़
तेरे जाने से डरता था वो अब आने से डरता है

वो पगली लड़की नौ दिन मेरे लिए भूखी रहती है ,
छुप -छुप सारे व्रत करती है , पर मुझसे कभी ना कहती है ,

कोई कब तक महज सोचे,कोई कब तक महज गाए
ईलाही क्या ये मुमकिन है कि कुछ ऐसा भी हो जाऐ
मेरा मेहताब उसकी रात के आगोश मे पिघले
मैँ उसकी नीँद मेँ जागूँ वो मुझमे घुल के सो जाऐ

सखियों संग रंगने की धमकी सुनकर क्या डर जाऊँगा?
तेरी गली में क्या होगा ये मालूम है पर आऊँगा,
भींग रही है काया सारी खजुराहो की मूरत सी,
इस दर्शन का और प्रदर्शन मत करना,
मर जाऊँगा!

बस उस पगली लड़की के संग जीना फुलवारी लगता है ,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ
तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन
तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है, समझता हूँ

दिलों से दिलों का सफर आसान नहीं होता,
ठहरे हुए दरिया में तुफान नहीं होता,
मोहब्बत तो रूह में समा जाती है,
इसमें शब्दों का कोई काम नहीं होता,
मैं कवि हूं प्रेम का बांट रहा हूं प्रेम,
इससे बड़ा कोई काम नहीं होता”

बतायें क्या हमें किन-किन सहारों ने सताया है
नदी तो कुछ नहीं बोली, किनारों ने सताया है
सदा ही शूल मेरी राह से ख़ुद हट गए लेकिन
मुझे तो हर घडी हर पल बहारों ने सताया है

तुझ को गुरुर ए हुस्न है मुझ को सुरूर ए फ़न
दोनों को खुदपसंदगी की लत बुरी भी है
तुझ में छुपा के खुद को मैं रख दूँ मग़र मुझे
कुछ रख के भूल जाने की आदत बुरी भी है

जब भी आना उतर के वादी में ,
ज़रा सा चाँद लेते आना तुम “

मिलते रहिए, कि मिलते रहने से
मिलते रहने का सिलसिला हूँ मैं.

हर इक खोने में हर इक पाने में तेरी याद आती है
नमक आँखों में घुल जाने में तेरी याद आती है
तेरी अमृत भरी लहरों को क्या मालूम गंगा माँ
समंदर पार वीराने में तेरी याद आती है

गम में हूँ य़ा हूँ शाद मुझे खुद पता नहीं
खुद को भी हूँ मैं याद मुझे खुद पता नहीं
मैं तुझको चाहता हूँ मगर माँगता नहीं
मौला मेरी मुराद मुझे खुद पता नहीं”

तुम अगर नहीं आयी गीत गा न पाउगा
सांस साथ छोड़ेगी, सुर सजा न पाउगा
तान भावना की है, शब्द शब्द दर्पण है
बांसुरी चली आओ, होठ का निमंत्रण है

रंग दुनियाने दिखाया है निराला, देखूँ
है अंधेरे में उजाला, तो उजाला देखूँ
आईना रख दे मेरे सामने, आखिर मैं भी
कैसा लगता हूँ तेरा चाहने वाला देखूँ !!

हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते
मगर रस्मे-वफ़ा ये है कि ये भी कह नहीं सकते
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों कि चीख सुन भर लो
जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते

तुमने अपने होठों से जब छुई थीं ये पलकें !
नींद के नसीबों में ख्वा़ब लौट आया था !!
रंग ढूँढने निकले लोग जब कबीले के !
तितलियों ने मीलों तक रास्ता दिखाया था !!

प्रथम पद पर वतन न हो, तो हम चुप रह नहीं सकते
किसी शव पर कफ़न न हो, तो हम चुप रह नहीं सकते
भले सत्ता को कोई भी सलामी दे न दे लेकिन
शहीदों को नमन न हो तो हम चुप रह नहीं सकते

इन उम्र से लम्बी सड़को को, मंज़िल पे पहुंचते देखा नहीं,
बस दोड़ती फिरती रहती हैं, हम ने तो ठहरते देखा नहीं..!!

वो सब रंग बेरंग हैं जो ढूंढते व्यापार होली में,
विजेता हैं जिन्हें स्वीकार हर हार होली में,
मैं मंदिर से निकल आऊँ तुम मस्जिद से निकल आना,
तो मिलकर हम लगाएंगे गुलाल-ए-प्यार होली में

गिरेबान चेक करना क्या है सीना और मुश्किल है,
हर एक पल मुस्कुराकर अश्क पीना और मुश्किल है,
हमारी बदनसीबी ने हमें बस इतना सिखाया है,
किसी के इश्क़ में मरने से जीना और मुश्किल है.

उन की ख़ैर-ओ-ख़बर नहीं मिलती
हम को ही ख़ास कर नहीं मिलती
शाएरी को नज़र नहीं मिलती
मुझ को तू ही अगर नहीं मिलती
रूह में दिल में जिस्म में दुनिया ढूँढता हूँ
मगर नहीं मिलती
लोग कहते हैं रूह बिकती है
मैं जिधर हूँ उधर नहीं मिलती||

हर ओर शिवम-सत्यम-सुन्दर ,
हर दिशा-दिशा मे हर हर है
जड़-चेतन मे अभिव्यक्त सतत ,
कंकर-कंकर मे शंकर है…”

एक दो दिन मे वो इकरार कहाँ आएगा ,
हर सुबह एक ही अखबार कहाँ आएगा ,
आज जो बांधा है इन में तो बहल जायेंगे ,
रोज इन बाहों का त्योहार कहाँ आएगा…!!

मिले हर जख्म को मुस्कान को सीना नहीं आया
अमरता चाहते थे पर ज़हर पीना नहीं आया
तुम्हारी और मेरी दस्ता में फर्क इतना है
मुझे मरना नहीं आया तुम्हे जीना नहीं आया

जो किए ही नहीं कभी मैंने ,
वो भी वादे निभा रहा हूँ मैं.
मुझसे फिर बात कर रही है वो,
फिर से बातों मे आ रहा हूँ मैं !!

पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार क्या करना
जो दिल हारा हुआ हो उस पे फिर अधिकार क्या करना
मुहब्बत का मजा तो डूबने की कशमकश में है
हो ग़र मालूम गहराई तो दरिया पार क्या करना।

मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हे बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छू गया था तब के अब तक गा रहा हु मैं
बिछुड़ के तुम से अब कैसे जिया जाए बिना तड़पे
जो में खुद हे नहीं समझा वही समझा रहा हु मैं..

अपनों के अवरोध मिले, हर वक्त रवानी वही रही
साँसो में तुफानों की रफ़्तार पुरानी वही रही
लाख सिखाया दुनिया ने, हमको भी कारोबार मगर
धोखे खाते रहे और मन की नादानी वही रही…!!

तूफ़ानी लहरें हों
अम्बर के पहरे हों
पुरवा के दामन पर दाग़ बहुत गहरे हों
सागर के माँझी मत मन को तू हारना
जीवन के क्रम में जो खोया है, पाना है
पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है !!

कोई मंजिल नहीं जंचती, सफर अच्छा नहीं लगता
अगर घर लौट भी आऊ तो घर अच्छा नहीं लगता
करूं कुछ भी मैं अब दुनिया को सब अच्छा ही लगता है
मुझे कुछ भी तुम्हारे बिन मगर अच्छा नहीं लगता।

राजवंश रूठे तो
राजमुकुट टूटे तो
सीतापति-राघव से राजमहल छूटे तो
आशा मत हार, पार सागर के एक बार
पत्थर में प्राण फूँक, सेतु फिर बनाना है
पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है

मैं अपने गीतों और ग़ज़लों से उसे पेगाम करता हु
उसकी दी हुई दौलत उसी के नाम करता हूँ
हवा का काम है चलना, दिए का काम है जलना
वो अपना काम करती है, में अपना काम करता हूँ

नज़र में शोखिया लब पर मुहब्बत का तराना है
मेरी उम्मीद की जद़ में अभी सारा जमाना है
कई जीते है दिल के देश पर मालूम है मुझकों
सिकन्दर हूं मुझे इक रोज खाली हाथ जाना है।

घर भर चाहे छोड़े
सूरज भी मुँह मोड़े
विदुर रहे मौन, छिने राज्य, स्वर्णरथ, घोड़े
माँ का बस प्यार, सार गीता का साथ रहे
पंचतत्व सौ पर है भारी, बतलाना है
जीवन का राजसूय यज्ञ फिर कराना है
पतझर का मतलब है, फिर बसंत आना है

हिम्मत ऐ दुआ बढ़ जाती है
हम चिरागों की इन हवाओ से
कोई तो जाके बता दे उसको
दर्द बढ़ता है अब दुआओं से

मै तेरा ख्वाब जी लून पर लाचारी है
मेरा गुरूर मेरी ख्वाहिसों पे भरी है
सुबह के सुर्ख उजालों से तेरी मांग से
मेरे सामने तो ये श्याह रात सारी है

सब अपने दिल के राजा है, सबकी कोई रानी है
भले प्रकाशित हो न हो पर सबकी कोई कहानी है
बहुत सरल है किसने कितना दर्द सहा
जिसकी जितनी आँख हँसे है, उतनी पीर पुराणी है

फिर मेरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी
फिर मिरे फेसबुक पे आ कर 
वो ख़ुद को बैनर बना रही होगी
अपने बेटे का चूम कर माथा 
मुझ को टीका लगा रही होगी
फिर उसी ने उसे छुआ होगा
फिर उसी से निभा रही होगी 
जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सिलवट हटा रही होगी
फिर से इक रात कट गई होगी
फिर से इक रात आ रही होगी||

सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता
खुशी के घर में भी बोलों कभी क्या गम नहीं होता
फ़क़त इक आदमी के वास्तें जग छोड़ने वालो  
फ़क़त उस आदमी से ये ज़माना कम नहीं होता।

ये दिल बर्बाद करके सो में क्यों आबाद रहते हो
कोई कल कह रहा था तुम अल्लाहाबाद रहते हो
ये कैसी शोहरतें मुझको अता कर दी मेरे मौला
मैं सभ कुछ भूल जाता हूँ मगर तुम याद रहते हो !!

स्वंय से दूर हो तुम भी स्वंय से दूर है हम भी
बहुत मशहूर हो तुम भी बहुत मशहूर है हम भी
बड़े मगरूर हो तुम भी बड़े मगरूर है हम भी
अतः मजबूर हो तुम भी अतः मजबूर है हम भी

हमने दुःख के महासिंधु से सुख का मोती बीना है
और उदासी के पंजों से हँसने का सुख छीना है
मान और सम्मान हमें ये याद दिलाते है पल पल
भीतर भीतर मरना है पर बाहर बाहर जीना है।

वो जो खुद में से कम निकलतें हैं
उनके ज़हनों में बम निकलतें हैं
आप में कौन-कौन रहता है
हम में तो सिर्फ हम निकलते हैं।

चंद चेहरे लगेंगे अपने से ,
खुद को पर बेक़रार मत करना ,
आख़िरश दिल्लगी लगी दिल पर?
हम न कहते थे प्यार मत करना…!!

उम्मीदों का फटा पैरहन,
रोज़-रोज़ सिलना पड़ता है,
तुम से मिलने की कोशिश में,
किस-किस से मिलना पड़ता है

कलम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा
गिरेबां अपना आंसू में भिगोता हूँ तो हंगामा
नही मुझ पर भी जो खुद की खबर वो है जमाने पर
मैं हंसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा.

कितनी दुनिया है मुझे ज़िन्दगी देने वाली
और एक ख्वाब है तेरा की जो मर जाता है
खुद को तरतीब से जोड़ूँ तो कहा से जोड़ूँ
मेरी मिट्टी में जो तू है की बिखर जाता है

हमें बेहोश कर साकी , पिला भी कुछ नहीं हमको
कर्म भी कुछ नहीं हमको , सिला भी कुछ नहीं हमको
मोहब्बत ने दे दिआ है सब , मोहब्बत ने ले लिया है सब
मिला कुछ भी नहीं हमको , गिला भी कुछ नहीं हमको !!

आँखें की छत पे टहलते रहे काले साये,
कोई पहले में उजाले भरने नहीं आया…!
कितनी दिवाली गयी, कितने दशहरे बीते,
इन मुंडेरों पर कोई दीप न धरने आया…!!

गाँव-गाँव गाता फिरता हूँ, खुद में मगर बिन गाय हूँ,
तुमने बाँध लिया होता तो खुद में सिमट गया होता मैं,
तुमने छोड़ दिया है तो कितनी दूर निकल आया हूँ मैं…!!
कट न पायी किसी से चाल मेरी, लोग देने लगे मिसाल मेरी…!
मेरे जुम्लूं से काम लेते हैं वो, बंद है जिनसे बोलचाल मेरी…!!

जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा
हास्य बातो या जज़्बातो मुलाकातों का हंगामा
जवानी के क़यामत दौर में ये सोचते है सब
ये हंगामे की राते है या है रातो का हंगामा

हर एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है,
यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है !
वही बातें पुरानी थीं, वही किस्सा पुराना है,
तुम्हारे और मेरे बिच में फिर से जमाना है…!!

मेहफिल-महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है,
खुद ही खुद को समझाना तो पड़ता है
उनकी आँखों से होकर दिल जाना.
रस्ते में ये मैखाना तो पड़ता है..

हम को हरगिज़ नहीं ख़ुदा मंज़ूर
या’नी हम बे-तरह ख़ुदा के हैं

हम को यारों ने याद भी न रखा
‘जौन’ यारों के यार थे हम तो

हमारे ज़ख़्म-ए-तमन्ना पुराने हो गए हैं
कि उस गली में गए अब ज़माने हो गए हैं

हम ने क्यूँ ख़ुद पे ए’तिबार किया
सख़्त बे-ए’तिबार थे हम तो

हमला है चार सू दर-ओ-दीवार-ए-शहर का
सब जंगलों को शहर के अंदर समेट लो

सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर
अब किसे रात भर जगाती है

याद उसे इंतिहाई करते हैं
सो हम उस की बुराई करते

• कुमार विश्वास की गजले

बात करनी है बात कौन करे 

दर्द से दो दो हाथ कौन करे 

हम सितारे तुम्हें बुलाते हैं 

चाँद न हो तो रात कौन करे 

अब तुझे रब कहें या बुत समझें 

इश्क़ में ज़ात-पात कौन करे 

ज़िंदगी भर की थे कमाई तुम 

इस से ज़्यादा ज़कात कौन करे 

- ख़ुद को आसान कर रही हो ना 

हम पे एहसान कर रही हो ना 

ज़िंदगी हसरतों की मय्यत है 

फिर भी अरमान कर रही हो ना 

नींद सपने सुकून उम्मीदें 

कितना नुक़सान कर रही हो ना 

हम ने समझा है प्यार पर तुम तो 

जान पहचान कर रही हो ना 

- सब तमन्नाएँ हों पूरी कोई ख़्वाहिश भी रहे 

चाहता वो है मोहब्बत में नुमाइश भी रहे 

आसमाँ चूमे मिरे पँख तिरी रहमत से 

और किसी पेड़ की डाली पे रिहाइश भी रहे 

उस ने सौंपा नहीं मुझ को मिरे हिस्से का वजूद 

उस की कोशिश है कि मुझ से मिरी रंजिश भी रहे 

मुझ को मालूम है मेरा है वो मैं उस का हूँ 

उस की चाहत है कि रस्मों की ये बंदिश भी रहे 

मौसमों से रहें 'विश्वास' के ऐसे रिश्ते 

कुछ अदावत भी रहे थोड़ी नवाज़िश भी रहे

कुमार विश्वास की प्रेम कविता 
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे दिल एक ऐसा इकतारा है, जो हमको भी प्यारा है और जो तुमको भी प्यारा है झूम रही है सारी दुनिया जबकि हमारे गीतों पर, तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है

मेरे पहले प्यार

ओ प्रीत भरे संगीत भरे!
ओ मेरे पहले प्यार!
मुझे तू याद न आया कर
ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे!
नस-नस के पहले ज्वार!
मुझे तू याद न आया कर।

पावस की प्रथम फुहारों से
जिसने मुझको कुछ बोल दिये
मेरे आंसू मुस्कानों की
कीमत पर जिसने तोल दिये

जिसने अहसास दिया मुझको
मैं अम्बर तक उठ सकता हूं
जिसने खुद को बांधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये

ओ अनजाने आकर्षण से!
ओ पावन मधुर समर्पण से!
मेरे गीतों के सार
मुझे तू याद न आया कर।

मैं तुम्हें ढूंढ़ने
मैं तुम्हें ढूंढ़ने स्वर्ग के द्वार तक
रोज आता रहा, रोज जाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा

जिन्दगी के सभी रास्ते एक थे
सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक गई
अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद्
मन की गोपन कथाएं नयन तक रहीं
प्राण के पृष्ठ पर गीत की अल्पना
तुम मिटाती रही मैं बनाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा

एक खामोश हलचल बनी जिन्दगी
गहरा ठहरा जल बनी जिन्दगी
तुम बिना जैसे महलों में बीता हुआ
उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी
दृष्टि आकाश में आस का एक दिया
तुम बुझती रही, मैं जलाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
आना तुम
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये
तन-मन की धरती पर
झर-झर-झर-झर-झरना
सांसों में प्रश्नों का आकुल आकाश लिये

तुमको पथ में कुछ मर्यादाएं रोकेंगी
जानी-अनजानी सौ बाधाएं रोकेंगी
लेकिन तुम चन्दन सी, सुरभित कस्तूरी सी
पावस की रिमझिम सी, मादक मजबूरी सी
सारी बाधाएं तज, बल खाती नदिया बन
मेरे तट आना
एक भीगा उल्लास लिये
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये
मैं तुम्हे अधिकार दूंगा
मैं तुम्हें अधिकार दूंगा
एक अनसूंघे सुमन की गन्ध सा
मैं अपरिमित प्यार दूंगा
मैं तुम्हें अधिकार दूंगा

सत्य मेरे जानने का
गीत अपने मानने का
कुछ सजल भ्रम पालने का
मैं सबल आधार दूंगा
मैं तुम्हें अधिकार दूंगा 

• कुमार विश्वास की कविताएं 
नजर में 'शोखीयां" लब पर 'मोहब्बत' का तराना है
मेरी उम्मीद की जद में अभी सारा जमाना है|
कई जीते हैं दिल के देश पर मालूम है मुझको,
सिकंदर हूं मुझे एक रोज खाली हाथ जाना है|

उसी की तरह मुझे सारा जमाना चाहे,  वह मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे|  मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा,  यह मुसाफिर तो कोई ठिकाना चाहे |    

हमने दुख के महासिंधु से सुख का मोती बीना है,
और उदासी के पंजों से हंसने का सुख छीना है  मान और सम्मान हमें ए याद दिलाते हैं पल पल,  भीतर भीतर मरना है पर बाहर बाहर जीना है|

पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार क्या करना,   जो दिल हारा हुआ हो उस पे फिर अधिकार क्या करना|   'मोहब्बत' का मजा तो डूबने की कशम-कश में है, जो हो मालूम गहरायी तो दरिया पार क्या करना 

सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता, खुशी के घर में भी बोलो कभी क्या गम नहीं होता| फकत एक आदमी के वास्ते जग छोड़ने वालों, फकत उस आदमी से ये जमाना कम नहीं होता|

बताएं क्या हमें किन किन सहारो ने सताया है,   नदी तो कुछ नहीं बोली किनारों ने सताया है|  सदा से शूल मेरी राह से खुद हट गए लेकिन,  मुझे तो हर घड़ी हर पल बहारों ने सताया है|

ना पाने की खुशी है कुछ ना खोने का ही कुछ गम है,   ये 'दौलत' और 'शोहरत' सिर्फ कुछ जख्मों का मरहम है|  अजब सी कशमकश है रोज जीने रोज मरने में ,  मुकम्मल जिंदगी तो है मगर पूरी से कुछ कम है| 

प्रिया झा 

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