बाँके चमार - आखिर इतिहास के पन्नों से क्यों गायब है ये नाम
बाँके चमार अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की जौनपुर क्रांति के मुखिया थे। बाँके जी अट्ठारह सौ सत्तावन के विद्रोह के महान स्वतंत्रता सेनानी थे ।यद्यपि यह क्रांति विफल हो गई थी। बाँके चमार का जन्म जौनपुर जिले की मछली तहसील के गाँव कुंवरपुर में हुआ था। 1857 की जौनपुर क्रांति के नेता थे हरपाल सिंह और हरपाल सिंह बांके चमार पर बहुत विश्वास करते थे। हरपाल सिंह इनकी सूझबूझ और वीरता के कायल थे।
अभी हाल ही में भारत ने अपना 76 वां स्वतंत्रता दिवस बनाया है ।आजादी के 75 वर्ष में हमने अमृत महोत्सव मनाया था। और अब आगामी 25 वर्ष तक आजादी का अमृत काल चल रहा है। आज का भारत विश्व में अपनी नई पहचान बना रहा है। आत्मनिर्भर होकर विकास की राह पर चल रहा है । विज्ञान में भी दिनोंदिन उन्नति कर रहा है। अंतरिक्ष में भी अपने पाँव जमा चुका है। अपनी रक्षा के लिए अनेकों स्वदेशी हथियार भी विकसित कर रहा है ।अनेक तरह से अपनी योग्यता, आत्मनिर्भरता और विकास को धार दे रहा है। अपनी विदेश नीति और कूटनीति का लोहा मनवा रहा है। आज देश में हर भारतीय अपनी शर्तों सिद्धांतों के साथ जीने के लिए स्वतंत्र है। हम खुलकर आजादी से साँस ले रहे हैं। अपनी अस्मिता और उपलब्धियों के लिए हमने एक लंबा संघर्ष किया है। अनेकों बलिदान दिए हैं, जाने कितने लोगों ने अपने प्राणों का हवन किया है ।और उन्हीं वीर देशभक्त स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष के कारण ही आज हम स्वतंत्रता के अधिकारी हैं। हमारी स्वतंत्रता हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष और बलिदान की नींव पर खड़ी है।
1947 से पहले भारत काफी लंबे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा और स्वतंत्रता के लिए एक लंबा संघर्ष चला। जिसमें माँ भारती के अगणित वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, मंगल पांडे आदि से लेकर भगत सिंह, आजाद तक न जाने कितने लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति दी। इनमें अनेकों वीर सपूत ऐसे भी है, जो गुमनामी के अंधेरे में खो गए।जिनका हम नाम तक नहीं जानते और कुछ ऐसे हैं ,जिनका जिक्र तो होता है पर ,उन्हें इतिहास में वह स्थान नहीं मिला जिसके वह अधिकारी थे ।ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे, बाँके चमार।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम का आरंभ अट्ठारह सौ सत्तावन में हुआ था। इसे अट्ठारह सौ सत्तावन का गदर भी कहा जाता है जिसे अंग्रेजों ने विद्रोह का नाम दिया था। यह भारतीयों का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। बाँके चमार अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की जौनपुर क्रांति के मुखिया थे। बाँके जी अट्ठारह सौ सत्तावन के विद्रोह के महान स्वतंत्रता सेनानी थे । यद्यपि यह क्रांति विफल हो गई थी। बाँके चमार का जन्म जौनपुर जिले की मछली तहसील के गाँव कुंवरपुर में हुआ था। 1857 की जौनपुर क्रांति के नेता थे हरपाल सिंह और हरपाल सिंह बांके चमार पर बहुत विश्वास करते थे। हरपाल सिंह इनकी सूझबूझ और वीरता के कायल थे। इन्होंने बहुत बार अंग्रेजों को चकमा देकर उन्हें खूब छकाया। अनेकों बार अंग्रेजों का सामना किया। यह हर बार बच जाते थे। देखते ही देखते यह अंग्रेजो के लिए सरदर्द बन गए थे। बाँके चमार और उनके 18 सहयोगियों को ब्रिटिश सरकार ने विद्रोही घोषित किया था । यह अट्ठारह सौ सत्तावन की जौनपुर क्रांति में विद्रोही घोषित 18 क्रांतिकारियों में सबसे प्रसिद्ध थे। ब्रिटिश सरकार ने इन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए 50,000/- रुपए के इनाम की घोषणा की थी। यह उस वक्त का सबसे बड़ा इनाम था। इस समय वीरा पासी के बाद बाँके चमार ही दूसरे ऐसे क्रांतिकारी थे जिनके लिए अंग्रेजों ने इतनी बड़ी रकम इनाम में रखी थी।
यद्यपि क्रांति विफल हो गई थी किंतु ,बाँके चमार और उनके साथियों के साथ अंग्रेजों का कई बार कड़ा संघर्ष हुआ था जिसमें जिसमें अंग्रेजों ने मुँह की खाई थी और उन्होंने इन्हें पकड़ने के लिए इनाम की घोषणा की। एक मुखबिर,सेवानिवृत ब्रिटिश सैनिक रमाशंकर तिवारी ने अंग्रेजों को उनके स्थान की सूचना दे दी। अंग्रेजों ने कई सैनिक उन्हें पकड़ने के लिए भेजे। बाँके और उनके बीच जमकर संघर्ष हुआ। कई ब्रिटिश सैनिकों को उन्होंने मार डाला और अंत में इस महान स्वतंत्रता सेनानी और उनके अट्ठारह साथियों को ब्रिटिश हुकूमत ने पकड़ लिया और उन्हें फाँसी दे दी गई। उस समय अंग्रेजों ने इन पर सबसे बड़ा इनाम 50,000/- रूपये रखा था जब दो गायों की कीमत 6 पैसे हुआ करती थी। तब इन पर इतनी बड़ी रकम का इनाम इनके कड़े संघर्ष और अंग्रेजों के डर की सूचना देता है।
इस प्रकार यह महान , वीर स्वतंत्रता सेनानी भारत की आजादी के लिए शहीद हो गया। इतिहास में इनका जिक्र ना के बराबर ही है कहीं-कहीं जो थोड़ा बहुत जिक्र हो जाता है वह इन पर रखे गए इनाम की बाबत, परंतु इतिहास में जो स्थान इन्हें मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। इतिहासकारों ने बाँके चमार को वह स्थान ही नहीं दिया जिसकी वे अधिकारी थे। आजादी के अमृत महोत्सव का एक उद्देश्य यह भी है कि हम उन गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों को याद करें ,जिन्होंने देश की खातिर अपने प्राणों का हवन किया व स्वतंत्रता के संघर्ष में प्राण फूँके । उन्हें याद करके उनके विषय में शोध करके हमें उनके संघर्ष और उनके नाम को इतिहास में दर्ज करना ही चाहिए। इन्हें इतिहास में इनका स्थान मिलना ही चाहिए। यही हमारी उन गुमनाम महान स्वतंत्रता सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। राष्ट्र निर्माण में इनका योगदान ,सराहनीय और अमूल्य है। ऐसे वीर सपूतों को कोटि-कोटि नमन।
- सीमा तोमर
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