खोपड़ी पर पड़े हथौड़े की तरह जगाने वाला साहित्यकार मंटो
साहित्यकार संकल्प ठाकुर लिखते हैं कि " किसी बात को कहने में लिहाज नहीं रखने वाले लेखक का नाम है मंटो। झूठी शराफत के दायरे से बाहर होकर जो लिखे उस लेखक का नाम है मंटो। जो सभ्य समाज की बुनियाद में छिपी घिनौनी सच्चाई को बयां करे उस लेखक का नाम है मंटो। जो वेश्याओं की संवेदनाओं को उकेरने का काम करे उस लेखक का नाम है मंटो।"प्रख्यात साहित्यकार और समालोचक देवशंकर नवीन एक जगह लिखते हैं-" बड़ा लेखक होने की आवश्यक योग्यता मेरी समझ से बड़ा मनुष्य होना है।

स्क्रॉल के कथन में थोड़ा - सा परिवर्तन कर अगर कहा जाए कि कोई लेखक अगर खोपड़ी पर पड़े हथौड़े की तरह हमें जगा न दे तो उसे हम क्यों पढ़ें? यदि ऐसे लेखक को दिमाग पर जोर लगाकर ढ़ूँढ़ा जाए तो पता चलता है उसका नाम है - "मंटो "। जी हाँ ," सआदत हसन मंटो "। क्या आप मंटो को जानते हैं? दरअसल मंटो को जानने के लिए मंटो को सिर्फ पढ़ने की जरूरत नहीं समझने की जरूरत है।मोपांसा की तरह बदनाम लेखकों में शुमार- " मंटो "।
साहित्यकार संकल्प ठाकुर लिखते हैं कि " किसी बात को कहने में लिहाज नहीं रखने वाले लेखक का नाम है मंटो। झूठी शराफत के दायरे से बाहर होकर जो लिखे उस लेखक का नाम है मंटो। जो सभ्य समाज की बुनियाद में छिपी घिनौनी सच्चाई को बयां करे उस लेखक का नाम है मंटो। जो वेश्याओं की संवेदनाओं को उकेरने का काम करे उस लेखक का नाम है मंटो।"प्रख्यात साहित्यकार और समालोचक देवशंकर नवीन एक जगह लिखते हैं-" बड़ा लेखक होने की आवश्यक योग्यता मेरी समझ से बड़ा मनुष्य होना है।
जो व्यक्ति मानवीय नहीं होगा ,वह सामाजिक कैसे होगा? और सामाजिक नहीं होगा , तो साहित्य कैसे रचेगा ? साहित्य में वैसे लेखकों की कमी नहीं है जिन्होंने लेखक के रूप में अपनी बड़ी इमारत खड़ी कर ली है पर व्यक्ति के रूप में वे बहुत नीचे हैं। उनके लेखन से उनके व्यक्तित्व, आचार- विचार ,मान्यताएं आदि मेल नहीं खाते।" लेकिन सआदत हसन मंटो के लेखन से उनके व्यक्तित्व, आचार- विचार, मान्यताएं मेल खाते हैं और यही उनको विशिष्ट बनाता है।उनके व्यक्तित्व में दोगलापन नहीं था।वे झूठ- फरेब का नकाब ओढ़ने वाले शख्स नहीं थे। वे एक महान मानवतावादी लेखक हैं।
वे एक ऐसे साहित्यकार के रूप में विख्यात हैं जिनकी दृष्टि में कोई भी मनुष्य मूल्यहीन नहीं है। वे यह मानते थे कि हर एक आदमी के अस्तित्व में कोई न कोई अर्थ छिपा होता है जो एक न एक दिन प्रकट हो जाता है। उनमें हर इंसान को कबूल करने की क्षमता थी ।इसीलिए हाशिए पर धकेले गए शख्स उनके अमर पात्र बने।उनके समकालीन लेखक चाहते थे कि वे पर्दे में लिखे ,पर यह उनको किसी भी शर्त पर कबूल नहीं था। वे अपनी शर्तों पर लिखने वाले कलमकार थे।वे डंके की चोट पर कहते थे कि लेखक का काम समाज को कपड़े पहनाना नहीं है।अगर समाज नंगा है तो उसका नंगापन सामने आकर ही रहेगा।
उनकी कहानियाँ सभ्यता के गाल पर तमाचा मारती है।इसीलिए तमाम बुराइयों पर चुप रहने वाला समाज उनको बर्दाश्त नहीं कर पाया।50 वर्ष पहले उन्होंने जो कुछ लिखा उनमें आज की हकीकत सिमटी हुई नजर आती है।यह हकीकत उन्होंने ऐसी
तल्ख जुबान में पेश किया कि समाज के अलंबदारो की नींद हराम हो गई। नतीजतन उनकी कहानियों पर मुकदमे चले।उन्हें अदालतों के चक्कर लगाने पड़े।काली सलवार ,धुआँ , बू , ठंडा गोश्त ,ऊपर- नीचे और दरमियाँ - इन कहानियों पर उनके ऊपर मुकदमे चले। सच बोलने और लिखने पर उन्हें परेशान किया गया।
मंटो ने अपने अफसाने के बारे में लिखा -" जमाना के जिस दौर में हम इस वक्त गुजर रहे हैं ,अगर आप उससे नाकाविफ हैं तो मेरे अफसाने पढ़िए। अगर आप इस अफसाने को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब है कि यह जमाना नाकाबिल - बर्दाश्त है।" मंटो ने लिखा-"अगर आपको मेरी कहानियाँ गंदी लगती हैं तो आप जिस समाज में रहते हैं वह गंदा है।अपनी कहानियों से मैं केवल सच्चाई उजागर करता हूँ।" उन्होंने लिखा -" मैं बगावत चाहता हूँ। हर उस व्यक्ति के खिलाफ बग़ावत चाहता हूँ जो हमसे मेहनत कराता है मगर उसके दाम अदा नहीं करते।" उन्होंने लिखा-" पहले मजहब सीने में होता था ,आजकल टोपियों में होता है।
सियासत भी अब टोपियों में चली आई है। जिंदाबाद टोपियाँ।" उनकी प्रसिद्ध कहानी "ठंडा गोश्त " साम्प्रदायिक संघर्षों की कठोर वास्तविकताओं को बताता है कि किसने इतनी गहरी क्षति पहँचाई है कि आज हम इसकी वजह से जूझ रहे हैं। उनकी प्रसिद्ध कहानी " टोबा टेक सिंह " भारत के विभाजन के समय लाहौर के एक पागलखाने के पागलों पर आधारित है और समीक्षकों ने इस कथा को पिछले 50 सालों से सराहते हुए भारत- पाकिस्तान संबंधों पर " एक शक्तिशाली तंज "बताया है।इस कहानी में पागलखाने के हिन्दू और सिख मरीजों को लाहौर से भारत भेजे जाने के विषय को उठाया गया है।
11 मई 1912 को पंजाब में जन्म लिए और 1948 तक भारतीय नागरिक रहे।1948 से 1955तक पाकिस्तानी नागरिक के रूप मे रहे,पर वहाँ भी उन्हें चैन से नहीं रहने दिया गया।साफिया मंटो उनकी पत्नी थी। 18 जनवरी1955 को केवल 42 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।पाकिस्तान जाने के बाद उनके 14 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें 161 अफसाने संग्रहित हैं। मंटो एक ऐसे लेखक थे जिनकी जीवन गाथा गहन चर्चा और आत्म निरिक्षण का विषय बन गई। 18 जनवरी 2005 को उनकी मृत्यु के 50 वीं वर्षगांठ पर उनको पाकिस्तानी डाक-टिकट पर याद किया गया।
मरणोपरांत पाकिस्तान सरकार द्वारा " निशान- ए- इम्तियाज " पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया।ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन ने होमर और वर्जीनिया वूल्फ जैसे लेखकों के कार्यों के साथ - साथ दुनिया को आकार देने वाली 100 कहानियों में उनकी कहानी " टोबा टेक सिंह " को सम्मलित किया गया। नंदिता दास द्वारा बनाई गई और नवाजुद्दीन सिद्धकी अभिनीत 2018 की फिल्म " मंटो" उनके जीवन पर आधारित प्रसिद्ध वाॅलीवुड फिल्म है।
उनके जीवन काल में ही उनपर कई किताबें लिखी गई। मुहम्मद असदुल्लाह की " मंटो- मेरा दोस्त " और उपेन्द्रनाथ अश्क की " मंटो- मेरा दुश्मन " बहुत प्रसिद्ध हुई। इतना कुछ होने पर भी यही कहा जा सकता है कि मंटो का मूल्यांकन अभी शेष है।मंटो ने खुद अपने बारे में लिखा -" ऐसा होना मुमकिन है कि सआदत हसन मर जाए और मंटो जिंदा रहे।"
अरूण कुमार यादव
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