स्वतंत्रता वीरांगना उदा देवी पासी

लखनऊ के पास चिनहट क्षेत्र में अंग्रेजी फौज से लोहा लेते समय उदा देवी के पति मक्का पासी मारे गये।कहा जाता है कि उदा देवी को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा उन्हें अपने पति के बलिदान से प्राप्त हुई। 1857 में लखनऊ के सिकंदराबाद क्षेत्र मे गदर हुआ तो लखनऊ में घेराबंदी के समय लगभग 2000 भारतीय सिपाही 'सिकंदराबाद बाग'मे शरण लिए हुए थे।

Apr 25, 2024 - 12:44
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स्वतंत्रता वीरांगना उदा देवी पासी
uda devi paasi

1857 मे भारत में जब अंग्रेजों के खिलाफ बगावत हुई तो लखनऊ के तत्कालीन अंतिम मुगल शासक वाजिद अली शाह को कलकत्ता निर्वासित कर दिया गया, तब विद्रोह की परचम उनकी बेगम हजरत महल ने संभाली थी जो स्वयं एक अच्छी कुशल योद्धा थीं। उनके नियंत्रण मे कई प्रशिक्षित महिला सैन्य टुकड़ी हमेशा साथ में सुरक्षा हेतु रहा करती थी जिसे वाजिद अली शाह ने अपने समय में तैयार करवाया था। महिला सैन्य बल में सभी समुदाय के स्त्रियों के साथ ज्यादातर दलित समुदाय की गरीब परिवार की महिलाएं थीं। इन्हीं में से एक तेज तर्रार, चुस्त दुरुस्त महिला सिपाही उदा देवी पासी,बेगम हजरत महल की सुरक्षा में तैनात थी।उदा देवी के पति भी नवाब वाजिद अली शाह के सेना में तैनात थे।

लखनऊ के पास चिनहट क्षेत्र में अंग्रेजी फौज से लोहा लेते समय उदा देवी के पति मक्का पासी मारे गये।कहा जाता है कि उदा देवी को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा उन्हें अपने पति के बलिदान से प्राप्त हुई। 1857 में लखनऊ के सिकंदराबाद क्षेत्र मे गदर हुआ तो लखनऊ में घेराबंदी के समय लगभग 2000 भारतीय सिपाही 'सिकंदराबाद बाग'मे शरण लिए हुए थे।ब्रिटिश फौजियों ने 16 नवम्बर 1857 को सिकंदराबाद बाग को घेरकर इन 2000 सिपाहियों का कत्लेआम किया। इस लड़ाई के दौरान वीरांगना उदा देवी ने पुरुषों का वस्त्र पहनकर कुछ गोला बारूद और एक बंदूक कारतूसों के साथ लेकर सिकंदराबाद बाग में एक घने उंचे चौड़े पीपल के पेड़ पर चढ़कर डाल पर पत्तियों के बीच छिप गईंऔर वहाँ से नीचे अंग्रेज सैनिकों का निशाना लेकर गोलियां चलाने लगीं और इस प्रकार उन्होंने 36 अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।अंग्रेज सैनिकों को अपने शहादत तक अपने शरणस्थली सिकंदराबाद बाग मे प्रवेश नही करने दिया।गोलियों से छलनी हुये शरीर में तब भी एक पिस्तौल और कुछ बचे हुए गोला बारूद की थैली बंधी हुई थी, अतः बड़ी सावधानी से मृत्य शरीर पर पुनः भयभीत अंग्रेज सैनिकों द्वारा गोलियां बरसाई गई ताकि सुनिश्चित हो जाय कि पूर्णतः मर चुकीं हैं। जहाँ यह घटना घटी वहां कैप्टन वायलस और डाउसन जो मौके वारदात पर मौजूद थे समझ ही नही पा रहे थे कि गोलियां कहाँ से आ रही हैं। बहुत ध्यान से देखने पर उन्हें पता चला कि पीपल के पेड़ पर लाल जैकेट पहने कोई सैनिक यह कार्य कर रहा है, फिर  अंग्रेज सैनिकों ने निशाना साध कर उस सैनिक को गोली मारी। खून से लथपथ जब उस सैनिक का शरीर नीचे ज़मीन पर गिरा तो अंग्रेज सैनिक यह देख कर अंचभित रह गये कि वह एक महिला सिपाही थी जिसे बाद मे उदा देवी पासी के रुप मे पहचाना गया।कहा जाता है कि उनकी इस अद्भुत वीरता से अभिभूत होकर अंग्रेज काल्विन "कैम्बेल" ने अपनी हैट उतारकर शहीद उदा देवी को श्रद्धाजंलि अर्पित की थी।  आज लखनऊ के हजरतगंज क्षेत्र के पास स्थित सिकंदराबाद बाग और चौराहे पर उनकी प्रतिमा स्थापित है जहाँ उन्होंने वीरगति प्राप्त की थी। हर वर्ष 16 नवम्बर और 15 अगस्त को उनको  श्रद्धा सुमन अर्पित करने हेतु लोग वहाँ एकत्रित होकर उनकी मूर्ति को माल्यार्पण करते हैं।उनके जन्मदिन 14 अप्रैल को पूरे भारतवर्ष में बड़े धूमधाम से विशेषकर पासी जाती द्वारा मनाई जाती है।  आजादी की इस वीरांगना को शत शत प्रणाम!

रंजना चन्द्रा
 

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