मीरा
कान्हा-प्रेम के प्रसून-सी प्रीत के पालने में पली
थार की धूल में
पावन बयार बन बही
अभिमंत्रित अविरल
अभिसंचित थी जग में
महकी कुडकी की
मोहक मिट्टी में
कान्हा-प्रेम के प्रसून-सी
प्रीत के पालने में पली
झील के निर्झर किनारे पर
भक्ति की गूँज-सी
अंतरमन को कचोटती
व्याकुल कथा-सी
जेठ की दोपहरी
लू के थपेड़ों में ढलती
खेजड़ी की छाँव को
तलाशती तपिश-सी
सूर्यास्त के इंतज़ार में
जलती धरा-सी
क्षितिज के उस पार
आलोकित लालिमा-सी
अकल्पित अयाचित
उत्ताल लहर बन लहरायी
मेवाड़ के चप्पे-चप्पे में
चिर-काल तक चलती
हवाओं में गूँजती
प्रेमल साहित्यिक सदा थी
जग के सटे लिलारों पर लिखी
प्रेम की अमर कहानी
उदासी, वेदना, करुणा की
एकांत संगिनी
पीटती लीक पगडंडियाँ-सी
प्रीत की पतवार से खेती नैया
लेकर आयी मर्म-पुकार
रेतीले तूफ़ान में
स्पंदित आनंदित हो ढली
शीतल अनल-शिखा-सी
मीरां थी वह।
अनीता सैनी
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