सखी री होली आई
छा रही अजब बहार, सखी री होली आई है।

चले फागुनिया सरस बयार
सखी री होली आई है।
छा रही अजब बहार,
सखी री होली आई है।
रंग-बिरंगे हैं सब नर-नारी,
भीगे तन,भीग रही सारी,
रंग-गुलाल से मति भ्रमित है
कौन है साली,कौन घरवारी ।
चेहरे सभी के गुलनार,
सखी री होली आई है।
हाथ पकड़ न करो जोरा-जोरी,
भोली नहीं है बरसाने की छोरी,
पिए हो तुम भांग का प्याला,
नशा उतारे ब्रज की लट्ठ होरी,
बरसेगा रंग धुआंधार
सखी री होली आई है।
कुंज गली में मच रही धूम है,
ग्वाल-बाल सब मस्ती में चूर हैं,
छाया है चहुँ-दिशि सरूर है
आयेगा कान्हा आज जरूर है।
रास रचायें एक बार
सखी री होली आई है।
तन- मन में भरी उमंग है,
नाचे-गावें सभी संग संग हैं ,
कोई बजाये ढप,कोई चंग हैं ,
मन में हिलोरें लेती तरंग हैं।
करें प्रेम -मनुहार
सखी री होली आई है।
राजबाला शर्मा 'दीप'
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