नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और भारत रत्न नेल्सन मंडेला

जैसा गौरव हमारे देश में महात्मा गांधी को प्राप्त है वैसे ही दक्षिण अफ्रीका में मंडेला को प्राप्त है उन्हें दक्षिण अफ्रीका का “राष्ट्रपिता” माना जाता है। लोगों में मंडेला के प्रति अत्यधिक प्रेम और सम्मान है। इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि नेल्सन मंडेला को वहां सम्मान सहित “मदीबा” कहकर पुकारते हैं। दक्षिण अफ्रीका में प्रायः इस शब्द का उपयोग बुजुर्गों के लिये किया जाता है।

Mar 21, 2024 - 14:16
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नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और भारत रत्न नेल्सन मंडेला
bharat ratna

नेल्सन मंडेला को पूरी दुनिया में उनके रंगभेद के विरोध के लिए जाना जाता है। उन्होंने सभी अश्वेत लोगों के हक़ का समर्थन और उनकी सुरक्षा हेतु रंगभेद का विरोध किया। उन्होंने अहिंसा का मार्ग अपनाया और बिना किसी का खून बहाये ही देश को इस बुराई से आजाद कराया और इसी संघर्ष के कारण उन्होंने अपने जीवन के 27 साल जेल में गुजारे। इस दौरान उन्होंने रॉबेन द्वीप के कारागार में एक कोयला खनिक के तौर पर कार्य किया। उनके इस संघर्ष का अंत 1990 में हुआ जब उन्होंने श्वेत सरकार के साथ समझौते के बाद एक नए दक्षिण अफ्रीका को बनाया। इस प्रकार उन्हें साउथ अफ्रीका में लोकतन्त्र के प्रथम संस्थापक, राष्ट्रीय मुक्तिदाता और उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार किया गया है।

जैसा गौरव हमारे देश में महात्मा गांधी को प्राप्त है वैसे ही दक्षिण अफ्रीका में मंडेला को प्राप्त है उन्हें दक्षिण अफ्रीका का “राष्ट्रपिता” माना जाता है। लोगों में मंडेला के प्रति अत्यधिक प्रेम और सम्मान है। इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि नेल्सन मंडेला को वहां सम्मान सहित “मदीबा” कहकर पुकारते हैं। दक्षिण अफ्रीका में प्रायः इस शब्द का उपयोग बुजुर्गों के लिये किया जाता है। ये एक सम्मान-सूचक शब्द है। उनके सम्मान में 2004 में जोहान्सबर्ग में स्थित सैंडटन स्क्वायर शॉपिंग सेंटर में मंडेला की मूर्ति स्थापित की गयी और सेंटर का नाम बदलकर नेल्सन मंडेला स्क्वायर रख दिया गया था।

मंडेला के सम्मान में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने ये निर्णय लिया कि उनके जन्मदिन वाले दिन को नेल्सन मंडेला अन्तर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाएगा। उनके अभूतपूर्व और सहराहनीय कार्य हेतु रंगभेद विरोधी संघर्ष में उनके योगदान के लिए उन्हें ये सम्मान दिया गया है। भारत देश में भी 1990 में उन्हें देश के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था और नेल्सन मंडेला भारत रत्न पाने वाले दूसरे विदेशी व्यक्ति भी बने थे।

नेल्सन मंडेला का जन्म सन 1918 में 18 जुलाई को हुआ था। इनका जन्म स्थान म्वेज़ो, ईस्टर्न केप, दक्षिण अफ़्रीका संघ में हुआ था। इनके माता पिता गेडला हेनरी म्फ़ाकेनिस्वा और नेक्यूफी नोसकेनी थे। नेल्सन मंडेला को पिता ने ‘रोलिह्लाला’ नाम दिया था जिसका अर्थ होता है – पेड़ की डालियों को तोड़ने वाला या फिर प्यारा शैतान बच्चा। इनके पिता जनजातीय सरदार थे और वहां की स्थानीय भाषा में सरदार के बेटे को मंडेला कहते हैं। यही उपनाम उनके नाम से जुड़ा। नेल्सन मंडेला अपने सभी भाइयों में तीसरे नंबर के पुत्र थे और अपनी माता की पहली संतान थे। उनकी माता मेथोडिस्ट थी। नेल्सन मंडेला के पिता गेडला हेनरी मवेजो गांव के मुखिया थे। मुखिया का पद उन्हें थेंबू के राजा से मिला था। इस पद को ब्रिटिश शासन से संस्तुति थी। इस संस्तुति के कारण वह स्थानीय दंडाधिकारी थे। इस अधिकार का प्रयोग वह निष्पक्ष भाव से करते थे। न्यायप्रियता की चर्चा उन्हें गौरवान्वित करती थी। सरकारी नियुक्ति के कारण गुजारा- भत्ता के साथ स्थानीय कर का एक छोटा हिस्सा भी उन्हें मिलता था। शासकीय व्यवस्था में राजा और मुखिया के बीच एक मजिस्ट्रेट होता था।

एक दिन एक पशुपालक ने मजिस्ट्रेट के यहां बैल चोरी होने की शिकायत की। मजिस्ट्रेट ने शिकायत पर संज्ञान लेते हुए मंडेला के पिता को सम्मन भेजा। मंडेला के पिता ने उपस्थित होने से इनकार करते हुए जवाब भेजा कि मजिस्ट्रेट को सम्मन देने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह मुकदमा पहले उनके पास आना चाहिए। इस जवाब से मजिस्ट्रेट तिलमिला उठा। उसने अवज्ञा का आरोप लगाकर बिना किसी पूछताछ या जांच के मुखिया का पद समाप्त कर दिया। अचानक उनके पिता की आय के साथ मान-सम्मान भी जाता रहा। विवश होकर परिवार वहां से दूर कूनू नामक गांव में जाकर रहने लगा। नेल्सन मंडेला उस समय इन बातों से अनजान थे। बड़े होने पर उन्हें इस घटना की जानकारी हुई तो उनमें गोरों के अत्याचार से लड़ने वाले विचारों ने जन्म लिया। इस घटना का उन पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि सत्ता में आने के बाद भी वह सदाचारी और न्यायपूर्ण बने रहे। दूसरी बार साउथ अफ्रीका का राष्ट्रपति न बनने और सत्ता से संन्यास लेने की घोषणा पर भी इस घटना का असर था। इस प्रकार जन्म के कुछ दिनों बाद घटी

एक घटना, उस पर पिता की प्रतिक्रिया और उनका आचरण नेल्सन मंडेला के चरित्र को गढ़ने वाले प्रमुख कारक रहे। जब नेल्सन मंडेला 12 वर्ष के थे उन्होंने अपने पिता को खो दिया था। मंडेला की प्रारंभिक शिक्षा क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल से पूरी हुई थी जिस के बाद उन्होंने स्कूली शिक्षा मेथोडिस्ट मिशनरी स्कूल से पूर्ण की है। स्नातक की शिक्षा पूरी करने के लिए उन्होंने ‘हेल्डटाउन’ में एडमिशन लिया। इस कॉलेज की खास बात ये थी कि ये विशेष रूप से अश्वेतों के लिए बनाया गया कॉलेज था। शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने मान के साथ ही जोहान्सबर्ग में रहने का फैसला किया। उन्होंने आजीविका के लिए अलग अलग नौकरियां की जैसे कि – सोने की ख़दान में चौकीदार की नौकरी की, इसके अतिरक्त एक क़ानूनी फ़र्म में लिपिक की नौकरी भी की ।

नेल्सन मंडेला ने तीन शादियां की थी और जीवन के अलग अलग हिस्सों में इन तीनों ही पत्नियों ने उनका विशेष साथ दिया। नेल्सन मॉडेला के अपनी तीनों शादियों से कुल 6 संतानें थी। जिसके बाद आगे चलकर उनके कुल 17 पोते और पोतियां हुए। मंडेला कानून की पढाई समाप्त करने के बाद 1944 में अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गए और 1948 के बाद सत्तारूढ़ नेशनल पार्टी की रंगभेद नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध में लगे रहे। मंडेला की रंगभेद विरोधी सक्रियता ने उन्हें अधिकारियों के लगातार निशाने पर रखा। 1952 से शुरू होकर, उन्हें रुक-रुक कर प्रतिबंधित किया गया। दिसंबर 1956 में उन्हें देशद्रोह के आरोप में 100 से अधिक अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था, जिन्हें रंगभेद विरोधी कार्यकर्ताओं को परेशान करने के लिए डिजाइन किया गया था। उसी वर्ष मंडेला पर मुकदमा चला और अंततः 1961 में उन्हें बरी कर दिया गया। 1960 में अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस पर प्रतिबंध लगने के बाद, नेल्सन मंडेला ने अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के भीतर एक सैन्य शाखा की स्थापना के लिए तर्क दिया। जून 1961 में, अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के कार्यकारी ने हिंसक रणनीति के उपयोग पर उनके प्रस्ताव पर विचार किया और सहमति व्यक्त की कि जो सदस्य

मंडेला के अभियान में खुद को शामिल करना चाहते हैं, उन्हें अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस द्वारा ऐसा करने से नहीं रोका जाएगा। इसके चलते उमखोंटो वी सिज़वे का गठन हुआ। मंडेला को 1962 में फिर से गिरफ्तार किया गया और कड़ी मेहनत के साथ पांच साल की कैद की सजा सुनाई गई। 1963 में, जब अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस और उमखोंटो वी सिज़वे के कई साथी नेताओं को गिरफ्तार किया गया था, तो मंडेला को उनके साथ हिंसा द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने के लिए मुकदमा चलाने के लिए लाया गया था। 1961 में मंडेला पर देशद्रोह का मुकदमा भी चला था लेकिन अदालत में उन्हें निर्दोष पाया गया।

वर्ष 1962 में उन्होंने रंगभेद विरोधी आंदोलन चलाया। वे इस आन्दोलन के एक प्रमुख व्यक्ति थे और उन्होंने नस्लवादी व्यवस्था के खिलाफ शांतिपूर्वक विरोध किया। इसके चलते उन्हें मजदूरों को हड़ताल के लिए उकसाने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुना दी गयी थी। इसी सजा के दौरान वो अगले 27 साल रॉबेन द्वीप के कारागार में रहे। जिसे सबसे कड़ी सुरक्षा वाली जेल माना जाता था। यहाँ उन्होंने कोयला खनिक के तौर पर कार्य किया और वहां भी अश्वेत कैदियों के हक़ के लिए रंगभेद विरोधी कार्य करते रहे और अनवरत रंगभेद नीति के ख़िलाफ़ लड़ते रहे।

11 फरवरी, 1990 को राष्ट्रपति डी क्लार्क के नेतृत्व वाली दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने मंडेला को जेल से रिहा कर दिया। अपनी रिहाई के कुछ समय बाद, मंडेला को अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस का उपाध्यक्ष चुना गया; वह जुलाई 1991 में पार्टी के अध्यक्ष बने। मंडेला ने रंगभेद को समाप्त करने और दक्षिण अफ्रीका में गैर-नस्लीय लोकतंत्र के लिए एक शांतिपूर्ण परिवर्तन लाने के लिए डी क्लार्क के साथ बातचीत में अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस का नेतृत्व किया।

10 मई 1994 को नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली । यह एक नवजात लोकतांत्रिक देश की शुरुवात थी। विभिन्न देशों के कई गणमान्य व्यक्ति इस सबसे महत्वपूर्ण दिन का हिस्सा बनने आए थे। मंडेला ने अपने भाषण में उन सभी गणमान्य व्यक्तियों का धन्यवाद किया। मंडेला ने अपने देशवासियों को आश्वस्त किया कि उनका देश कभी भी एक-दूसरे के दमन का अनुभव नहीं करेगा। दक्षिण अफ्रीका में लोकतंत्र की स्थापना हो चुकी थी और इसके परिणामस्वरूप बिना किसी भेदभाव वाली सरकार की स्थापना हो गई। मंडेला के लेखन और भाषणों को “आई एम रेडी टू डाई” (1964; संशोधित संस्करण 1986), “नो ईज़ी वॉक टू फ़्रीडम” (1965; विशेष संस्करण 2002), “द स्ट्रगल इज़ माई लाइफ” (1978; संशोधित संस्करण 1990) में संकलित किया गया था और इसके अतिरिक्त “इन हिज ओन वर्ड्स” (2003) तथा उनकी आत्मकथा “लॉन्ग वॉक टू फ्रीडम” (जो उनके प्रारंभिक जीवन और जेल में वर्षों का इतिहास है) 1994 में प्रकाशित हुआ था। उनके संस्मरणों के दूसरे खंड का एक अधूरा मसौदा मंडला लंगा द्वारा पूरा किया गया था जिसे मरणोपरांत जारी किया गया था – “डेयर नॉट लिंगर: द प्रेसिडेंशियल इयर्स” (2017)।

नेल्सन मंडेला को 1993 में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति फ़्रेडरिक विलेम डी क्लार्क के साथ संयुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया। मंडेला को रंगभेद शासन की शांतिपूर्ण समाप्ति के लिए और दक्षिण अफ्रीका के लिए एक नए लोकतंत्र की नींव रखने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मंडेला को विश्व के विभिन्न देशों और संस्थाओं द्वारा 250 से भी अधिक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए हैं जिनमे कुछ प्रमुख पुरस्कार हैं - ऑर्डर ऑफ़ लेनिन, प्रेसीडेंट मैडल ऑफ़ फ़्रीडम, भारत रत्न, गाँधी शांति पुरस्कार और निशान- ए–पाकिस्तान। दिसम्बर 2013 को 95 वर्ष की उम्र में उनका देहांत फेफड़े के संक्रमण के कारण हो गया किन्तु वे आज भी लोगों के बीच एक प्रेरणा के रूप में जीवित है। मंडेला कर्म में विश्वास रखते थे, उनके साहस, धैर्य, जनता से जुड़ाव और त्याग की भावना ने उन्हें अफ्रीका ही नहीं बल्कि विश्व भर के अश्वेत और हाशिये पर मौजूद लोगों का नेता बना दिया। उनका मानना था कि दृढ़ता, जिद्द और विश्वास से हम अपने हर सपने को पूरा कर सकते हैं। उन्होंने अनेक प्रकार के कष्ट सहते हुए भी अपना संघर्ष जारी रखा और अश्वेतों को सम्मान दिलाने के लिए अपना

जीवन होम कर दिया । 27 वर्षों तक जेल का कष्टमय जीवन व्यतीत करने के बाद अंत में उन्हें अपने लक्ष्य में सफलता मिली और दक्षिण अफ्रीकी विरासत में अपना नाम दर्ज कर दिया। नेलसन मंडेला सच्चे अर्थों में स्वतंत्रता प्रेमी और एक देशभक्त इंसान थे। हम सभी को उनके जीवन से प्रेरणा मिलती है कि संघर्षों से घबराना नहीं चाहिए।

रचना दीक्षित

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