दामोदर हरि चापेकर
दामोदर हरि चापेकर उसे बलिदानी परिवार के अग्रज थे जिसके तीनों पुष्पों ने स्वयं को भारत मां की अस्मिता की रक्षा के लिए बलिदान कर दिया इनके पिता श्री हरि विनायक पंत प्रख्यात कथावाचक थे ।
हमारे देश में बहुत से ऐसे नायक है जो स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए लड़ मरे फिर भी वह गुम़नामी के अंधेरे में रहे हालांकि जहां तक त्याग और तपस्या की बात है तो इन्होंने सुप्रसिद्ध लोगों से कम बलिदान नहीं दिए हैं लेकिन इन्होंने कभी इस बात की चिंता नहीं की कि वह प्रसिद्ध हुए या गुमनाम बने रहे क्योंकि इन सभी का उद्देश्य देश को आज़ादी दिलाना था।
हमारे देश के इतिहास में एक ऐसा ही नाम दर्ज़ है जिसने बहुत ही कम उम्र में अपनी जान देश के लिए न्यौछावर कर दी वो स्वतंत्रता सेनानी थे दामोदर हरि चापेकर
पच्चीस जून अट्ठारह सौ उनहत्तर को पुणे में दामोदर चापेकर का जन्म एक रूढ़िवादी परिवार में हुआ था।
दामोदर हरि चापेकर उसे बलिदानी परिवार के अग्रज थे जिसके तीनों पुष्पों ने स्वयं को भारत मां की अस्मिता की रक्षा के लिए बलिदान कर दिया इनके पिता श्री हरि विनायक पंत प्रख्यात कथावाचक थे ।
दामोदर , बाल कृष्ण और वासुदेव यह तीनों उनके पुत्र थे।
तीनों भाइयों ने बचपन में कोई ख़ास शिक्षा प्राप्त नहीं की थी क्योंकि इनके पिता हरि विनायक की आर्थिक स्थिति बहुत मज़बूत नहीं थी , वह दरबारों और दूसरी जगहों पर कीर्तन गाकर आजीविका चलाते थे ।
दरबारों जैसी जगहों पर आने जाने के कारण अपने समय के बड़े-बड़े पंडितों के साथ दामोदर हरि और उनके भाइयों का उठना बैठना था अतः परीक्षाएं पास करने से बेहतर शिक्षा उन्हें ज्ञानियों के साथ उठने बैठने से मिल रही थी।
दामोदर को गायन के साथ-साथ काव्य पाठ और व्यायाम का भी बहुत शौक था।
बचपन से ही सैनिक बनने की इच्छा दामोदर हरि चापेकर के मन में थी ।
महर्षि पटवर्धन और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उनके आदर्श थे ।
उनके घर में लोकमान्य तिलक का ' केसरी ' नामक समाचार पत्र आता था जिसे पूरा परिवार पढ़ता था
दामोदर हरि , बाल कृष्ण हरि और वासुदेव हरि यह तीनों भाई बाल गंगाधर तिलक के संपर्क में थे और तिलक जी को गुरुवत् सम्मान देते थे।
एक बार जब तिलक जी अंग्रेजों द्वारा गिरफ़्तार हुए तो दामोदर जी बहुत रोए इस पर उनकी मां ने उनसे कहा तिलक जी ने हमें रोना नहीं लड़ना सिखाया है, दामोदर ने मां की बात गांठ बांध ली।
उन्होंने ' राष्ट्र हितेच्छु मंडल ' नाम से अपने जैसे युवकों की टोली बना ली इन सब को जब अदन जेल में वासुदेव बलवंत फड़के कि अमानवीय मृत्यु का समाचार मिला तो सब ने सिंहगढ़ दुर्ग पर जाकर उनके अधूरे काम को पूरा करने का संकल्प लिया।
एक बार यह मुंबई गए वहां लोग रानी विक्टोरिया के सम्मान हो रही सभा में रानी की प्रशंसा कर रहे थे परंतु दामोदर को यह प्रशंसा नहीं भायी
दामोदर ने रात में मूर्ति पर कालिख पोत दी और गले में जूतों की माला डाल दी इससे हड़कंप मच गया ।
उन्हीं दिनों पुणे में प्लेग फैल गया शासन ने मिस्टर रैण्ड को प्लेग कमिश्नर बनाकर वहां भेजा
वह प्लेग की जांच के नाम पर घरों में पूजा गृहों में जूतों समेत घुस जाता और घर की महिलाओं का अपमान करता उसके प्लेग नियंत्रित तरीके दमनकारी थे घरों में जबरन घुसकर प्लेग के लक्षण ढूंढते और औरतों को जांच के नाम पर अलग कैंप में ले जाते हैं ।
तीनों भाइयों को साफ़ समझ आ रहा था कि महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के लिए वॉल्टर रैंड ही ज़िम्मेदार है इस दमन के विरोध में रैंड का वध करने की ठान ली
इन अन्नाय के संदर्भ में तिलक जी ने तीनों भाइयों से कहा इस समय अंग्रेजों के अत्याचार के विरोध में तुम लोग क्या कर रहे हो , हम भारतीयों के साथ ग़लत हो रहा है
दामोदर एवं उनके भाइयों तथा मित्रों ने इसका बदला लेने का निश्चय किया तिलक जी ने उन्हे आशीर्वाद दिया
इसके बाद तीनों भाइयों ने क्रांति का मार्ग अपना लिया इन्होंने संकल्प लिया कि इन अंग्रेज़ अधिकारियों को छोड़ेंगे नहीं
वह अवसर भी उन्हें जल्दी ही मिल गया
बाइस जून अट्ठारह सौ सत्तानवे को रानी विक्टोरिया साठवां राज्यरोहण दिवस था
पुणे के गवर्नमेंट हाउस में राज्य आरोहण की हीरक जयंती मनाई जानी थी इसमें वॉल्टर रैंड और आर्यस्ट भी शामिल हुए शासन की ओर से पूरे देश में इस दिन समारोह मनाए गए।
रात के समय एक क्लब की पार्टी समारोह से रैंड और आर्यस्ट निकले और अपनी-अपनी बग्गी पर सवार होकर चल पड़े ।
योजना के अनुसार दामोदर रैंड की बग्गी के पीछे चढ़ गया और उसे गोली मार दी
उधर बाल कृष्ण हरि ने भी आर्यस्ट पर गोली चला दी इसमें आर्यस्ट नामक अधिकारी तो वहीं मारा गया रैंड भी बुरी तरह घायल हो गया फिर तीन जुलाई को अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई।
पुणे शहर में हाहाकार मच गया परंतु वे पुलिस के हाथ ना आए ।
अधीक्षक ब्रूइन ने घोषणा की इन फरार लोगों को गिरफ़्तार करने वाले को नकद पुरस्कार दिया जाएगा
चापेकर बंधुओं के क्लब में ही दो द्रविड़ भाइयों के विश्वासघात से दामोदर और फिर बालकृष्ण पकड़े गए ।
पुरस्कार के लालच में आकर द्रविड़ बंधुओं ने अधीक्षक ब्रुइन को चापेकर बंधुओं का सुराग दे दिया इन विश्वास घातियों को कुछ समय पश्चात वासुदेव ने गोली से उड़ा दिया
न्यायालय में न्याय का नाटक हुआ और अठारह अप्रैल अट्ठारह सौ अट्ठानवे को दामोदर को फांसी दे दी गई हंसते हुए फांसी का फंदा उन्होंने खुद ही गले में डाल लिया अंतिम समय में इनके हाथ में लोकमान्य बाल गंगाधर द्वारा लिखित तथा हस्ताक्षरित ग्रंथ गीता रहस्य था जो तिलक जी ने स्वयं ही उन्हें जेल में भेंट किया था।
कुछ समय बाद इनके दोनों भाइयों को भी मौत की सज़ा दी गई ।
इस घटना के बाद लोकमान्य तिलक के करीबी लाला लाजपत राय ने लिखा था चापेकर बंधु वास्तव में भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के जनक थे
लेकिन स्कूल के इतिहास में स्वतंत्रता संग्राम में इन तीनों भाइयों की कहानी नहीं पढ़ाई जाती भारत के स्वतंत्रता संग्राम को अहिंसक साबित करने की ज़िद में शायद इनका नाम पाठ्यपुस्तक में शामिल नहीं किया गया होगा ।
भले ही आज़ादी के परवानों की भांति कहीं पर इनका जिक्र हो या ना हो लेकिन यह और इनका योगदान हमारी आज़ादी के महान नायकों के जितना ही महत्वपूर्ण है
इनकी तीनों की मूर्तियां पुणे के चिंचवाड में लगी हैं
दो हज़ार अट्ठारह में भारत सरकार ने दामोदर हरि चापेकर का डाक टिकट भी जारी किया है आज़ादी के ऐसे महान नायक को हमारा प्रणाम।
नीना महाजन
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