आजादी और साहित्य 

साहित्य  मनुष्य और  मनुष्यता विरोधी ताकतों को नेस्तनाबूद  करने का महास्वप्न  देखता है।" आजादी और साहित्य  में गहरा संबंध  है।किसी भी देश का साहित्य वहाँ के सामाजिक  ,सांस्कृतिक और राजनीतिक पक्षों  का यथार्थ  चित्रण  होता है।साहित्य  की निगाहों में आजादी के सरोकार  को समझना परम आवश्यक  है। बद्री सिंह भाटिया ने लिखा है-" विकृत हो रही सामाजिक  दशा को कैसे दुरूस्त  किया जाए , यह दृष्टिकोण  प्रदान  करना साहित्य  का काम है।"

Nov 23, 2023 - 13:04
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आजादी और साहित्य 
freedom and literature

प्रख्यात साहित्यकार अशोक वाजपेयी  ने लिखा है-" सत्ता का साहित्य  से संबंध  बड़ा  तनाव भरा होता  है।वह कभी भी घोर विरोध में बदल जाता है।जब सत्ता बहुत क्रूर  ,अहंकारी  और  विनाशकारी हो जाती है  तो साहित्य  सत्ता से विरोधी हो जाता  है।सत्ता की जो विकृतियाँ  होती हैं ,साहित्य  उनको लेकर  हमेशा मुखर रहा है।
किसी भी देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित  प्रतिबिम्ब होता है। जबतक आम जनता की पीड़ा और  करूणा  के साथ  साहित्य  स्वर  में स्वर  नहीं मिलाता हम उसे कैसे साहित्य  की परिभाषा पर खरा उतरा हुआ मानेगें।

साहित्य  मनुष्य और  मनुष्यता विरोधी ताकतों को नेस्तनाबूद  करने का महास्वप्न  देखता है।" आजादी और साहित्य  में गहरा संबंध  है।किसी भी देश का साहित्य वहाँ के सामाजिक  ,सांस्कृतिक और राजनीतिक पक्षों  का यथार्थ  चित्रण  होता है।साहित्य  की निगाहों में आजादी के सरोकार  को समझना परम आवश्यक  है। बद्री सिंह भाटिया ने लिखा है-" विकृत हो रही सामाजिक  दशा को कैसे दुरूस्त  किया जाए , यह दृष्टिकोण  प्रदान  करना साहित्य  का काम है।"

स्वतंत्रता संग्राम  में साहित्य  ने महत्वपूर्ण  भूमिका निभाई  है। उन्नीसवीं शताब्दी  के शुरू होते  ही राष्ट्रवादी विचार  उभरने लगे और विभिन्न  भारतीय  भाषाओं  के साहित्य  अपने आधुनिक युग  में प्रवेश  करने लगे,तब अधिक  से अधिक  साहित्यकार  साहित्य  को देशभक्तिपूर्ण  उद्देश्यों  के लिए प्रयोग करने लगे।साहित्य  में पराधीनता के बोध और  आजादी की जरूरत  को स्पष्ट  अभिव्यक्ति  मिलने लगी।साहित्य  ने देश की आजादी के लिए 
जनसाधारण  को हर प्रकार  से बलिदान  करने के लिए  उत्प्रेरित  किया ।इसके अतिरिक्त  साहित्य  ने
राष्ट्रवादी आन्दोलन  को गति प्रदान  किया।आरंभिक आधुनिक साहित्य  के इतिहास  में दो महान  साहित्यकार  बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय  (1838-94 ) और  गोवर्धनराम माधवराम  त्रिपाठी(1855-1907 ) विशेष रूप  से उल्लेखनीय  है।

अपने प्रसिद्ध  गीत ' बन्दे मातरम ' के साथ ' आनन्दमठ ' देशभक्तों की  पीढ़ियों  के लिए  प्रेरणा का श्रोत  बन गया।आधुनिक  गुजराती साहित्य  में गोवर्धनराम त्रिपाठी  ने अपने विख्यात  उपन्यास ' सरस्वतीचन्द्र ' में देश की गुलामी की समस्याओं  और  उनसे जूझने के लिए  संभावित  कार्यनीति का वर्णन  किया ।विष्णु कृष्ण  चिपलूनकर  (1850-  82) ने लिखा " अंग्रेजी  शिक्षा द्वारा रौंदी गयी हमारी स्वतंत्रता तबाह हो चुकी  है।"

प्रथम  विश्व  युद्ध  के बाद  परिस्थितियाँ  तेजी से बदली।अब मुद्दा केवल आजादी का नहीं रहा।अब " आजादी किसके लिए  " जैसे प्रश्न उठने लगे ।प्रेमचंद  की एक कहानी " आहुति " में  रूपवती कहती है -" कम से कम मेरे लिए  स्वराज  का तो यह अर्थ  नहीं कि जाॅन की  जगह  गोविंद  बैठ जाए।  वह फिर  कहती  है-" अगर स्वराज  आने पर भी  संपत्ति का यही प्रभुत्व  रहे और  पढ़ा - लिखा समाज यों ही स्वर्थान्ध बना रहे तो मैं कहूँगी  कि ऐसे स्वराज का न आना ही अच्छा।"

विख्यात  बंगाली साहित्यकार  शरतचंद्र चट्टोपाध्याय (1876- 1938 ) ने ' पाथेर दासी ' (1926) जैसा उपन्यास  लिखा जिसमें उन क्रांतिकारियों  को आदर्श  रूप में रखा जो देश की मुक्ति  के लिए  क्रांतिकारी  हिंसा का रास्ता  अपना रहे थे ।उल्लेखनीय  है कि इस उपन्यास  पर ब्रिटिश  सरकार  ने प्रतिबंध  लगा दिया था।इस युग के महान उपन्यासकारों  रवीन्द्रनाथ( बांगला), प्रेमचंद  ( हिन्दी) , कल्कि( तमिल), फकीर  मोहन  सेनापति ,गोपीनाथ  महंती( उड़िया) आदि ने अपनी रचनाओं से भारत में  चल रहे राष्ट्रीय  आंदोलन को उनके तमाम  अंतर्विरोधों  के साथ  प्रस्तुत  किया है।प्रेमचंद  के बाद  हिन्दी में अज्ञेय,  जैनेन्द्र और  यशपाल  ने ब्रिटिश  सरकार  के विरूद्ध  सशस्त्र  विरोध करने वाले  गुप्त  क्रांतिकारी दलों का चित्रण  किया है।यशपाल  के ' दादा कामरेड (1941)और  ' पार्टी कामरेड (1946) में इस यथार्थ  का सफल चित्रण  किया है। रजनीकांत बरदलै असमिया के प्रसिद्ध उपन्यासकार हुए जिन्होंने ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना कर अपनी देशभक्ति की भावना को वाणी दी । उनके उपन्यास 'रहदैलिगरी' में गुलामी के जुए को उतार फेकने का आह्वान  किया गया।श्री दंडिनाथ कलिता के उपन्यास 'साधना' (1928 ) पर गांधी  जी का प्रभाव  स्पष्ट दिखाई  देता है।तमिल  उपन्यासकार  कल्कि कृष्णमूर्ति  ने 
अपने उपन्यासों में राष्ट्रीय  चेतना को वाणी दी है ।उनका उपन्यास  'त्यागभूमि '  इस दृष्टि से उल्लेखनीय  है।कन्नड़ में  देश के स्वाधीनता संग्राम में चित्रण  करने वाले उपन्यासों में वि• म• इमामदार  का ' मूराबट्टे' त• रा• सुब्बाराव  का ' रक्तदर्पण ' ,गोरूर  रामस्वामी  अयंग्गर का ' मेरवणिगे '  उल्लेखनीय  हैं।

सारांश में , 1854  से 1947  तक लिखे गये भारतीय  भाषाओं के उपन्यासों में राष्ट्रीय  चेतना के अलग- अलग पक्षों  की अभिव्यक्ति हुई  है।यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत  के उपन्यासकारों ने गुलाम  भारत  के यथार्थ  का संपूर्णता में पेश  कर आजादी की लड़ाई  में अन्यतम योगदान दिए  हैं।

अब अगर  हिन्दी साहित्य  की काव्य विधा की इस संदर्भ  में उल्लेखनीय योगदान  की बात  की जाए  तो भारतेन्दु युग का साहित्य  अंग्रेजी शासन  के विरूद्ध  हिन्दुस्तान  की संगठित  राष्ट्रभावना का प्रथम आह्वान  के रूप  में जाना जाता है।इसके बाद  द्विवेदी युग ने अपने प्रौढ़तम  स्वरूप में स्वतंत्रता संग्राम  में विशेष योगदान  दिया ।

भारतेन्दु की ' भारत  दुर्दशा ' ने राजनीतिक  चेतना को जागृत कर उसे तीक्ष्ण  बनाई तो मैथिलीशरण शरण गुप्त  ने 'भारत - भारती ' लिखकर  अपने अतीत  के गौरव को वर्णित  कर बिट्रिश साम्राज्यवाद  के विरुद्ध  गहरा क्षोभ  प्रकट किया।फिर  छायावादी कवियों ने राष्ट्रीयता और  देशप्रेम के भावों से भरी कविताएं लिखी।महाप्राण  निराला ने ' वर दे वीणा- वादिनी  वर दे ' , ' भारतीय जय विजय करे ' , 'शिवाजी का पत्र '  तो महाकवि जयशंकर प्रसाद  की ' अरूण  यह मधुमय देश हमारा ' , तथा चन्द्रगुप्त  नाटक में  ' हिमाद्रि तुंग श्रृंग से '  में प्रखर  राष्ट्रीयता की अभिव्यक्ति हुई।

आजादी के इस महासंग्राम  में इनके अलावे  श्रीधर  पाठक , रामनरेश  त्रिपाठी , गया प्रसाद  शुक्ल स्नेही , माखनलाल लाल चतुर्वेदी ,बालकृष्ण  शर्मा  नवीन, रामधारी सिंह  दिनकर , सुभद्रा  कुमारी चौहान, सिया शरण गुप्त  , सोहनलाल द्विवेदी ,श्याम  नारायण  पाण्डेय  , अज्ञेय  आदि कवियों ने ओजपूर्ण  कविताओं का सृजन  कर राष्ट्रीय  स्वतंत्रता  आंदोलन  की गति को तीव्र और  तीक्ष्ण किए। '

एक भारतीय  आत्मा ' के रूप  में माखनलाल लाल  चतुर्वेदी ' हिम किरीटनी ' , ' हिमतरंगिनी ', ' समर्पण ' आदि काव्य- कृतियों के माध्यम  से राष्ट्रीयता की भावना को संचरित और संप्रेषित  किए ।सम्पादक माखनलाल चतुर्वेदी  को ब्रिटिश हुकूमत क्रुद्ध  और  सशंकित  होकर जब देशद्रोह  के आरोप  में कारागार  में बंद कर दिए तो कानपुर  से प्रकाशित गणेश शंकर विद्यार्थी  के पत्र ' प्रताप ' और  महात्मा गांधी के ' यंग इंडिया ' ने उसका कड़ा विरोध  किया। ' एक भारतीय  आत्मा ' के नाम से ख्यात  चतुर्वेदी  जी ने 'पुष्प  की अभिलाषा ' शीर्षक कालजयी  कविता में ये पंक्तियाँ लिखकर  देशप्रेम के परचम लहराए तथा राष्ट्र  के लिए  उत्सर्ग  होने का संदेश  दिए-
" मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक ,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जाए  वीर  अनेक।"

वीर  रस की अपनी प्रसिद्ध कविता ' झांसी की रानी ' और ' वीरों का कैसा हो वसंत ' लिखकर कवयित्री  सुभद्रा  कुमारी चौहान  ने देशभक्ति और पराक्रम की अविरल  धारा   प्रवाहित  की-
"कह दे अतीत अब मौन त्याग, 
लंके, तुझमें क्यों लगी आग?
ऐ कुरूक्षेत्र! अब जाग , जाग ,
बतला अपना अनुभव  अनंत ,
वीरों का कैसा  हो  वसंत ? "

दिनकर की हुंकार,  रेणुका ,विपथगा  में कवि ने ब्रिटिश शासन  के विरूद्ध अपनी प्रखर ध्वंसात्मक  दृष्टि का परिचय  देते हुए  क्रान्ति का बिगुल बजाया है।  ' कुरूक्षेत्र ' काव्य  की इन पंक्तियों को पढ़िए-
"शूर धर्म  है अभय दहकते
अंगारों पर चलना ,
शूर धर्म  है शाणित  असि पर
धर कर चरण मचलना।"
तथा
"  उठो - उठो कुरीतियों की राह तुम रोक दो ,
बढ़ो- बढ़ो कि आग में गुलामियों को झोंक दो।"

लक्ष्मीनारायण पाण्डेय  की  'हल्दीघाटी' तथा ' जौहर ' में  कहीं उद्बोधन और  क्रान्ति तो कहीं सत्य, अहिंसा के भाव  मुखरित  हुए हैं। इसके अतिरिक्त  रामनरेश त्रिपाठी की कौमुदी , मानसी ,पथिक ,स्वप्न  आदि काव्य संग्रह  देश  के लिए मन में उत्सर्ग  की भावना  भरते हैं।

गोपाल सिंह 'नेपाली ' की कविता भी क्रान्ति के लिए  प्रेरित  करती हैं। उनकी प्रसिद्ध  कविता ' भाई- बहन "
की इन पंक्तियों  को पढ़िए-
" तू चिंगारी बनकर  उड़ री, जाग - जाग मैं ज्वाल बनूँ,
तू बन जा हहराती गंगा,  मैं  झेलम बेहाल  बनूँ।
आज बसंती चोला तेरा मैं  भी  सज लूँ  , लाल बनूँ ,
तू भगिनी  बन क्रांति  कराली , मैं भाई विकराल  बनूँ।
---------
ह अपराध  कलंक सुशीले , सारे फूल जला देना ,
जननि  की जंजीर  बज रही ,चल तबियत  बहला लेना।"

इसप्रकार आजादी के आन्दोलन के प्रारंभ  से लेकर  स्वतंत्रता प्राप्ति  तक हिन्दी काव्यों  में  राष्ट्रीय चेतना ,संघर्ष और   क्रांति  के भाव ओजपूर्ण शैली  में अभिव्यक्त हुए हैं।

संस्कृत  साहित्यकारों  ने भी देशप्रेम  के राग को अपनी रचनाओं में समाहित  कर जन- जन को जगाने का अविस्मरणीय कार्य  किया। इस संदर्भ  में प्रख्यात साहित्यकार डॉक्टर  शंकरलाल  शास्त्री ने लिखा है-" वैदिक  विद्वान् सातवलेकर जी को वैदिक और  राष्ट्रीयता  से ओतप्रोत  प्रकाशित  लेख के कारण  क्रोधित हुए। 

 अंग्रेजों ने उन्हें सात वर्ष  के कठोर  कारावास  की सजा सुनाई  थी तो भी बिना विचलित  हुए वे देश  सेवा में  लगे रहे।संस्कृत  रचनाकारों से प्रभावित होकर  तत्कालीन गुरूकुलीय परम्परा  के तहत अध्ययन  करने वाले संस्कृत 
महाविद्यालयों के छात्रों ने आजादी की लड़ाई  में महत्वपूर्ण योगदान  दिया। राष्ट्रीय  जागरण के अग्रदूत एवं राष्ट्रीय  शिक्षा के अमर पुरोधा लोकमान्य  बालगंगाधर तिलक  ने केसरी पत्र में ' देशस्य दुर्भाग्यं ' और ' इमे उपायाः न स्थायिनः ' जैसे  प्रभावी  लेखों के कारण उन्हें अंग्रेजों ने छह वर्ष  के लिए  वर्मा के मांडले जेल में भेज दिया था। इसी जेल में उन्होंने ' गीता रहस्य ' नामक  भाष्य  लिखा जो प्रसिद्ध है।

' स्वराज्य  हमारा जन्मसिद्ध अधिकार  है और  मैं इसे लेकर  रहेगा ' का नारा देकर  उन्होंने  आजादी का मार्ग  प्रशस्त  किया। पंडित  अंबिकादत्त व्यास विरचित 'शिवराज  विजयम् 'और मथुरा प्रसाद दीक्षित द्वारा रचित  ' भारत विजयम् ' द्वारा आजादी का शंखनाद  फूंका गया।आजादी के  प्रखर भाव के कारण ' भारत विजयम् ' नाटक को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया था।डॉक्टर श्रीधर भास्कर  वर्णेकर की  ' विवेकानंद विजयम् ' भी प्रसिद्ध  कृति  है। पंडित  वैद्यनाथ शास्त्री जैसे न जाने कितने ही विद्वान् थे जिन्होंने  आजादी के लिए अपना योगदान  दिया।

पंडित  शिवदत्त  शुक्ल ,पंडित  जय राम शास्त्री  ने कई  बार जेल की यातनाएं सही। पंडित  चंद्रधर  शर्मा   गुलेरी ने भी संस्कृत  में आजादी से संबंधित  रचनाएं  की।  संस्कृत  पत्रिकाएं ने भी आजादी की मशाल जलाई।संस्कृत  की सर्वप्रथम  पत्रिका 1866 में वाराणसी से ' काशी विद्या सुधा निधि (1866-1917 ) प्रकाशित हुई । 1893 में बंगाल से ' संस्कृत चंद्रिका ' प्रकाशित  हुई। इन पत्रिकाओं का आजादी की लड़ाई  में उल्लेखनीय  भूमिका रही।"

जश्न- ए- आजादी  में उर्दू  अदब की भी महत्वपूर्ण  भूमिका रही।इस संदर्भ  में प्रख्यात लेखक  डॉक्टर नरेश लिखते हैं-"अंग्रेजों के खिलाफ मैदाने- जंग में सरज़मी की आन के लिए  कई उर्दू शायरों ने अपनी कलम   से आत्म -  बलिदान  के लिए  हिम्मत और  बहादुरी के जज़्बे को उकेरने वाली शायरी लिखकर आज़ादी के जंग  में महत्वपूर्ण योगदान  दिए  और कई शायरों ने तो हँसते हुए  फाँसी के फन्दे को चूम लिए। उर्दू शायरों  में रहीम- उद्- दीन- इजाद ,ज़फ़रयाब रसीख देहलवी,  गजनफर  सईद ,अजीज देहली ,इस्माइल  फौक प्रसिद्ध  हैं।

19वीं सदी के अन्त में स्वतंत्रता अभियान  की सरपरस्त के तौर पर भारतीय  राष्ट्रीय कांग्रेस  बड़े राजनीतिक  दल  के तौर पर उभरी। उर्दू शायरों और  अख़बारनवीसों ने अपनी कलम से  इस अभियान  में सहयोग दिया  था । मुंशी सज्जाद हुसैन,  मिर्जा मच्छू  बेग ,रत्न नाथ सरशर , त्रिभुवन  नाथ सप्रू  , ब्रज नारायण  ' चकबस्त ' ,अल्ताफ  हुसैन हाली  , अकबर इलाहाबादी और  इस्माइल  मेरठी ने खुद को आजादी के साहित्यिक  सूत्रधारों के तौर पर स्थापित  किया था।"

आगे वे फिर  लिखते हैं-" होमरूल विरोध, राॅलेट  एक्ट(1918) , और जलियांवाला बाग  नरसंहार (1919)
के दौरान  मोहम्मद अली जौहर,  डाॅक्टर इकबाल, मीर गुलाम भीक नैरंग , आगा हश्र कश्मीरी और एहसान  दानिश  आजादी आन्दोलन  को अपने- अपने तौर पर आगे लेकर गए और  आमजन  में अपनी साहित्यिक  कृतियों से असीम  उत्साह  जगाया था।

20 वीं सदी के तीसरे दशक में त्रिलोचन चंद्र महरूम, जोश मलीहाबादी, हफीज जालंधरी, आनंद नारायण  मुल्ला और आजाद अंसारी जैसे कई उर्दू शायरों  ने खुलकर आजादी के आन्दोलन  को सहयोग दिया और  अपने पाठकों के दिलों में विदेशी शासन  के खिलाफ नफ़रत भर दी।उर्दू  समाचार  पत्रों और पत्रिकाओं  में कविताओं,  लघुकथाओं,  उपन्यासों और  आलेखों की बाढ़ आ गई।

अंग्रेजी सरकार  ने मुंशी प्रेमचंद  की कृति ' सोज- ए- वतन '  को प्रतिबंधित  कर दी।अगली पीढ़ी में सआदत हसन  मंटो , कृष्ण चंदर ,अख्तर अंसारी ,उपेन्द्र  नाथ अश्क, हयातुल्ला  अंसारी ,इस्मत चुगतई और राजेन्द्र  सिंह  बेदी जैसे जाने- माने  कहानीकारों ने अपनी रचनाओं से आजादी के संग्राम  में महत्वपूर्ण भूमिका  निभाई। " इस प्रकार  निर्विवाद रूप से  यह कहा जा सकता है कि आजादी और  साहित्य  में गहरा संबंध  है।


अरूण कुमार यादव

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