कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली उत्सव
देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा उत्सव के लिए प्रयागराज में संगम पर प्रार्थना, स्नान, दान पुण्य, दीपदान आदि के लिए लोगों की भीड़ एक दिन पहले ही जुटना शुरू हो जाती है। रात्रि में दीपदान से दूर तक जाते दीपक टिमटिमाते दिखाई देते हैं।
देव दीपावली उत्सव हर वर्ष कार्तिक अमावस्या (दीपावली) के पंद्रह दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह देवताओं की दीपावली, एक आध्यात्मिक पर्व है। उत्तरी भारत में यह उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। बारह महीने की पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। सिक्ख धर्म में इस दिन गुरु नानक जयंती मनाई जाती है। कई दिन पहले से प्रभात फेरी निकाली जाती हैं। इस दिन मान्यता है कि समस्त देवी देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं, और पवित्र गंगा स्नान के बाद दीपावली पर्व मनाते हैं। इस दिन लोग अपने घरों को दिए और घर, आंगन, मुख्य द्वार को सुंदर मांडने, रंगोली आदि से सजाते हैं। देव दीपावली उत्सव को मुख्य रूप से शिव की नगरी काशी बनारस में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। पूरे शहर की गली, मोहल्ले दीपकों की रोशनी से जगमगा उठते हैं। गंगा नदी के घाटों को सजाया जाता है, एवं बड़ी संख्या में दशमेश्वर घाट पर गंगा आरती में लोग सम्मिलित होते हैं। देश के लगभग सभी पवित्र नदियों में स्नान पूजा धार्मिक अनुष्ठान कर देव दिवाली उत्सव मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर देश के अन्य शहरों में भी देव दीवाली खूब धूम धाम से मनाई जाती है।
राजस्थान में भी अरावली पर्वत की गोद में बसा, हिंदुओं के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को झील में पवित्र स्नान करते हैं, जो सभी पापों को नष्ट कर मोक्षदायी माना जाता है। पुष्कर झील अजमेर शहर से दस किलोमीटर दूर है। यह मेला कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा को महास्नान के साथ संपन्न होता है। रात्रि में दीपदान से झील, रोशनी से जगमगा उठती है, ऐसा लगता है मानो ढेर सारे जुगनू या तारे झिलमिल कर रहे हों। हिंदू मान्यताओं के अनुसार कार्तिक मास में धार्मिक नदियों, सरोवरों में स्नान, ध्यान का महत्व बहुत अधिक अक्षय फलदायी माना गया है। यहां प्रसिद्ध कार्तिक मेला, जिसमें बड़ी संख्या में देशी विदेशी पर्यटक आते हैं। विश्व प्रसिद्ध ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर यहीं पर स्थित है। विश्वप्रसिद्ध ऊंट मेला लगता आकर्षण का केंद्र है, जिसमें देशी विदेशी पर्यटक भाग लेते हैं, एवं विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
कार्तिक पूर्णिमा पर झालरापाटन (झालावाड़) में, चंद्रभागा नदी के तट पर कार्तिक मेला आयोजित किया जाता है, जहां कार्तिक स्नान, दीप दान आदि किए जाते हैं, साथ ही यहां का पशु मेला प्रसिद्ध है। बूंदी जिले के केशवरायपाटन में भी कार्तिक पूर्णिमा पर चंबल नदी के तट पर तीन दिवसीय विशाल देव दीपावली पर्व (मेला) मनाया जाता है। यहां दूर दूर से संत, महात्मा, सामान्य जन आते हैं और भगवान केशवराय, चतुर्भुज, जंबूकेश्वर महादेव की पूजा, अर्चना, स्नान कर पुण्यभागी होते हैं।
देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा उत्सव के लिए प्रयागराज में संगम पर प्रार्थना, स्नान, दान पुण्य, दीपदान आदि के लिए लोगों की भीड़ एक दिन पहले ही जुटना शुरू हो जाती है। रात्रि में दीपदान से दूर तक जाते दीपक टिमटिमाते दिखाई देते हैं। गंगा मैया के अलावा अन्य पवित्र नदियों पर भी यही दृश्य देखने में आता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर ब्रह्म मुहूर्त में महाकाल की नगरी उज्जैन (मध्य प्रदेश) में क्षिप्रा नदी में स्नान करने व आकाश दीप प्रज्वलित करने से भगवान विष्णु और शिव दोनों की कृपा प्राप्त होती है एवं दुख दूर होते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा पर जबलपुर (मध्य प्रदेश) में विश्व प्रसिद्ध भेड़ाघाट नर्मदा के तट पर भी जनसैलाब उमड़ पड़ता है। मान्यता के अनुसार नर्मदा के तट पर स्नान करने से श्रीहरि की कृपा के साथ, महादेव का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
उत्तर प्रदेश में कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला कालिंजर दुर्ग का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक मेला भी काफी प्रसिद्ध है। कहते हैं जब शिव ने विषपान किया था तो, उस जलन को यहीं तपस्या, औषधियों से शांत किया था। यहां भगवान शिव का स्थान होने की वजह से, तालाबों में स्नान का महत्व भी अन्य पवित्र नदियों के समान ही पुण्यप्रसूना माना गया है, दूर दूर से साधु संत यहां स्नान के लिए आते हैं। यहां प्रसिद्ध शिव मंदिर है, तालाबों में स्नान करने से शिव के साथ ही भगवान विष्णु का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।
गढ़मुक्तेश्वर उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के तट पर बसा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सुंदर प्राचीन शहर, जहां आत्मिक, आध्यात्मिक, मानसिक शांति महसूस होती है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां गंगा मैया के तट पर कार्तिक मेला लगता है। साधु, संत, सामान्य जन सभी गंगा स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं, एवं पुरखों की शांति के लिए दीपदान करते हैं।
उत्तराखंड में कुछ स्थानों पर इसे बूढ़ी दीवाली भी कहा जाता है। कहते हैं भगवान श्री राम के अयोध्या आने की सूचना यहां पंद्रह दिन देरी से प्राप्त हुई थी इसलिए यहां ग्यारह दिन बाद (त्रयोदशी से कार्तिक पूर्णिमा बाद दौज तक) देव दीपावली उत्सव मनाया जाता है। और भी प्रचलित अलग अलग कहानियां हैं।
मनु वाशिष्ठ,
What's Your Reaction?