आप के परिवार में छोटे बच्चे होंगे- आप मम्मी-पापा, दादा-दादी हैं तो इस लेख को जरूर पढ़िए। यह टौपिक हमारे विचारों से थोड़ा अलग है, पर इसकी ओर ध्यान देना बहुत जरूरी है। स्मार्टफोन जब आज की तरह प्रचलित नहीं था तो परिवार के बुजुर्गों की एक ही शिकायत रहती थी कि नई पीढ़ी पूरे दिन मोबाइल में ही घुसी रहती है, उनकी ओर बिलकुल ध्यान नहीं देती। पर अब समय बदल गया है। अब तो दादा-दादी खुद ही ह्वाट्सएप और यूट्यूब में व्यस्त रहते हैं।
दूसरी ओर छोटे बच्चे भी मोबाइल में रचेबसे रहते हैं, जिसकी आदत हम सभी ही डालते हैं। बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए उन्हें परिवार का प्यार मिलना चाहिए, कोई उन्हें पूरा प्यार दे, बातचीत करे और उनकी हर जिज्ञासा को शांत करे और जगाए, उनके साथ धींगामस्ती करे। बच्चों के लिए यह सब बहुत जरूरी होता है। पर यह सब अब घर-आंगन में खेले जाने वाले खेलों की तरह भुलाया जाने लगा है। इस बारे में एक अमेरिकी पिता क्या सोचता है, पहले यह पढ़िए। शुरूआत में मोबाइल की मदद ले कर और फिर उसके बगैर बच्चों के साथ मस्ती भरा समय कैसे बिताया जा सकता है, यह पढ़िए।
एक बहुत जानीमानी टेक्नोलॉजी संबंधित अमेरिकी वेबसाइट के एग्जिकेटिव एडिटर ने कुछ समय पहले अपने मन की बात एक लेख में लिखी थी। वह खुद एक मैगजीन के एडिटर थे, इसलिए दिन-रात फोन और इंटरनेट का उपयोग करते थे। पर यह बात उन्हें खटकती थी। आगे की बात उन्हीं के शब्दों में-
मेरी जैसी हालत बहुतों की होगी। मुझे अपने फोन के बिना एक मिनट भी नहीं रहा जाता। पर मुझे डर इस बात का है कि मेरा फोन मेरे दो साल के बच्चे का बचपन छीन रहा है। कभी कोई महत्वपूर्ण समाचार टप से आ जाता है और उसे देखे बिना रहा नहीं जाता। इसके बाद ऊब दूर करने के लिए ऐसे ही मैसेज स्क्रोल करने लगता हूं। एक ओर लगता है कि यह मोबाइल है तो दुनिया मेरे हाथ में है। पर स्मार्टफोन की मर्यादा निश्चित करना आसान नहीं है। ग्रोसरी स्टोर में पेमेंट के लिए लाइन में खड़ा होऊं या बेटे को लेकर डाक्टर के पास गया होऊं और नंबर आने की राह देख रहा होऊं तो भी मोबाइल हाथ में ले कर कूछ न कुछ देखता रहता हूं।
2007 में एप्पल का फोन लांच होने वाला था तो मैं सख्त एक्साइटेड था और शायद तभी मेरी पत्नी को पता चल गया था कि अब प्राब्लम होने वाली है। तब से वह मुझसे कहती है कि मेरे हाथ में फोन होता है तो मैं घर में बहुत उद्धतापूर्ण व्यवहार करता हूं। अब मेरा यह व्यवहार मेरे बेटे पर किस तरह असर कर रहा है, मुझे इस बात की चिंता हो रही है। भविष्य में हमारा बेटा कहेगा कि हम ने माता-पिता के रूप में उसकी ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया।
स्क्रीन एडिक्शन की बीमारी मात्र मुझे ही है, ऐसा नहीं है। ज्यादातर लोग दिन में लगभग पांच घंटे मोबाइल में सिर गाड़े बैठे रहते हैं, इसमें खास कर 18 से 30 साल के लोग।
इसके पीछे का कारण है हमारा दिमाग। मोबाइल में आने वाला एलर्ट, तरह-तरह के नोटिफिकेशन जैसे पाॅप-अप होता है, हमारे दिमाग में झटका सा लगता है कि यह क्या है, हम उसे देखे बगैर रह नहीं पाते।
इससे दिमाग में डोपामाइन नाम का रसायन उत्पन्न होता है। यह वही केमिकल है, जिसके कारण हमें भूख, नशीले पदार्थों की तलब का अनुभव होता है। इसी के कारण हमें मोबाइल की स्क्रीन की भी तलब लगती है। जब हमें किसी मैसेज का इंतजार न हो, तब कोई नोटिफिकेशन या मैसेज टपक पड़े तो डोपामाइन अधिक सक्रिय हो जाता है। परिणामस्वरूप हमारे जैसे तमाम लोग मोबाइल के शिकंजे में आ जाते हैं।
हमें यह सोचना है कि हमारी मोबाइल की इस लत से हमारे छोटे-छोटे बच्चों पर क्या असर पड़ेगा? मैं अपने छोटे से बच्चे का उदाहरण देता हूं। वह कोई भी चीज हाथ में ले कर कान के पास रख कर कहता है, 'हैलो।' यह कोई हंसने वाली बात नहीं है। मेरे मोबाइल की लत ने उसके छोटे मन पर इतना गंभीर असर किया कि इस बारे में सोचता रह गया।
फोन बच्चों का समय छीनता है
माता-पिता के रूप में हम एक बात नहीं समझते कि हमारे बच्चे हमारा सहवास, हमारा ध्यान उनकी ओर हो, इसके लिए झंखते हैं और यह सब उनसे हमारे फोन ने छीन लिया है। शायद आप को हैरानी होगी कि बच्चों हम सब की इस फोन की लत से चिढ़ है, गुस्सा है। कुछ समय पहले दूसरी कक्षा के बच्चों को होमवर्क दिया गया, जिसमें उन्हें छोटा सा निबंध दिया गया कि ऐसी कौन सी चीज है, जिसकी शोध न हुई होती तो अच्छा होता।
जवाब चौंका देने वाले थे। तमाम बच्चों ने लिखा था कि उन्हें उनके मम्मी-पापा का फोन जरा भी नहीं अच्छा लगता, क्योंकि पूरे दिन वे उसी में रचे-बसे रहते हैं। एक बच्चे ने लिखा था कि उसे उसकी मम्मी का फोन जरा भी अच्छा नहीं लगता, वह उससे नफरत करता है। वह चाहता है कि उसकी मम्मी के पास कोई फोन न हो। होमवर्क देने और बच्चों का जवाब पढ़ने वाली टीचर ने अपने फेसबुक पेज पर यह जवाब लिखा तो उनकी इस पोस्ट को लगभग ढ़ाई लाख लोगों ने अपने सर्कल में शेयर किया। माता-पिता की फोन की लत का बहुत बुरा असर होता है। उन्हें लगता है कि फोन मां-बाप के लिए उनसे अधिक महत्वपूर्ण है। यह सोच उन्हें उदास, दुखी और अकेला बना देती है।
लोगों की फोन की इस लत के लिए 'टेक्नोफरंस' शब्द का उपयोग किया जाता है। मतलब कि जब आप का फोन आप के हाथ में हो, तब आप के बच्चे, मित्र या परिवार के अन्य लोग आप से कुछ कह रहे हों तो आप का ध्यान उस ओर नहीं होता। फोन में रचेबसे रहने वाले मां-बाप को देख कर बच्चे उनका ध्यान अपनी ओर करने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं। सभी साथ खा रहे हों या बच्चों के साथ खेल रहे हों या कोई और काम करते समय मां-बाप थोड़ी थोड़ी देर में अपना फोन चेक कर रहे हों तो बच्चों को उनका समय कोई दूसरा छीन ले, यह अच्छा नहीं लगता। तब वह गुस्सा होते हैं, दुखी होते हैं या फिर रोने लगते हैं।
हमारे अपने समय का क्या? और इसका उपाय क्या?
मां-बाप के रूप में हम कहते हैं कि हमें भी हमारा अपना समय चाहिए - मी टाइम। हमें भी दिन भर के काम में से अपना समय चाहिए। बात सच है, पर यह बच्चों के समय के हिस्से का नहीं होना चाहिए। बच्चे को क्या चाहिए, वह क्या कहना चाहता है, यह समझने के लिए उसके साथ क्वालिटी समय बिताना जरूरी है। आप 'फोन बाद में, बच्चा पहले' ऐसा हमेशा नहीं कर सकते, पर एक मर्यादा रेखा तो बना ही सकते हैं। आज की दुनिया बिना मोबाइल के नहीं चल सकती, पर इसका उपयोग पॉजीटिव रूप से कैसे किया जाए, बच्चों के सामने यह रखना जरूरी है।
बच्चा जब अकेला खेल रहा हो, तब फोन हाथ में लेना ठीक है, पर एक स्मार्ट व्यक्ति की तरह उस पर भी ध्यान रखना जरूरी है और अपना खेल भी खेलना है। बीच-बीच में ब्रेक ले कर उसके साथ, पूरे ध्यान के साथ बात करेंगे तो भी बहुत है। वह कभी खिलौने के साथ खेल रहा हो तो कहें कि वाह बहुत अच्छा खेल रहा है। उसे गले लगा कर प्यार कर लें, उसके साथ थोड़ा दिस से खेल लें और फिर उसके बाद भले फोन में लग जाएं।
जरूरी है कि दोनों बातों में बराबर संतुलन रखा जाए। बच्चा कभी कभी अकेला खेलना सीखे, यह भी जरूरी है। बच्चा हमारा ध्यान खींचना चाहे और लंबे समय तक हम उसकी ओर देखें न तो वह कुछ शरारत करेगा। पर थोड़ा इंतजार करा कर उसकी बात सुनेंगे तो धैर्य रखना सीखेगा। बच्चा बुला रहा हो और उसी समय फोन का उपयोग करना जरूरी हो तो उससे कहा जा सकता है कि एक जरूरी मेल देखना है या किसी को जवाब देना जरूरी है, इसलिए उसे धैर्य रखना पड़ेगा।
यह सब लगता तो आसान है, पर जब यह करने लगेंगे, तब लगेगा कि कितना मुश्किल है।
जबकि कहीं से शुरुआत तो करनी ही होगी। हम हमारे बच्चों को हंसता-खेलता, सभी के साथ मिलता-जुलता और सही अर्थ में खुश देखना चाहते हैं तो हमें खुद मोबाइल का समझदारीपूर्वक उपयोग करना शुरू कर देना पड़ेगा। नहीं तो ये बच्चे अभी से हमारी नकल करना शुरू कर देंगे और हमें उनका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए क्या क्या करना होगा, यह बात भी सोच लें।
बच्चा एकदम छोटा होता है तो मम्मी या पापा उसे बगल में बैठा कर खुद हाथ में कोई स्टोरी बुक ले कर पढ़े, यह जरूरी है। भले ही बच्चे की समझ में कुछ न आ रहा हो। आज के समय के अनुसार किताब की जगह वीडियो देखें या गेम्स खेलें, नो प्राब्लम, परंतु कीवर्ड है बच्चे के साथ, उसे मोबाइल पकड़ा कर खुद इंस्टग्राम में डूबे रहें, यह नहीं चलेगा। फनब्रेन. काॅम वेबसाइट पर केजी से आठवीं क्लास तक के बच्चों के लिए उचित गेम्स, वीडियो और बुक का खजाना है। फोकस पूरा का पूरा 'एज अप्रोप्रिएट एजूकेशन' पर है मस्ती के साथ। अक्कड़-बक्कड़ सीखने से ले कर ह्युमन बाॅडी या पृथ्वी के रहस्यों को ले कर गेम्स यहां मिल जाएंगे। 'डायरी आफ ए विम्पी किड' जैसी बुक्स के चैप्टर भी पढ़ने को मिलेंगे। पर याद रहे, शुरुआत में सब कुछ बच्चों के साथ रह कर करना होगा। सब इंग्लिश में है। पर मस्ती की कोई भाषा होती है क्या?
फनब्रेन जैसी साइट से शुरुआत कर के धीरे धीरे बच्चों को थोड़ा दूर ले जाया जा सकता है। इसके लिए आप मोबाइल में 'क्राफ्ट्स फार किड्स' जैसा कुछ सर्च करें। तमाम साइट्स, एप, वीडियो आदि मिलेंगीं। इसके बाद बाजार से रंगबिरंगे कागज, क्ले, कलर्स, कैंडी स्टिक आदि ले आएं और शुरू हो जाएं क्रिसमस कार्ड्स, बटरफ्लाई, पेन स्टैंड, बुकमार्क्स आदि कुछ न कुछ बनाने की टिप्स मिलेंगीं। बड़े बच्चे होंगे तो खुद ही बना कर खेल सकें इस तरह के बोर्ड गेम्स बनाने का मैथड वाली साइट्स खोजें (गेम खरा, पर खरीदें न, खुद बनाए) इस सब के लिए मोबाइल या पीसी का उपयोग मात्र सीखने के लिए, टिप्स के लिए। इसके बाद धीरे से मोबाइल किनारे खिसका कर बच्चे के साथ पालथी मार कर बैठ जाएं। इसमें परीक्षा आप की है, बच्चे की नहीं।
बढ़िया पेपर टाप्स बनाना सिखाएं
बच्चे को पेपर क्राफ्ट में मजा आने लगा? तो अब इस दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है और उसे मोबाइल से दूर ले जाया जा सकता है। इसकी खातिर बस थोड़ी देर के लिए हाथों में मोबाइल लीजिए और पेपरटाॅयज.काॅम नाम की एक मजेदार साइट पर पहुंच जाएं। तमाम छुट्टियां कम हो जाएंगीं, वहां इतना खजाना है। साइट पर अनेक पेपरटाॅयज या माडल बनाने की आसान विधि दी गई है। हर एक के लिए ए-4 साइज के पेपर पर माडल का कटआऊट दिया है। आप उस पेज पर पहुंच कर पूरे पेज की इमेज, घर में प्रिंटर हो तो प्रिंट कर लीजिए। यहां इनलार्ज की गई प्रिंट भी ली जा सकती है। हर माडल के लिए असान फोल्ड, नंबर के साथ दिया है। इसके बाद कैंची और गोंद ले कर जुट जाएं। दादा-दादी और छोटे बच्चों के बीच लगाव बढ़ाने का यह आसान रास्ता है।
मोबाइल किनारे रख कर धमाल, धींगामस्ती करें
मोबाइल गेम्स की तरह आप नीचे के तीन लेवल आप सक्सेसफुली पार कर गए? तो अब आगे बढ़ें अल्टीमेट लेवल की ओर। आप को और आप के बच्चों को मोबाइल की जबरदस्त लत लगी है तो इस लेवल पर पहुंचना थोड़ा मुश्किल होगा। पर एक बार यहां पहुंच जाएंगे तो इतना मजा आएगा कि मोबाइल हमेशा के लिए किनारे पड़ा रहेगा।
केवल इतना करें- घर का कोना खंगालें और पुरानी गेंद, जम्पिंग बाल्स, स्माइली बाल्स, रिंग्स आदि धूल खाती पड़ी हों तो इन्हें खोज निकालें। पुराना खोखा भी चलेगा, साथ ही नई- पुरानी कोल्डड्रिंक की बोतल भी खोज लें। पेंसिल का टुकड़ा, डस्टबिन, प्लास्टिक के कप आदि भी चलेंगे।
अब चैलेंज यह है कि इन साधनों के मिलने के बाद तो इसमें किसी गेम्स का सोचना। जैसे कि बोतल और प्लास्टिक के कप आदि को टार्गेट बना कर उसे स्माइली बाल से बंद कर देना। एप को क्रिएटिव हो कर बच्चा ऊबे न इस तरह का गेम सोचना है और उसे अधिक से अधिक इंटरेस्टिंग बनाना है। खेलने के काम आने वाली ऐसी कोई चीज न मिले तो किसी भी सामान को ले कर बच्चे के साथ ऐक्टिव रहें। फिजीकल ऐक्टिविटी और फन, इन्ही दोनों बातों को ध्यान में रखना है। शुरुआत में आप के दिमाग में कुछ न आता हो तो पिंटरेस्ट या यूट्यूब की मदद ले सकते हैं। खास कर पिंटरेस्ट में टूडलर ऐक्टिविटीज सर्च करें। छोटे बच्चे के साथ बिना किसी साधन के बाल, गुब्बारा या किसी अन्य खिलौने के साथ खेला जा सकता है। इस तरह बच्चों को फिजिकली ऐक्टिव और एनर्जेटिक रखा जा सकता है।
इस तरह गेम खेल कर आप का बच्चा खुशी से लोटपोट होगा तो थक कर कहेगा, "अब बस।" तब समझिए कि आप अल्टीमेट लेवल पार कर गए। अभी बच्चे एटेंशन पाने के लिए मोबाइल और हमारे बीच स्पर्धा है। आप मोबाइल को जीतने देंगे तो बच्चा हारेगा।