नदी और मानव

नदी से मानव की बचपन की दोस्ती थी। आज उसने देखा की नदी उससे बात नहीं कर रही और शांति से चुपचाप पतली धार में बह रही है।

Apr 14, 2025 - 12:40
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नदी और मानव
River and Human

नदी और मानव

मानवकभी नदी के किनारे बैठता थातो कभी नाव की सैर किया करता था। वह आज बैठा हुआ उसके बचपन के दिनों की भरी-भरी पानी से लबालबउछलतीउफनती नदी को याद कर रहा था। जब वह साफ नीले आकाश की छवि नदी में देखता था। सूरज की सुनहरी किरणें नदी के जल पर गिरकरलहरों को वही सुनहरा रंग दे देती थी।

अब नदी का पानी गंदला हो गया है। उसमें नीले आकाश की वह मनमोहक छवि नहीं दिखती है। दिखती हैतो पतली सूखी सी नदीजिसमें शैवालजलकुंभी भरी पड़ी है। मछलियाँ  शनैः शनैः समाप्त होने लगी हैं। मानव ने नदी की शाखाओं को पाट दिया हैऔर अपने घरइमारतें,  फैक्ट्रियां बना ली हैं।

मानव अछूता हैनदी के दर्द से। उसे नदी के सिमटने का एहसास ही नहीं है। ना ही उसे नदी का  कराहना सुनाई  पड़ता है। वह मदमस्त हैउसके धन लाभ सेउसकी भरी हुई जेब से। साथ ही फैक्ट्री का विषाक्त जल भी वह आराम से  नदी में बहा देता है।

नदी से मानव की बचपन की दोस्ती थी। आज उसने देखा की नदी उससे बात नहीं कर रही और शांति से चुपचाप पतली धार में बह रही है।

मानव नदी को कहता है- "तुम इतनी क्रोधित क्यों हो बहना"?

नदी कहती है- "एक तरफ मुझे बहन कहते हो और दूसरी ओर मेरा विस्तार खत्म करते हो"?

"बहन इतनी नाराजगी ठीक नहीं"

"हाँ  मैं नाराज हूँ और इसलिए कभी-कभी अपना रौद्र रूप दिखा देती हूंतटबंधों को चीर कर बहा ले जाती हूं"।

मानव कहने लगा - "लेकिन मैंने तो इंसान के भले के लिए यह फैक्ट्री डाली है"

पर तुम फैक्ट्री से निकलने वाले गंदे पदार्थों से भरा विषाक्त जल मुझ में बहा देते हो। इतने विकास के बाद भीलोग मेरे ही किनारे मल-मूत्र विसर्जित करते रहते हैं। कपड़े धोते हैंमवेशियों को नहलाते हैं। सोचो मेरा मन और मेरा तन कितना खराब और दूषित हो जाता है"

"बहनाजनसंख्या बढ़ती जा रही है। हम भी करें तो क्या करें इतना गुस्सा ना करो "।

"तो क्रोध करने कालड़ाई-झगड़े का करने का हक सिर्फ क्या मानव को हैतुम तो मुझे बहन कहते हो ना?

हां बहनामैं तुम्हारा सम्मान करता हूँपूजा भी करता हूँऔर चुनरी भी उढाता हूँ।

"झूठझूठ बोलते हो तुमयह तो सिर्फ दिखावा है। तुम सिर्फ मुझसे लेना जानते हो। यदि मेरा एहसान मानते हो तो कुछ लौटाना भी सीखो। नदी बिफर गई।

"शांत रहो बहन"

"भाईमेरा ख्याल नहीं रखोगे तो एक दिन मेरा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा और फिर तुम सिर्फ सिर धुनोगे।

"हां बहनातुम सही बोल रही होमैं खुद सुधरने की कोशिश करूंगा। खुद भी समझूंगा दूसरों को भी समझाऊंगा 

"मुझे पता चल गया है कि आज यदि तुम समाप्त हो जाओगी तो कल मानव भी समाप्त हो जाएगा।

आखिर इतिहास अपने आप को दोहराता है

 

डॉक्टर सुनीता फड़नीस

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