नदी और मानव
नदी से मानव की बचपन की दोस्ती थी। आज उसने देखा की नदी उससे बात नहीं कर रही और शांति से चुपचाप पतली धार में बह रही है।

नदी और मानव
मानव, कभी नदी के किनारे बैठता था, तो कभी नाव की सैर किया करता था। वह आज बैठा हुआ उसके बचपन के दिनों की भरी-भरी पानी से लबालब, उछलती, उफनती नदी को याद कर रहा था। जब वह साफ नीले आकाश की छवि नदी में देखता था। सूरज की सुनहरी किरणें नदी के जल पर गिरकर, लहरों को वही सुनहरा रंग दे देती थी।
अब नदी का पानी गंदला हो गया है। उसमें नीले आकाश की वह मनमोहक छवि नहीं दिखती है। दिखती है, तो पतली सूखी सी नदी, जिसमें शैवाल, जलकुंभी भरी पड़ी है। मछलियाँ शनैः शनैः समाप्त होने लगी हैं। मानव ने नदी की शाखाओं को पाट दिया है, और अपने घर, इमारतें, फैक्ट्रियां बना ली हैं।
मानव अछूता है, नदी के दर्द से। उसे नदी के सिमटने का एहसास ही नहीं है। ना ही उसे नदी का कराहना सुनाई पड़ता है। वह मदमस्त है, उसके धन लाभ से, उसकी भरी हुई जेब से। साथ ही फैक्ट्री का विषाक्त जल भी वह आराम से नदी में बहा देता है।
नदी से मानव की बचपन की दोस्ती थी। आज उसने देखा की नदी उससे बात नहीं कर रही और शांति से चुपचाप पतली धार में बह रही है।
मानव नदी को कहता है- "तुम इतनी क्रोधित क्यों हो बहना"?
नदी कहती है- "एक तरफ मुझे बहन कहते हो और दूसरी ओर मेरा विस्तार खत्म करते हो"?
"बहन इतनी नाराजगी ठीक नहीं"
"हाँ मैं नाराज हूँ और इसलिए कभी-कभी अपना रौद्र रूप दिखा देती हूं, तटबंधों को चीर कर बहा ले जाती हूं"।
मानव कहने लगा - "लेकिन मैंने तो इंसान के भले के लिए यह फैक्ट्री डाली है"
पर तुम फैक्ट्री से निकलने वाले गंदे पदार्थों से भरा विषाक्त जल मुझ में बहा देते हो। इतने विकास के बाद भी, लोग मेरे ही किनारे मल-मूत्र विसर्जित करते रहते हैं। कपड़े धोते हैं, मवेशियों को नहलाते हैं। सोचो मेरा मन और मेरा तन कितना खराब और दूषित हो जाता है"
"बहना, जनसंख्या बढ़ती जा रही है। हम भी करें तो क्या करें इतना गुस्सा ना करो "।
"तो क्रोध करने का, लड़ाई-झगड़े का करने का हक सिर्फ क्या मानव को है? तुम तो मुझे बहन कहते हो ना?
हां बहना, मैं तुम्हारा सम्मान करता हूँ, पूजा भी करता हूँ, और चुनरी भी उढाता हूँ।
"झूठ, झूठ बोलते हो तुम, यह तो सिर्फ दिखावा है। तुम सिर्फ मुझसे लेना जानते हो। यदि मेरा एहसान मानते हो तो कुछ लौटाना भी सीखो। नदी बिफर गई।
"शांत रहो बहन"
"भाई, मेरा ख्याल नहीं रखोगे तो एक दिन मेरा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा और फिर तुम सिर्फ सिर धुनोगे।
"हां बहना, तुम सही बोल रही हो, मैं खुद सुधरने की कोशिश करूंगा। खुद भी समझूंगा दूसरों को भी समझाऊंगा
"मुझे पता चल गया है कि आज यदि तुम समाप्त हो जाओगी तो कल मानव भी समाप्त हो जाएगा।
आखिर इतिहास अपने आप को दोहराता है
डॉक्टर सुनीता फड़नीस
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