जस्ट ए नंबर
हर रोज की तरह आज भी नीलिमा अपने रोजमर्रा के सारे काम निपटा कर गैलरी में आ कर बैठ गई. गुनगुनी धूप गैलरी में पड़ रही थी. मौसम में गुलाबी ठंडकता और उसपर गुनगुनी धूप सेंकने का अपना एक अलग ही आनंद होता है लेकिन नीलिमा को ऐसा कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था, वह हाथों में गर्म चाय की प्याली लिए टकटकी लगाए चिड़िया के उस सूने उजड़े घोंसले देख रही थी जो कभी गुलज़ार हुआ करता था. चिड़िया के बच्चों की मधुर चीं-चीं की चहचहाहट, कलरव से पूरा घर गूंजायमान रहता लेकिन अब सन्नाटा पसरा रहता है.

सुबह के लगभग ग्यारह बज रहे थे. नीलिमा की गृह सहायिका घर के सारे काम करके जा चुकी थी. नीलिमा के पति सतीश भी ऑफिस के लिए निकल चुके थे. अक्सर नीलिमा सुबह का नाश्ता और सतीश के लिए टिफिन बनाते वक्त ही अपने लिए भी थोड़ा सा चावल ज्यादा बना लेती और दो- तीन रोटियां अतिरिक्त सेंक लेती ताकि उसे दोपहर में अपने अकेले के लिए चावल और रोटी ना बनाना पड़े. नीलिमा को दोपहर में केवल अपने लिए अलग से गर्म चावल और रोटी बनाने का मन बिल्कुल भी नहीं करता,वह जो कुछ भी सुबह सतीश के लिए बनाती उसी में से थोड़ा बहुत अपने लिए भी रख लेती और दोपहर में वही खा लेती.
जब तक नीलिमा के दोनों बच्चे छोटे थे और वे घर से बाहर, दूसरे शहर नहीं गए थे नीलिमा का पूरा समय किचन और बच्चों के पीछे भागने में ही बीतता, कब सुबह से दोपहर, शाम और फिर रात हो जाती उसे पता ही नहीं चलता था. उसे तो यह भी पता नहीं चला कि कब उसके चेहरे पर सूक्ष्म रेखाएं उभरने लगी, काले घने बालों के बीच से सफेदी झांकने लगी, कब उसने अपने जीवन के अर्धशतक पार कर लिए और कब वह अपने जीवन के गृहस्थी रूपी रथ में सबके साथ होते हुए भी अकेली रह गई.
हर रोज की तरह आज भी नीलिमा अपने रोजमर्रा के सारे काम निपटा कर गैलरी में आ कर बैठ गई. गुनगुनी धूप गैलरी में पड़ रही थी. मौसम में गुलाबी ठंडकता और उसपर गुनगुनी धूप सेंकने का अपना एक अलग ही आनंद होता है लेकिन नीलिमा को ऐसा कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था, वह हाथों में गर्म चाय की प्याली लिए टकटकी लगाए चिड़िया के उस सूने उजड़े घोंसले देख रही थी जो कभी गुलज़ार हुआ करता था. चिड़िया के बच्चों की मधुर चीं-चीं की चहचहाहट, कलरव से पूरा घर गूंजायमान रहता लेकिन अब सन्नाटा पसरा रहता है.
गैलरी के झरोखे में उजाड़ पड़े घोंसले को देख नीलिमा को उस चिड़िया का परिश्रम स्मरण हो आया. कैसे वह चिड़िया तिनका तिनका चुन कर लाती. पूरे दिन चिड़िया ना जाने कितनी उड़ानें भरती तब कहीं जाकर वह यह घोंसला बना पाई थी. फिर अपने बच्चों को जन्म देने के बाद, वह चिड़िया और अधिक व्यस्त हो गई. अपने बच्चों का पेट भरने के लिए हर दिन कहीं दूर निकल जाती फिर दाना लेकर आती, यह देख नीलिमा मिट्टी के बर्तन में पानी और दाने अपने गैलरी में रखने लगी. नीलिमा ने तो गैलरी में धान व धान की बालियों से बने झालर भी टांग दिए ताकि चिड़िया को कहीं ना भटकना पड़े.
जब चिड़िया के बच्चे थोड़े बड़े हुए तो सारा दिन गैलरी में फुदकते रहते, नीलिमा चिड़िया और उसके बच्चों की प्यारी-प्यारी तस्वीरें अपने कैमरे में क़ैद कर लेती, ये वही वक्त था जब नीलिमा दोबारा अपने शौक को जीने लगी थी. स्कूल के समय से ही नीलिमा को वाइल्ड लाइफ फ़ोटोग्राफ़ी व सोलो ट्रैवलिंग का शौक था लेकिन शादी, घर-गृहस्थी और फिर बच्चों की जिम्मेदारियों में नीलिमा कुछ इस तरह से उलझी कि वह स्वयं और उसके शौक कब, कहां और कैसे गुम हो गए वह जान ही नही पाई.
नीलिमा अपने ही विचारों में खोई हुई थी. उसे वह हृदय विदारक दृश्य अब तक याद है, जब चिड़िया के बच्चों के पंख को परवाज़ मिल गया और वे सभी घोंसला छोड़कर पंख पसारे आसमां छूने उड़ गए, चिड़िया अपने बनाए घोंसले में बच्चों के बिना तन्हा रह गई. उस रोज़ चिड़िया सारा दिन और पूरी रात घोंसले के आसपास ही मंडराती रही. चिड़िया जिस दर्द से गुजर रही थी नीलिमा का दिल उस वेदना को महसूस कर रहा था क्योंकि वह भी अपने घर में अपने बच्चों के बिना खुद को नितांत अकेला महसूस कर रही थी. कुछ दिनों तक चिड़िया हर रोज़ आती, घोंसले के करीब जाती और फिर उड़ जाती, यह सिलसिला ज्यादा दिनों तक नहीं चला. एक दिन वह चिड़िया ऐसी उड़ी कि फिर दोबारा लौट कर कभी नहीं आई, नीलिमा उसका इंतज़ार करती रही. शायद वह चिड़िया एक नए सफर की नई उड़ान भरने निकल चुकी थी.
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नीलिमा का मन अंतहीन विचारों के सैलाब में हिचकोले खा रहा था, उस चिड़िया का दर्द नीलिमा को स्वयं के अकेलेपन के दर्द का एहसास करा रहा था. नीलिमा की आंखें भर आई और उसकी आंख का गर्म पानी उसके गालों को भिगोने लगा. अचानक नीलिमा की तंद्रा उसके मोबाइल के बजने से भंग हुई, फोन सतीश का था फोन
उठाते ही सतीश बोला
" नीलिमा मुझे आज शाम को ही दस दिनों के लिए ऑफिस टूर पर निकलना पड़ेगा, तुम मेरा सामान पैक कर देना."
सतीश के इतना कहते ही वह बोली
" जी ठीक है "
इतना कहकर नीलिमा ने फोन रख दिया और कुछ देर तक यूं ही बैठी रही. प्याली में रखी चाय ठंडी हो चुकी थी जिसे एक ओर रख कर नीलिमा अपने लिए दोबारा चाय बनाने किचन में चली गई.
शाम को जब सतीश दफ्तर से घर लौटा तो उसने देखा नीलिमा ने दो ट्रैवलिंग बैग तैयार कर रखा है यह देख सतीश आश्चर्य से बोला
" यह दूसरा ट्रैवलिंग बैग किसका है...!"
नीलिमा मुस्कुराती हुई बोली -" मेरा है."
नीलिमा से यह सुन सतीश ने कहा -
" मैं ऑफिस के काम से जा रहा हूं तुम मेरे साथ नहीं चल सकती."
"मैं आपके साथ नहीं चल रही हूं, मैं तो सोलो ट्रैवलिंग व वाइल्ड लाइफ फ़ोटोग्राफ़ी के लिए जा रही हूं. " नीलिमा ने बड़े शांत भाव से सतीश को जवाब दिया. नीलिमा का उत्तर सुन सतीश हैरान रह गया और नीलिमा से बोला -
"तुम इस उम्र में सोलो ट्रैवलिंग व वाइल्ड लाइफ फ़ोटोग्राफ़ी करोगी...?"
" हां क्यों नहीं, जहां चाह वहां राह, उम्र कभी भी किसी भी काम को करने के लिए बाधक नहीं होता बीकाज एज इस जस्ट ए नंबर. लौट कर मिलती हूं "
इतना कह कर नीलिमा नए सफर की नई उड़ान भरने निकल पड़ी.
डॉ प्रेमलता यदु
बिलासपुर छत्तीसगढ़
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