हवाओं के रुख की फ़िक्र परिंदे कहां किया करते हैं। अरमानों की उड़ान बेख़ौफ़ प...
बैठो न पास जरा-सी देर कि देख पाऊं तुम्हारी आंखों में अपनी परछाईं।
ऊँगली थाम जिसे दुनियां की सरपट सैर कराया वृद्धाश्रम की भेंट चढ़े हम, बेटा हुआ प...
मैं धरती माँ हूँ, ईश्वर की अनमोल रचना, प्राकृतिक-संसाधनों से परिपूर्ण चिर-यौवना,
शांति और सकून ममता और अपनत्व क्या क्या समझा था क्या से क्या बन गए आप ।
लगता है सूरज ने है ज़िद ठानी, आना है मुझको धरती पर, पीना है मुझको पानी।