माँ की ममता
हिसाब बराबर हो रहा है बेटा जब तुम छोटे थे तो मैं तुम्हें खिलाती थी और आज तुम्हें मुझे खिलाना पड़ रहा है।माँ की बात सुन बबलू की आँखों से ऑंसू बहने लगे तो उन्होंने पूछा क्या हुआ
‘हिसाब बराबर नहीं हो सकता’
तीन दिन अस्पताल में रहने के बाद बबलू की माँ आज ही घर लौटी थी।इंजेक्शन वग़ैरह देने के लिए लगाई गई कैनुला की वजह से उनके हाथ में सूजन व दर्द था।शाम को जब बबलू उन्हें खाना खिला रहा था तो वे भावुक होकर बोली, हिसाब बराबर हो रहा है बेटा जब तुम छोटे थे तो मैं तुम्हें खिलाती थी और आज तुम्हें मुझे खिलाना पड़ रहा है।माँ की बात सुन बबलू की आँखों से ऑंसू बहने लगे तो उन्होंने पूछा क्या हुआ ? बबलू बोला माँ अगर एक पल के लिए मैं वह सब भूल भी जाऊँ कि तुमने नौ माह तक अपनी कोख में रखकर मुझे पोषित किया, इतनी पीड़ा सहकर मुझे जन्म दिया,जन्मोपरांत स्वयं गीले में सोकर मुझे सूखे में सुलाया तब भी तुम्हारे खिलाने और मेरे खिलाने में जमीन-आसमान का अंतर है क्योंकि तुम्हारे हाथों खाकर मुझमें शक्ति आई,स्फूर्ति आई जबकि मैं तो केवल तुम्हारा पेट ही भर पाऊँगा लाख चाहकर भी मैं तुममें वैसी ताकत नहीं लौटा सकता।अब माँ-बेटे दोनों की आँखों से अश्रुधार बह रही थी।
‘माँ की ममता’
एक दिन शाम को मेरे बचपन के साथी बबलू का फोन आया,भर्राई हुई सी आवाज में वह बोला पापा नहीं रहे।यद्यपि अंकल जी को स्वास्थ्य संबंधी कुछ समस्याएँ थी लेकिन ऐसा भी नहीं लगता था कि यूँ अचानक से वे दुनिया छोड़ जाएँगे।उनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था करने हेतु मैं तुरंत उनके घर की ओर रवाना हो गया।बबलू का घर पड़ोस में ही था इसलिए अगले कुछ दिनों तक जब भी फुर्सत होती मैं उसके पास चला जाता था।शोकाभिव्यक्ति के लिए आने वाले लोगों में से कोई उनकी सत्तर वर्ष की आयु को, कोई उनकी शुगर की बिमारी को मृत्यु का कारण मानते तो कोई परमात्मा की मर्जी कह कर दिलासा देकर जाते थे।दिनों को गुज़रते क्या देर लगती है आखिर अंतिम अरदास का दिन भी आ गया। पड़ोस के गुरुद्वारे में यह कार्यक्रम रखा गया।पाठी जी के अरदास करवाने के बाद लोग बारी-बारी से वहाँ रखी अंकल जी की फोटो पर पुष्पांजली अर्पित करने लगे।तभी एक वृद्धा भी महिलाओं वाली कतार में फोटो के सामने पहुँची लेकिन वो
पुष्प अर्पित नहीं कर पाई, उनके हाथ काँपने लगे और वे वहीं बैठ गई, क़रीब जाकर देखा तो पता चला वे बबलू की दादी जी हैं जिनके नेत्रों से आँसू बह रहे थे।यह दृश्य देख वहाँ उपस्थित सभी लोगों के नेत्र भी सजल हो गए क्योंकि दुनिया के लिए बेशक वे सत्तर वर्षीय शुगर के मरीज थे लेकिन उस माँ के लिए तो वो आज भी नन्हें बालक ही थे जिसे नौ माह कोख में रखा,पालपोस कर बड़ा किया और जो उनसे पहले इस दुनिया को छोड़ कर चला गया।
‘अनुत्तरित प्रश्न’
प्रतिदिन शाम को पड़ोस की एक डेयरी से दूध लाने की जिम्मेदारी मेरी थी यद्यपि इसके मालिक सरदार बलदेव सिंह जी थे किन्तु पशुओं की देखभाल के लिए उन्होंने एक बिहारी परिवार को रखा हुआ था।इस परिवार का मुखिया रामविजय दिनभर पशुओं की देखभाल में लगा रहता व उसकी पत्नी किसी फैक्ट्री में मजदूरी करती थी।दोनों मेहनत करके अपने तीनों बच्चों को पढ़ा रहे थे।बड़ी लड़की रिया ग्यारहवीं में, बेटा अमित नौंवी में और छोटी बेटी वेणु सातवीं में पढ़ रहे थे।मैं दूध लेने जाता था तो रामविजय अक्सर बच्चों की पढ़ाई, परीक्षा आदि के बारे में चर्चा करता था सुनकर मुझे भी अच्छा लगता कि देखो अनपढ़ व्यक्ति भी पढ़ाई का महत्व समझता है।
रोजाना की भाँति एक दिन जब मैं दूध लेने गया तो देखा उनके यहाँ कुछ मेहमान आए हुए थे, मैंने पूछा तो उसने बताया कि बड़ी बिटिया का रिश्ता कर दिया और अगले महीने शादी तय कर दी है। उसकी बात सुन मैं आश्चर्यचकित रह गया लेकिन मेहमानों के सामने कुछ नहीं बोला और दूध लेकर लौट आया।
अगले दिन मैंने उसे समझाने के उद्देश्य से कहा, बिटिया की शादी की इतनी जल्दी क्या है पहले इसे पढ़ने दो अपने पैरों पर खड़ा होने दो, सरकार भी तो कहती है ‘बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ’।वो हाथ जोड़कर बोला, बाऊजी आपकी बात ठीक तो है लेकिन सुनने में ही अच्छी लगती है, मान लीजिए मैं हिम्मत करके इसे पढ़ा देता हूँ तो नौकरी की क्या गारण्टी है क्योंकि सारे पेपर तो पहले ही अमीरों के हाथों बिक जाते हैं, फिर हमारी बिरादरी में इसके बराबर का पढ़ालिखा लड़का मिलना मुश्किल हो जाएगा और कोई मिल भी गया तो वो दहेज नहीं मांगेगा क्या ? सबसे बड़ी बात बाऊजी आप तो पढ़ेलिखे समझदार हो आजकल जो माहौल है भगवान ना करे लड़की के साथ कुछ ऊँच-नीच हो गई तो हम गरीबों को तो न्याय भी नहीं मिलेगा तो आप ही बताइए क्या इसके लिए यही ठीक नहीं है ? उसके प्रश्नों का मेरे पास कोई उत्तर नहीं था।मैं दूध लेकर घर लौट रहा था लेकिन आज मेरे पाँव मेरा साथ नहीं दे रहे थे।
अरुण कुमार शर्मा
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