राष्ट्र-भक्ति
जब मिस्टर दास जापान पहुंचे तो वहाँ की समयबद्धता और लोगों क़े कार्य-कौशल क़ो देखकर बहुत प्रभावित हुए. अगले दिन सुबह मिस्टर दास क़ो प्रशिक्षण स्थल तक पहुंचना था, अतः वे तैयार होकर बस का इंतजार करने लगे.... इतने में एक सुंदर चमचमाती बस बिल्कुल सही समय मिस्टर दास क़े सामने आकर खड़ी हो गयी और वे बस की खिड़की क़े पास वाली सीट पर आकर बैठ गये. बस क़े थोडी दूर चलने पर मिस्टर दास ने बड़ी फुर्सत से अपने पान का थैला निकालते हुए
भिलाई स्टील प्लांट क़े सीईओ. मिस्टर दास पान खाने क़े बहुत शौकीन थे. वे दिन भर में आठ-दस पान बड़े चाव क़े साथ गटक जातें थे. एक दिन सुबह की बात है आज मिस्टर दास बहुत खुश थे, मिस्टर दास क़ो कंपनी की तरफ से प्रशिक्षण हेतु जापान जानें का सु- अवसर जो प्राप्त हुआ था. मिस्टर दास बिना कोई विलंब किये जापान जानें की तैयारी करने लग गये.
जब उन्होंने अपना सारा जरूरी समान पैक कर लिया तभी इसी दरमियान उन्हें ख्याल आया कि क्या पता जापान में उन्हें उनकी प्रिय वस्तु पान खाने क़ो मिले या ना मिले. यही सोचकर उन्होंने बीस-तीस पान पहले से बनवाकर अपने साथ रख लेना उचित समझा.
जब मिस्टर दास जापान पहुंचे तो वहाँ की समयबद्धता और लोगों क़े कार्य-कौशल क़ो देखकर बहुत प्रभावित हुए.
अगले दिन सुबह मिस्टर दास क़ो प्रशिक्षण स्थल तक पहुंचना था, अतः वे तैयार होकर बस का इंतजार करने लगे....
इतने में एक सुंदर चमचमाती बस बिल्कुल सही समय मिस्टर दास क़े सामने आकर खड़ी हो गयी और वे बस की खिड़की क़े पास वाली सीट पर आकर बैठ गये.
बस क़े थोडी दूर चलने पर मिस्टर दास ने बड़ी फुर्सत से अपने पान का थैला निकालते हुए उसमें से एक पान अपने मुँह में रख लिया और वो उसे चबाने लगे.
थोड़ी देर बाद वे पीक थूकने क़े लिये खिड़की से बाहर सड़क की ओर ताकने लगे, जापान की साफ-सुथरी और दर्पण की तरह स्वच्छ सड़क क़ो देखकर उन्हें पीक थूकने का मन तो नही कर रहा था अतः उन्होंने बस क़े रूकने का इंतजार किया और बस क़े रुकते ही नीचे उतरकर उन्होंने सारा पीक सड़क पर उड़ेल दिया.
ठीक इसी समय जापान का एक स्कूली बच्चा साइकिल पर पीछे की ओर बैग लटकाये वहाँ से गुजरता है, जब उसने देखा कि किसी ने सड़क पर पीक डालकर उसे गंदा कर दिया है तब वह अपनी साइकिल से उतरा और अपना बैग नीचे उतारकर उसमें से अपना रुमाल निकाल कर सड़क क़ो साफ़ करने में लग गया और जब सड़क अच्छी तरह से साफ़ हो गयी तो वह बच्चा अपना रूमाल डस्टबिन में डालकर अपना बैग उठाकर चलने लगा.
मिस्टर दास थोडी दूर से यह सब देख रहे थे, वे शर्म से पानी पानी हो गये साथ ही उस बच्चे की राष्ट्र-भक्ति देखकर वे उनसे बहुत प्रभावित हुए और उस दिन से उन्होंने पान-खाना ही छोड दिया.
कहानी का सारांश यह है कि बच्चों क़ो प्रारंभ से ही राष्ट्र-प्रेम की शिक्षा दी जानी चाहिये और जब तक किसी राष्ट्र का प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्र की संपत्ति क़ो अपनी संपत्ति मानकर उसकी देख भाल और सुरक्षा नही करता है तब तक देश में व्यापक बदलाव की उम्मीद नही की जा सकती है.
विजय दीप
What's Your Reaction?






