प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती

सुबह की कोमल धूप गाँव के सूखे पेड़ों से छनकर आ रही थी। मिट्टी की पगडंडियों पर नंगे पाँव दौड़ता हुआ एक लड़का हवा में हाथ हिलाता जा रहा था। `माँ... माँ देखो! आज मेरा हवाई जहाज ज़रा-सा ऊपर उठा!' उसकी आँखों में चमक थी, और हाथ में एक प्लास्टिक की बोतल, टूटी मोटर और लकड़ी के टुकड़ों से बना उड़ने जैसा खिलौना। झोंपड़ी के बाहर बैठी उसकी माँ, गोबर से आँगन लीपते हुए मुस्कुराई, `तू तो सच में एक दिन आकाश छूएगा रे, चीकू!' `पर माँ, लोग हँसते हैं। कहते हैं, भट्टे पर काम करने वाला लड़का क्या जहाज उड़ाएगा?'

Jun 10, 2025 - 17:49
Jun 10, 2025 - 17:55
 0  1
प्रतिभा किसी की  मोहताज नहीं होती
Talent is not dependent on anyone
सुबह की कोमल धूप गाँव के सूखे पेड़ों से छनकर आ रही थी। मिट्टी की पगडंडियों पर नंगे पाँव दौड़ता हुआ एक लड़का हवा में हाथ हिलाता जा रहा था।
`माँ... माँ देखो! आज मेरा हवाई जहाज ज़रा-सा ऊपर उठा!' उसकी आँखों में चमक थी, और हाथ में एक प्लास्टिक की बोतल, टूटी मोटर और लकड़ी के टुकड़ों से बना उड़ने जैसा खिलौना।
झोंपड़ी के बाहर बैठी उसकी माँ, गोबर से आँगन लीपते हुए मुस्कुराई, `तू तो सच में एक दिन आकाश छूएगा रे, चीकू!'
`पर माँ, लोग हँसते हैं। कहते हैं, भट्टे पर काम करने वाला लड़का क्या जहाज उड़ाएगा?'
‘लोगों को बोलने दे बेटा। तू उनके जवाब आसमान में देना।'
चीकू खामोश हो गया, पर उसके दिल में कोई नन्हा इंजन गूंजने लगा था- जैसे उस कबाड़ी जहाज में कुछ सचमुच उड़ने वाला हो।
स्कूल में हलचल मची थी। राघव सर ने विज्ञान प्रदर्शनी की घोषणा की थी- `इस बार का विषय है `आविष्कार की उड़ान।''
बच्चे तालियाँ बजा रहे थे। चीकू पीछे बैठा रहा- एक कोने में, जहाँ उसकी कमीज़ की फटी जेब किसी को चुभती नहीं थी।
अचानक उसने धीमे से हाथ उठाया, `सर... अगर मैं हवाई जहाज बनाऊँ, तो?'
सन्नाटा-सा छा गया। कुछ बच्चों की हँसी गूंजी।
राघव सर ने चश्मा उतारकर उसकी आँखों में देखा, `तुम क्यों नहीं बना सकते?'
‘क्योंकि मेरे पास कुछ नहीं है, सर।'
`कुछ नहीं में भी बहुत कुछ छुपा होता है। बस तुम शुरू करो, मैं साथ हूँ।'
उस दिन से चीकू की दुनिया बदल गई।
वह कबाड़ी की दुकान से टूटी-फूटी मोटरें लाता, प्लास्टिक की बोतलें माँगता, स्कूल की पुरानी बैटरियों में करंट ढूँढता, और रात को माँ के साथ मिट्टी की दीवारों के बीच बैठकर अपने सपने का ढाँचा खड़ा करता।
माँ कभी आटा गूंधते हुए पूछती, `तेरे जहाज में क्या लगेगा?'
`बैटरी से मोटर चलेगी, फिर पंखा घूमेंगा... और हवा में झपाक!'
`तो हमारी गरीबी भी उड़ जाएगी?'
`हाँ माँ। मेरी पहली उड़ान हमारे लिए ही होगी।'
प्रदर्शनी का दिन आया। गाँव के स्कूल का छोटा-सा स्टॉल, और चीकू का सपना- सामने लकड़ी के पटरों पर रखा, तारों से जुड़ा उसका हवाई जहाज।
इधर-उधर से लोग आते, उसकी तरफ तिरछी नज़रों से देखते।
`ये क्या है?'
`कबाड़ का खिलौना?'
`अरे ये बच्चा है कौन?'
पर जब चीकू ने स्विच ऑन किया- मोटर घूंघूं करती घूमी, पंखा तेज़ हुआ, और प्लास्टिक का जहाज ज़मीन से दो इंच ऊपर उठा...  हवा में डोलता हुआ गोल घूमा और धीरे से नीचे आ गया।
एक पल के लिए खामोशी छा गई।
फिर अचानक तालियों की गूंज! कैमरे क्लिक करने लगे। एक सज्जन, जिनके बाल हल्के सफेद थे और सीना गर्व से भरा हुआ, आगे बढ़े।
`क्या नाम है तुम्हारा बेटा?'
`चीकू, सर।'
`तुमने खुद बनाया ये?'
`जी। माँ ने मदद की... और राघव सर ने हिम्मत दी।'
सज्जन मुस्कुराए। वे रिटायर्ड विंग कमांडर संजय मेहरा थे, जो अब प्रतिभाशाली बच्चों की मदद करते थे।
उन्होंने चीकू का हाथ थामा और कहा, `अगर तू चाहे, तो तुझे हम अपने मिशन में ले सकते हैं। तुझे पढ़ाई, ट्रेनिंग... सब मिलेगी। तुझे आकाश छूने से अब कोई नहीं रोक सकता।'
चीकू की आँखें भर आईं।
`पर मेरी माँ...’
`वो भी हमारे साथ रहेंगी। तेरी उड़ान में उनका हाथ सबसे बड़ा है।'
कुछ ही हफ्तों में चीकू गाँव से दिल्ली पहुंच गया। पहली बार किसी एयरपोर्ट को नज़दीक से देखा। पहली बार क्लासरूम में सबके साथ बैठा, जहाँ उसके कपड़े नहीं, उसके सवालों की कीमत थी।
वह दिन-रात मेहनत करता। कभी-कभी चुपचाप खुले मैदान में खड़ा होकर आसमान को देखता।
`एक दिन मैं ऊपर रहूँगा, और नीचे कोई बच्चा ऐसे ही उड़ान देखेगा। मैं उसे उड़ना सिखाऊँगा।'
साल गुज़रे।
आज वही चीकू, एयर स्पेस अकैडमी का सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी है। मंच पर यूनिफॉर्म में खड़ा है- सीना तना, आँखों में चमक।
`आज का `बेस्ट यंग एविएटर अवॉर्ड' जाता है- कैडेट चीकू कुमार को!' तालियाँ गूंजती हैं।
मंच पर माइक थामकर वह बोलता है, `मैंने कभी ब्रांडेड किताबें नहीं पढ़ीं, न लैपटॉप देखा था... मेरे पास बस माँ की हिम्मत, राघव सर की प्रेरणा और मेरा सपना था।'
`कभी मत मानिए कि आपकी प्रतिभा कम है... क्योंकि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। बस उसे एक उड़ान चाहिए।'
नीचे बैठी उसकी माँ रो रही थी- पर उसकी आँखों से गिरते आँसू आज मिट्टी के नहीं, उड़ान के थे।
जहाँ सपने सच्चे हों और मेहनत की मिट्टी हो, वहाँ प्रतिभा को कोई रोक नहीं सकता। क्योंकि प्रतिभा वो बीज है, जो पत्थरों में भी दरार बना लेता है।
दीपा माथुर 

What's Your Reaction?

Like Like 0
Dislike Dislike 0
Love Love 0
Funny Funny 0
Angry Angry 0
Sad Sad 0
Wow Wow 0