लहरों में उलझी यादें
आंखों में सागर ने पहली बार समुद्र की गहराई देखी थी कॉलेज की लाइब्रेरी में पहली बार दोनों की नजरें मिली थीं। वक्त जैसे थम गया था। पुराने बीते दिन किसी चलचित्र की तरह आँखों के सामने घूमने लगे। साथ बीते हर पल उसकी यादों में किसी तस्वीर की तरह दर्ज थे जो अब जीवन्त होकर उसे दर्द दे रहे थे लेकिन जिंदगी को सीधा चलना कब आता है।

सागर समुद्र के किनारे चट्टान पर चुपचाप बैठा था। सूरज ढलने को था, आसमान के रंग, नारंगी और गुलाबी की छांव में घुलते जा रहे थे। सामने फैला समुद्र अपनी लहरों के साथ एक अंतहीन गीत गा रहा था कभी शांत, कभी उग्र। पर सागर की आँखें लहरों से कहीं दूर, अतीत की गलियों में भटक रही थी।
हर लहर जब किनारे से टकराती, सागर को लगता जैसे वह उसकी बीती जिंदगी के किसी पल को छूकर लौट रही है। वो शहर, जहाँ उसने अपना बचपन बिताया, गलियों की वो धूलभरी दोपहरें, मां की पुकार, दोस्तों की शरारतें और फिर वो... नयना।
नयना... उसकी आंखों में सागर ने पहली बार समुद्र की गहराई देखी थी कॉलेज की लाइब्रेरी में पहली बार दोनों की नजरें मिली थीं। वक्त जैसे थम गया था। पुराने बीते दिन किसी चलचित्र की तरह आँखों के सामने घूमने लगे। साथ बीते हर पल उसकी यादों में किसी तस्वीर की तरह दर्ज थे जो अब जीवन्त होकर उसे दर्द दे रहे थे लेकिन जिंदगी को सीधा चलना कब आता है।
सागर की नौकरी किसी दूसरे शहर में लग गई। उसका गाँव आना अब कम हो गया था त्योहारों पर ही वह घर आता था। जिस कारण सागर और नयना के बीच दूरियाँ बढ़ी, बातें कम हुई और फिर एक दिन चुप्पी इतनी बढ़ी कि नयना ने किसी और का हाथ थाम लिया था। मगर सागर ने न तो इसकी शिकायत की न रोका बस मुस्कुरा कर विदा ले ली। नयना अपने जीवन में खुश थी। वह एक बेटे की माँ भी बन चुकी थी।
आज सालों बाद इस समुद्र के किनारे खड़े होकर वह सोच रहा था- क्या वक्त ने उसे चुराया था या उसने खुद अपनी मुट्ठी ढ़ीली छोड़ दी थी? पास ही एक बच्चा रेत का किला बना रहा था, और हर लहर आकर उसे गिरा देती पर बच्चा हँसकर फिर बनाने लग जाता। सागर उसको काफी समय तक देखता रहा। धीरे-धीरे उसके अन्दर एक स्फूर्ति जागी और सागर ने सोचा एक छोटा-सा बच्चा परिस्थिति से निराश नहीं है फिर मैं क्यों? सागर मुस्कुरा पड़ा शायद जिंदगी भी यही है- हर लहर के बाद फिर से कुछ नया बनाने का हौसला- एक छोटा बच्चा उसे बहुत कुछ सिखा रहा था। उसने जेब से पुरानी डायरी निकली, जो हमेशा उसके साथ रहती थी कुछ पन्ने पलटे और फिर एक नया पन्ना खोलकर लिखा-
`लहरों को जाने दो, मैं अब किनारे पर नहीं खुद लहर बनने निकला हूँ' और वो उठ कर चल पड़ा रेत पर अपने नए कदमों के निशान छोड़ता हुआ जैसे अतीत को लहरों के हवाले करके भविष्य की ओर पर बढ़ चला हो।
नीलम पाठक
नोएडा, उत्तर प्रदेश
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