पोशीदा
गर्मी का उमस भरा दिन हो और आसपास के लोग कम्पनी बाग, राहत पाने के लिए न जाएं ऐसा हो नहीं सकता। उस दिन भी बड़ा ही खुशनुमा मौसम था। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। बाग के बीचों-बीच फव्वारे से झिरझिर गिरता पानी मन को ताजा कर रहा था। नियम के मुताबिक ठीक पांच बजे से पुराने गाने, भजन, और गजलें बजाए जाने लगते हैं। टहलने वाले लोग इसका भी लुफ्त उठाते रहते हैं। रवि और राधा भी कोचिंग से छूटने के बाद यंही आ कर बैठा करते थे। दोपहर में भी किसी पेड़ की छाया के नीचे बैठने की जगह मिल जाया करती थी।

गर्मी का उमस भरा दिन हो और आसपास के लोग कम्पनी बाग, राहत पाने के लिए न जाएं ऐसा हो नहीं सकता। उस दिन भी बड़ा ही खुशनुमा मौसम था। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। बाग के बीचों-बीच फव्वारे से झिरझिर गिरता पानी मन को ताजा कर रहा था। नियम के मुताबिक ठीक पांच बजे से पुराने गाने, भजन, और गजलें बजाए जाने लगते हैं। टहलने वाले लोग इसका भी लुफ्त उठाते रहते हैं।
रवि और राधा भी कोचिंग से छूटने के बाद यंही आ कर बैठा करते थे। दोपहर में भी किसी पेड़ की छाया के नीचे बैठने की जगह मिल जाया करती थी।
दोनों ही एक ही गली में कमरा लेकर रहते थे। इन्टर करने के बाद दोनों ने एक ही कॉलेज में दाखिला लिया था। कॉलेज में लड़के तथा लड़कियां साथ पढ़ते थे इसलिए सब एक-दूसरे के दोस्त थे। लिंग-भेद बिल्कुल नहीं था। कॉलेज का स्वस्थ वातावरण था। प्रारम्भ से ही रवि और राधा में अच्छी दोस्ती हो गई। राधा को रवि एक सुलझा हुआ समझदार लड़का लगता था। उसे पढ़ने पर अधिक ध्यान था। अन्य लडकों की तरह तफरी नहीं किया करता था।
उधर राधा भी कुशाग्र बुद्धि की मल्लिका थी। उसे इस बात का ख्याल था कि घर से दूर वह पढ़ने के लिए ही आई है और अपने पिता की आर्थिक स्थिति से वाकिफ थी, इसलिए अन्य लडकियों की तरह वह मस्ती नहीं करती थी। एक दिन ऐसा हुआ कि कोचिंग से छूट कर दोनों बाग में आकर बैठे। राधा आज बहुत उदास लग रही थी। रवि ने पूछा- `क्या बात है राधा? उदास क्यों हो? किसी ने कुछ कहा क्या?'
राधा- `नहीं।'
रवि- `तो कौन सी चिन्ता है जो तुम्हें विचलित कर रहा है'
राधा- `क्या बताऊँ रवि मेरे माता-पिता मुझ पर शादी के लिए दबाब बना रहे हैं। पर मैं अभी विवाह करना नहीं चाहती। पिता जी का कहना है कि मेरी और दो छोटी बहने हैं। जब तक मेरी शादी नहीं होगी तब तक उनकी नहीं होगी। मैं तो और आगे पढ़ना चाहती हूँ, और अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ। किन्तु वे कहते हैं विवाह बाद अपनी इच्छा पूरी करते रहना।
दूसरी बात किसी अनजान पुरूष को मैं अपना जीवन साथी कैसे बना सकती हूँ। मेरे मन मंदिर में तो कोई और बैठा है। वही मुझे चाहिए। मैं किसी और के साथ नहीं रह सकती।
रवि- `अच्छा मैं भी तो सुनूँ वह खुशनसीब कौन है?'
राधा- `बनो मत! क्या तुम्हें नहीं पता कि मैं तुम्हें कितना प्यार करती हूँ। तुम से अलग रह पाने की कल्पना भी मैं नहीं कर सकती। मुझे बचा लो रवि। चलो हमलोग शादी कर लें। बाद में जो होगा देखा जायेगा।'
रवि- `कैसी बातें करती हो। मैंने तो इस नजर से तुम्हें कभी देखा भी नहीं, फिर तुम ने कैसे समझ लिया कि मैं तुम से प्यार करता हूँ। और उस पर शादी। कभी नहीं। देखो! मैं बहुत गरीब घर का लड़का हूँ, बहुत मुश्किल से मेरे माता-पिता पढ़ा रहे हैं। अगर मैं तुम्हारा दिल रखने के लिए शादी कर भी लूं, तो मैं तुझे बुनियादी आवश्यकताओं को भी नहीं दे पाऊंगा। क्या तुम तकलीफ सह पाओगी?’
राधा- `हर हाल में तुम्हारे साथ मैं खुश रहूँगी।'
रवि- `ये सब कहने की बात है। हकीकत में कोई नहीं करता। नतीजा झगड़ा और तलाक। इसलिए मुझे बाध्य मत करो। जहां तुम्हारे माता-पिता ने रिश्ता तय किया है उसे स्वीकार कर लो।’
राधा गुस्से में पैर पटकती हुई- `अच्छा तो तुम अभी तक मेरे साथ टाईम पास कर रहे थे।'
रवि- `नहीं! मैंने तो एक अच्छा दोस्त समझा था।'
राधा पैर पटकते हुए चली जाती है।
रवि मायूस हो जाता है।
सोचता है कि आज उसने राधा का दिल जान-बुझ कर दुखाया।
पर ऐसा करना उसकी मजबूरी थी। यद्यपि वह दिल से राधा से प्यार करता था। परन्तु जिसे वह प्यार करता हो और उसे तकलीफ में जिन्दगी गुजारनी पड़े, ये वह सहन नहीं कर सकता था। कलेजे पर पत्थर रख कर उसने ऐसा किया था।
समय बीतता गया। आगे की पढ़ाई पूरी करने के बाद राज्य सरकार के अन्तर्गत एक सरकारी अफसर बन गया। समय गुजरता गया। पांच साल बीत गए। एक दिन वह लखनऊ के एक बाजार में घूम रहा था कि एकाएक उसकी नजर राधा पर पड़ी।
सिन्दूर से मांग भरा था। साथ में एक बच्चा और एक पुरूष था। संभवतः उसका पति था। रवि से रहा नहीं गया। उसने पुकार ही दिया- `राधा'
राधा अनमनी सी- `अरे तुम यहाँ कैसे?'
रवि- `यहीं मेरी पोस्टिंग हुई है।'
राधा कटाक्ष करते हुए- `अब तो तुम बड़े आदमी हो गए। अच्छी बात है। ठाट से जिन्दगी कट रही होगी।
शादी हो गई होगी।'
रवि- `नहीं। और न कभी करूंगा।'
राधा- `क्या कह रहे हो?'
रवि- `सच! जीवन में एक ही मन को भायी थी। दूसरी को मन में कभी बसा नहीं पाया।'
राधा ने समझा या नहीं। पर राधा को खुश देख कर अपने प्यार की कुर्बानी पर उसे नाज हुआ।
मंजु लता
नोएडा
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