मजदूर
हर त्योहार गरीबी में बिना मनाए ही चला जाता है भुखमरी, तंगहाली और पैसे की कंगाली में ना बच्चों के लाड लड़ा पाता हूँ मेला कुर्ता, पथराई आँखे, थका बदन फिर भी रात को कहां आराम से मैं सो पाता हूँ

दिन भर मजदूरी करके भी
दो रोटी नहीं जुटा पाता हूँ
तपती दुपहरी, कभी शीतलहर
कभी ना छुट्टी पाता हूँ
क्या होली, क्या दिवाली
हर त्योहार गरीबी में बिना मनाए ही चला जाता है
भुखमरी, तंगहाली और पैसे की कंगाली में
ना बच्चों के लाड लड़ा पाता हूँ
मेला कुर्ता, पथराई आँखे, थका बदन
फिर भी रात को कहां आराम से मैं सो पाता हूँ
ना बचपन में खेला, ना नशा चढ़ा जवानी का
उम्र से पहले बुढ़ापा आ गया,....
बुढ़ापे के लिए दो पैसे बचाने की चिंता में
दिन में मजदूरी, रात को रेहड़ी लगाता हूँ
शरीर में कमजोरी, बुरे हैं हालात
बीमारियों में जकड़ता जाता हूँ
अस्पताल में है लंबी लाइन
मैं इनके भी चक्कर लगाता हूँ
सॉरी बाबा, आई कैन नॉट डू एनीथिंग मोर फॉर यू
कहते हुए डॉक्टर बीमारी की लास्ट स्टेज बताता है
बेहोश पड़ा मैं बिस्तर, पर आखिरी सांसें गिन रहा हूँ
लंबी-लंबी सांसे लेकर कीमत कफन की सोचता हूँ
ना फिर आँख खुली, ना जीवन का हुआ सवेरा
चिता पर लेटा मैं अपने जीवन को दोहराता हूँ
जीवन भर मेहनत करके भी
दो रोटी नहीं जुटा पाता हूँ
डॉ. रीना तक्षक
झज्जर , हरियाणा
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