Kasar Devi Mysterious Energy | कसार देवी वास्तविकता और विज्ञान

"कसार देवी भारत में एक प्राचीन धार्मिक स्थल है, जिसे विशेष ऊर्जा क्षेत्रों और भू-चुंबकीय प्रभावों के कारण प्रसिद्धि मिली है। यहाँ प्राकृतिक सौंदर्य, वैज्ञानिक जिज्ञासा और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है।

Sep 8, 2024 - 21:52
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Kasar Devi Mysterious Energy | कसार देवी   वास्तविकता और विज्ञान
Kasar Devi Mysterious Energy

Kasar Devi Mysterious Energy : विषय का पता उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कसार देवी का है, परंतु वहां पहुंचने के लिए दक्षिण भारत से होते हुए चलते हैं।  आंध्रप्रदेश के जिला अनंतपुर के लेपक्षी गांव की ऊंची टेकरी पर शिवजी के वीरभद्र अवतार का प्राचीन मंदिर है। कहा जाता है कि सोलहवीं सदी में इसका निर्माण वीरुपन्ना और वीरन्ना नाम के दो स्थपत्य भाइयों ने किया था। ग्रेनाइट पत्थरों को तराश कर बनाया गया कलात्मक वीरभद्र मंदिर प्राचीन भारत की स्थापत्य विधा का गौरवपूर्ण नमूना है। केवल मंदिर ही नहीं, उसके पूरे संकुल की तमाम कृतियों का कोई भी कोना कला से अछूता नहीं है। वीरभद्र मंदिर आने वालों में ९९ प्रतिशत लोगों का ध्यान कला की ओर कम ही जाता है। क्योकि उनकी आंखें हवा में लटकते स्तंभों को ताकती रहती हैं।
    वीरभद्र मंदिर के कुल ७० कलात्मक पाषाण स्तंभ देखने में हवा में तैरते लगते हैं अर्थात छत से तो वे जुड़े हैं, पर फर्श से कुछ मिलीमीटर ऊंचाई पर हैं। इस छोटी सी खाली जगह से लोग अपना खेस, रूमाल, साड़ी का पल्लू निकाल कर आश्चर्यचकित होते हैं। कुछ लोग इसे दैवीय चमत्कार मानते हैं तो पढ़ेलिखे बुद्धिजीवियों को इसमें विज्ञान का चमत्कार दिखाई देता है। हवा में लटकते स्तंभों को उन्होंने एंटी ग्रेविटी / प्रति-गुरुत्वाकर्षण के विरल केस के रूप में खपा दिया है। पेड़ से गिरने वाला सेब जमीन के बदले आकाश का मार्ग पकड़ ले तो भौतिकशास्त्र की परिभाषा के अनुसार इसे एंटी ग्रेविटी मामले गिना जाएगा। धरती पर आज तक ऐसा कोई केस नहीं बना। बनने वाला भी नहीं है। क्योंकि गुरुत्वाकर्षण सर्वत्र है। परंतु प्रति-गुरुत्वाकर्षण कहीं नहीं है। पर ऐसा विरुद्ध बल (थियरी के अलावा) असंभव है। फिर भी वीरभद्र मंदिर के हवा में लटकते स्तंभों पर एंटी ग्रेविटी का लेबल चिपका कर प्राचीन भारत के वैज्ञानिक चमत्कार के रूप में इसका दुष्प्रचार किया जाता रहा है और अभी भी किया जा रहा है।


    तो क्या वास्तव में वीरभद्र मंदिर के कुल ७० स्तंभ जमीन से छुए नहीं हैं? जवाब जानने के लिए केवल कमर को थोड़ा तकलीफ देने के अलावा और कुछ नहीं करना। झुक कर उस थोड़े से गैप के सीध में आने पर उस खाली जगह में एक कोने में माचिस की तीली से भी पतली छोटी सी कील दिखाई देती है। हजारों किलोग्राम के उस हैवीवेट खंभे का भार उस छोटी सी कील पर है। चींटी अपने कंधे पर ६ टन का हाथी बैठाए हो, यह इस तरह का मामला है। इसलिए वीरभद्र मंदिर के स्तंभो का सही कौतुक यह कहा जाता है कि सदियों से वी कीलियां जरा भी हिली नहीं हैं। इसे इंजीनियरिंग का चमत्कार कहा जाना चाहिए या धार्मिक या वैज्ञानिक? फिर भी अफसोस की बात यह है कि राम के नाम पर भैंसा तर जाता है, उसी तरह हमारे यहां विज्ञान के नाम पर वीरभद्र मंदिर के संतभों को हवा में तैरता कर दिया गया है।


    अब दक्षिण से उत्तर दिशा में अल्मोड़ा चलते हैं, जिसके समीप कसार देवी का मंदिर है। वीरभद्र के वैज्ञानिक चमत्कार जैसा ही यहां का भी मामला है। अर्थात वीरभद्र मंदिर में पत्थर का पाया अधर में है, जबकि कसार देवी में वैज्ञानिक थियरी का पाया अधर में है। कथित थियरी का एक्सरे करने के पहले कसार देवी का थोड़ा बैकग्राउंड जान लेते हैं। समुद्र तल से ५,३८० फुट की ऊंचाई पर पहाड़ियों में बसे अल्मोड़ा के उत्तर में ८ किलोमीटर चलने पर कसार देवी गांव पहुंच जाएंगे। विस्तार और बस्ती के मामले में गांव नगण्य है, परंतु कसार देवी मंदिर ने इसे विश्व के नक्शे पर ला दिया है। भागवत पुराण के अनुसार वर्तमान कसार देवी मंदिर के स्थान पर शुंभ और निशुंभ नाम के असुरों का बहुत आतंक था। तब पार्वती ने कसार देवी का अवतार ले कर दोनों दैत्यों का संहार किया था। इस तरह कसार देवी का पौराणिक महात्म्य देखते हुए तमाम स्थानीय लोगों ने यहां दूसरी सदी में मंदिर का निर्माण किया था। समय के साथ उसका सुधार और पुनर्निर्माण होता रहा।


    सदियां बीत गईं और इस दौरान कसार देवी मंदिर के बारे में स्थानीय लोगों को छोड़ कर बाहरी जगत को इसकी जानकारी नहीं थी। इस स्थिति में बदलाव १९वीं सदी के अंत में तब आया, जब स्वामी विवेकानंद कसार देवी दर्शन करने गए। मंदिर संकुल की कुदरती गुफा में उन्होंने तपस्या की। अनोखे अलौकिक सकारात्मक ऊर्जा के अनुभव एवं कसार देवी की अपार शक्ति के बारे में उन्होंने अपनी डायरी में लिखा।
    इस घटना ने कसार देवी को लाइमलाइट में ला दिया। स्वामी ने जिस अपार शक्ति का अनुभव किया, उस अनुभव को लेने के लिए तमाम लोग कसार देवी आने लगे। इनमें गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, सत्तर के दशक में धूम मचाने वाले 'बीटल्स' म्यूजिक के जार्ज हेरिसन और बॉब डायलन, अमेरिकी कवि एलन जिंसबर्ग, पीटर ओर्लोन्स्की और गेरी स्नायडर, अमेरिकी मनोवैज्ञानिक तिमोथी लिअरी आदि जैसी हस्तियों के आने के बाद तो कसार देवी वर्ल्ड मैप पर आ गया। 
    सत्तर के दशक में यूरोप-अमेरिका के युवाओं ने परंपरागत समाज, संस्कृति, विचारधारा, सरकार की युद्धनीति के खिलाफ हिप्पी चलन शुरू किया था। कसार देवी उन दिनों काफी समय तक फोकस में रहीं। क्योंकि यूरोप-अमेरिका के तमाम हिप्पी युवक-युवतियां वहां आ कर महीनों डेरा डाले रहते थे। 


    किसी स्थान पर अपार और अलौकिक स्काई ऊर्जा मिलत्ाी हो तो इसमें कुछ आश्चर्य की बात या असाधारण नहीं है। क्योंकि विषय व्यक्तिगत अनुभूति तथा आस्था का है। परंतु स्थान की ऊर्जा को जब येनकेन प्रकारेण विज्ञान के साथ जोड़ कर उसका गलत प्रचार किया जाए तो अनुभूति और आस्था का स्थान अंधविश्वास ले लेता है। कसार देवी के मामले में कुछ ऐसा ही हुआ है। मामला क्या है, उसे विज्ञान की नजर से देखते हैं। 
    साल १९५८ में अमेरिका के भौतिकशास्त्री जेम्स वान एलन ने खोजा कि भूतल से सैकड़ों किलोमीटर की ऊंचाई पर अंतरिक्ष में किसी अदृश्य पट्टी (बेल्ट) ने पृथ्वी को घेर रखा है। सूर्य से आने वाले अतिरिक्त ऊर्जा के कण उस पट्टी से टकराते हैं। अगर ये कण सीधे बेरोकटोक भूतल पर आ जाएं तो तमाम सजीवों को नुकसान होगा। परंतु अंतरिक्ष में रक्षणात्मक ढाल के समान वह पट्टी ऐसा नहीं होने देती। जेम्स वान एलन ने पहली बार उस पट्टी की पोल खोली, इसलिए उस पट्टी को उनकी याद में वान एलन वेल्ट नाम दिया गया। आज सभी जानते हैं कि जमीन से ६४० किलोमीटर खी ऊंचाई पर अंतरिक्ष में ५८००० किलोमीटर तक फैले उस बेल्ट को पृथ्वी के पावरफुल चुंबकीय बल ने जकड़ रखा है।
    यह तो हुई वैज्ञानिक तथ्यों की बात।  अब कसार देवी से वान एलन बेल्ट का तथा पृथ्वी के चुंबकीय बल का कनेक्शन देखिए। कसार देवी मंदिर के पास पहुंचने पर वहां एक बोर्ड पर मतलब की एक सूचना पढ़ने को मिलती है।


    कस्रार देवी दुनिया के केवल ३ स्थानों में एक है, जो वान एलन बेल्ट के प्रभाव के अंतर्गत आता है। दूसरा स्थान अमेरिका के पेरु देश का मायु पिचु है, जबकि तीसरा स्थान इंग्लैंड के विल्टशायर परगना का स्टोनहेंज है। नासा की रिसर्च के अनुसार वान एलन बेल्ट पाजिटिव कॉस्म्मिक किरणों तथा सौरपवन में बहने वाली पाजिटिव विद्युत कणों का चुंबकीय क्षेत्र है। इससे कसार देवी में आने वाले लोग अत्यंत सकारात्मक (पाजिटिव) ऊर्जा का अनुभव करते हैं।
    उपर्युक्त भावार्थ के लिखने का मतलब कसार देवी की अपार अलौककि ऊर्जा को विज्ञान में खपा दिया गया है। परंतु  हकीकत इससे एकदम अलग ही नहीं विरोधाभासी भी है। पृथ्वी के चारों ओर घूमने वाला वान एलन बेल्ट यानी पट्टी (हौद में तैरते बच्चे की कमर में बंधी रिंग की तरह) बुनी है)। अगर पूरा धरती का पूरा गोला इसके प्रभाव में है तो इसमें कसार देवी, मायू पिचु और स्टोनहेंज, इन तीनों स्थानों मे ऐसी क्या विशेषता है कि यहां वान एलन बेल्ट ने पक्षपात किया है? कुछ लोग इसके जवाब में कहते हैं कि कसार देवी, मायु पिचु और स्टोनहेंज में पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक है। विशेष बल द्वारा वे वान एलन बेल्ट पर लगाम लगाने की बात करते हैं। पर उनकी बातों में तथ्यात्मक दम दिखाई नहीं देता। पृथ्वी के जिस स्थान पर चुंबकीय बल की मात्रा नेनोटेस्ला कहे जाने एकम में गिनी जाती है। कसार देवी का भौगोलिक ऐड्रेस २९.६४ अंश अक्षांश और ७९.६६ अंश रेखांश है या जहां चुंबकीय बल ४८,००० नेनोटेस्ला नापा गया है। इंग्लैंड के स्टोनहेंज में भी मैग्नेटिक फील्ड का आंकड़ा लगभग इतना ही है। जबकि दक्षिण अमेरिकी देश पेरु के मायु पिचु में तो केवल २५,००० ही नेनोटस्ला का चुंबकीय बल है।
    इसके सामने अमेरिका, कनाडा, उत्तर यूरोप, रशिया, आस्ट्रेलिया जैसे देशों के अमुक इलाकों में चुंबकीय बल की मात्रा विश्व भर में सर्वाधिक (६५,००० नेनोटेस्ला) जितनी है। इस तरह कसार देवी में अत्यंत शक्तिशाली चुंबकीय बल होने की मान्यता को मान्यता मिलती रही।
Kasar Devi  के लिए तो यह भी कहा जाता है कि यहां सौरपवन के कण जमीन पर उतर आते हैं, जिससे उनकी स्काई ऊर्जा का अभिषेक यहां आने वालों को सकारात्मक ऊर्जा का अहसास कराता है। इस मान्यता को भी खंडित किया जा सके ऐसा वैज्ञानिक तथ्य यह है कि सूर्य के अतिरिक्त ऊर्जा के कण सकारात्मक नहीं, नकारत्मक असर पैदा करें, इस तरह हानिकारक हैं। मानलीजिए कि किसी कारणवश वान एलन बेल्ट खत्म हो जाए और हाई एनर्जी कण पृथ्वी तक पहुंच जाएं तो सब से पहले भ्रमणकक्ष के उपग्रह शार्ट सर्किट से नष्ट हो जाएंगे। शहरों के पावर ग्रिड भी सुरक्षित नहीं रहेंगे। क्योंकि ग्रिड के हाई टेंशन तारों में अल्टरनेटिव करंट बहेगा। जबकि सूर्य के अथि मात्र के ऊर्जा कण डायरेक्ट करंट के होते हैं। पावर ग्रिड के ट्रांसफार्मर डायरेक्ट करंट के साथ काम नहीं कर सकते। तेज गर्मी से सभी ट्रांसफार्मर तप उठेंगे और फिर वे बेकार हो जाएंगे। कंप्यूटर से ले कर मोबाइल तक का नेटवर्क चला जाएगा। बिजली के उपकरणों की धज्जी उड़ जाएगी। इसके अलावा तमाम अन्य नकारात्मक असर सूर्य के हाई एनर्जी  कण पैदा कर सकते हैं। मनुष्य के शरीर पर इनका हल्का अभिषेक भी डीएनए ब्लूप्रिंट में म्यूटेशन पैदा करेगा। त्वचा के कैंसर को आमंत्रित करेगा।
    हृदय की धड़कन अनियमित करेगा, दिमाग में उठने वाली तरंगों को अनियमित करेगा तथा कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए सूर्य के हाई एनर्जी पार्टिकल से बचना चाहिए। तो आखिर कसार देवी में ऐसा क्या है, जो अपार अलौकिक और स्काई ऊर्जा का अभिषेक कराता है। संभवत: इसके दो पहलू हैं। पहला शायद मानसिक है। कसार देवी आने वाला हर व्यक्ति वहां के कथित चमत्कारिक पावर की कहानी से पहले से ही प्रभावित होता है, इसलिए पहले से ही स्काई अवस्था में आ गया उसका मन-मस्तिष्क कसार देवी को अनोखे स्थान के रूप में मानने लगता है। चाहो तो इसे प्लेसिबो इफेक्ट कह सकते हैं। वास्तविक न होते हुए भी वास्तविक होने का अहसास कराने वाली मनोवैज्ञानिक स्थिति के लिए लेटिन शब्द प्लेसिबो का उपयोग किया जाता है। 
दूसरा Kasar Devi  का स्थान खुद है। जैसा खुद अनुभव किया है, उसके अनुसार यहां का मंदिर संकुल, उसके आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य, घने, जंगल, ऊचाई से दिखाई देते पहाड के मनमोहक दृश्य, शीतल बयार और विचारों को रोक दे ऐसी शांति हम सभी को न जाने कब तक जकड़े रखे, ऐसी है। इस मामले में केवल कसार देवी ही नहीं, वहां से ऊपर की पहाड़ी पर स्थित भैरव मंदिर भी अनोखा है। चर्चा का संक्षेप में सार इतना भर है कि कसार देवी की सुखद अनुभूति करने जाएं तो हाथ में विज्ञान या वैज्ञानिक चमत्कार की लकड़ी पकड़ कर चलने की आवश्यकता नहीं है। कसार देवी की अपार ऊर्जा ही पर्याप्त है।
चर्चा का संक्षेप में सार आल्बर्ट आइंस्टाइन के एक ही वाक्य में मिल जाता है कि 'धर्म के बिना विज्ञान पंगु है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है।'

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