आखिर कब तक
कब तक.. आखिर कब तक...यह पूछ रही भारत माता रो रही है जार-बेजार, बेशुमार भारत माता। कब तक मेरी देह को तू, लहू से अपने सींचेगा इंतकाम की घड़ियों को, तू बता कब तक खींचेगा? कब तक मेरे वीरों को, तिरंगे में लपेटता रहेगा तू कब तक अपने बैंड पर, मातमी धुन बजाता रहेगा तू?

कब तक.. आखिर कब तक...यह पूछ रही भारत माता
रो रही है जार-बेजार, बेशुमार भारत माता।
कब तक मेरी देह को तू, लहू से अपने सींचेगा
इंतकाम की घड़ियों को, तू बता कब तक खींचेगा?
कब तक मेरे वीरों को, तिरंगे में लपेटता रहेगा तू
कब तक अपने बैंड पर, मातमी धुन बजाता रहेगा तू?
ताबूत के पीछे कब तक तू, नारा लगाता रहेगा
`जय हिंद-जय भारत', क्या सिर्फ चिल्लाता रहेगा?
कब तक रोयेगी बेबस माएं, पीटती रहेंगी छाती अपनी
बिलखती बहनें कब तक, नोचती रहेंगी राखी अपनी?
सुहागिनें धोती रहेंगी, मांग का सिंदूर कब तक?
चूड़ियां फोड़ती रहेंगी, दुल्हनें बेकसूर कब तक?
चीत्कार गुंजती रहेंगी, बोलो कब तक हे पुत्र
मेहंदी लगे हाथ कब तक, उतारते रहेंगे मंगलसूत्र?
जांबाज शहीदों के शौर्य को, इस वतन का सलाम है
नहीं करना अब इंतजार, अब लेना इंतकाम है।
जब तक रहेंगे चांद-सितारे
नाम रहेगा तेरा रौशन
शत-शत नमन तुम्हें मेरा, तुम्हें अनंत बार नमन।
डॉ. ब्रह्मदेव कुमार
रमला,गोड्डा, झारखंड
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