सर्वहारा क्रांति के प्रणेता:-कार्ल मार्क्स

।१८२४ ई में उनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया।मार्क्स के पिता एक वकील थे।उनकी प्रारंभिक शिक्षा एक स्थानीय स्कूल जिमनेजियम में हुई। कानून का अध्ययन करने के लिए मार्क्स ने १७ वर्ष की अवस्था में वॉन विश्वविद्यालय जर्मनी में प्रवेश लिया। तत्पश्चात उन्होंने बर्लिन एवं जेना विश्वविद्यालय में साहित्य, इतिहास एवं दर्शन का अध्ययन किया।

May 31, 2025 - 17:50
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सर्वहारा क्रांति के प्रणेता:-कार्ल मार्क्स
Pioneer of the proletariat revolution: -Karl Marx

जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार, राजनीतिक अर्थव्यवस्था के आलोचक, समाजवादी क्रांतिकारी एवं वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता कार्ल हेनरिख मार्क्स का जन्म ५ मई १८१८ई.को जर्मनी के राईन प्रांत के ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था।१८२४ ई में उनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया।मार्क्स के पिता एक वकील थे।उनकी प्रारंभिक शिक्षा एक स्थानीय स्कूल जिमनेजियम में हुई। कानून का अध्ययन करने के लिए मार्क्स ने १७ वर्ष की अवस्था में वॉन विश्वविद्यालय जर्मनी में प्रवेश लिया। तत्पश्चात उन्होंने बर्लिन एवं जेना विश्वविद्यालय में साहित्य, इतिहास एवं दर्शन का अध्ययन किया। इसी काल में वे हीगल के दर्शन से अत्यंत प्रभावित हुए। १८३९- ४१ ईस्वी में उन्होंने `दिमाक्रितस एवं एपीक्यूरस' के प्राकृतिक दर्शन पर शोध प्रबंध लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की ।१८४३ ई. में उन्होंने जर्मन थिएटर समीक्षक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता जेनी वेस्ट फेलन से विवाह किया। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात १८४२ ईस्वी में मार्क्स उसी वर्ष कोलोन से प्रकाशित 'राइन समाचार पत्र' में पहले लेखक, तत्पश्चात संपादक के रूप में सम्मिलित हुए ,किंतु सर्वहारा क्रांति के विचारों के प्रतिपादन एवं प्रसार करने के कारण १४ महीने बाद ही १८४३ ईस्वी में उस पत्र का प्रकाशन सरकार ने बंद करवा दिया। इसके पश्चात मार्क्स पेरिस चले गए वहां उन्होंने `धूस प्रâांजोसिश जार बूशर' समाचार पत्र में हीगल के नैतिक दर्शन पर अनेक लेख लिखे। १८४५ ईस्वी में वे प्रâांस से निष्कासित होकर ब्रुसेल्स चले गए और वहीं उन्होंने जर्मनी के मजदूर संगठन और कम्युनिस्ट लीग के निर्माण में सक्रिय योगदान दिया । १८४७ ईस्वी में एंजेल के साथ उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समाजवाद का प्रथम घोषणा पत्र `कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो' प्रकाशित किया। १८४८ ईस्वी में मार्क्स ने पुनः `कोलोन' में `नेवे राइनिशे जी तुंग' पत्र का संपादन प्रारंभ किया और उसके माध्यम से जर्मनी को समाजवादी क्रांति का संदेश देना आरंभ किया ।१८४९ ईस्वी में इसी अपराध में वे प्रशा से निष्कासित हुए तत्पश्चात वे पेरिस होते हुए लंदन चले गए और जीवन पर्यंत वहीॅ रहे। लंदन में सबसे पहले उन्होंने `कम्युनिस्ट लीग' की स्थापना का प्रयास किया किंतु उसमें फूट पड़ गई अंत में मार्क्स को उसे भंग कर देना पड़ा। १८५९ ईस्वी में मार्क्स ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन के निष्कर्ष `जुर क्रिटिक दर पॉलिटिशेन इकोनामी' नामक पुस्तक में प्रकाशित किये। यह पुस्तक मार्क्स की उस वृहत्तर योजना का एक भाग थी जो उन्होंने संपूर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखने के लिए बनाई थी। किंतु कुछ समय पश्चात उनको यह एहसास हुआ कि उपलब्ध सामग्री उनकी योजना में पूर्ण रूप सहायक नहीं हो सकती। अत : उन्होंने अपनी योजना में परिवर्तन करके नए सिरे से लिखना आरंभ किया और उसका प्रथम भाग १८६७ ईस्वी में दास कैपिटल (पूंजी) के नाम से प्रकाशित हुई। `दास कैपिटल' के शेष भाग मार्क्स की मृत्यु के बाद एंजेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किया। `वर्ग संघर्ष' का सिद्धांत मार्क्स के वैज्ञानिक समाजवाद का मेरुदंड है। इसका विस्तार करते हुए उन्होंने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेशी मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के सिद्धांत की स्थापना की। मार्क्स के संपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं। १८६४ ईस्वी में लंदन में `अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संघ' की स्थापना में मार्क्स ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संघ की सभी घोषणाएं नीति एवं कार्यक्रम मार्क्स द्वारा ही तैयार किए जाते थे। कालांतर में बाकुनिन के अराजकतावादी आंदोलन, प्रâांसीसी-जर्मन युद्ध और पेरिस कम्यून के चलते अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संघ भंग हो गया किंतु उसकी प्रकृति और चेतना अनेक देशों में समाजवादी और श्रमिक पाटिॅयों के अस्तित्व के कारण कायम रहीं। मार्क्सवाद कार्ल मार्क्स द्वारा विकसित एक विचारधारा है जो वर्ग संघर्ष, ऐतिहासिक भौतिकवाद और समाजवाद पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य पूंजीवाद को समाप्त कर एक वर्ग विहीन समाज की स्थापना करना है। मार्क्सवाद का मानना है कि इतिहास में समाज हमेशा वर्गों में विभाजित रहा है और इन वर्गों के मध्य संघर्ष इतिहास को आगे बढ़ाता है। मार्क्स का यह सिद्धांत यह मानता है कि समाज का विकास भौतिक परिस्थितियों विशेष रूप से उत्पादन के साधनों एवं संबंधों से निर्धारित होता है। मार्क्स पूंजीवाद को एक शोषणकारी व्यवस्था मानता है,जहां पर पूंजीपति वर्ग मजदूर वर्ग का शोषण करता है। मार्क्स का मानना है कि पूंजीवाद को क्रांति के माध्यम से ही समाप्त किया जा सकता है, जिसके बाद एक समाजवादी समाज स्थापित होगा। मार्क्सवाद का अंतिम लक्ष्य एक वर्ग विहीन शोषण रहित समाज (साम्यवाद) की स्थापना करना है। यह सिद्धांत आर्थिक एवं सामाजिक समानता में विश्वास करता है। मार्क्सवाद को वैज्ञानिक समाजवाद के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह समाज के विकास के संबंध में वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करता है। मार्क्सवाद सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व की अवधारणा पर बल देता है जिसका अर्थ है कि सत्ता सर्वहारा वर्ग के हाथों में ही होनी चाहिए। मार्क्सवाद के अनुसार पूंजीपति वर्ग श्रमिकों के श्रम से अतिरिक्त मूल्य प्राप्त व्ाâरता है जो की शोषण का आधार है। मार्क्स ने अपनी पुस्तक `होली फैमिली' में अपने विचार प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने सर्वहारा वर्ग एवं भौतिक दर्शन की सैद्धांतिक विचारधारा पर सर्वाधिक प्रकाश डाला। अपने साम्यवादी घोषणा पत्र में मार्क्स ने पूंजीवाद को समाप्त करने का संकल्प लिया था। मार्क्स के अनुसार विश्व में अशांति एवं असंतोष का कारण गरीबों एवं अमीरों के मध्य का वर्ग संघर्ष है। 
मार्क्स का मानना था कि आर्थिक एवं सामाजिक समानता हेतु शांतिपूर्ण क्रांति की जानी चाहिए और यदि इसमें बदलाव न हो तो सशस्त्र क्रांति की जानी चाहिए। `वर्ग विहीन' समाज की स्थापना करना मार्क्स का प्रमुख उद्देश्य था। मार्क्स ने `उत्तराधिकार की प्रथा' का विरोध किया और उनका मानना था कि यह प्रथा बंद होनी चाहिए ।मार्क्स महिलाओं के अधिकारों को महत्वपूर्ण मानते थे। उनका कहना था कि- `कोई भी व्यक्ति जो इतिहास की थोड़ी सी भी जानकारी रखता है वह यह जानता है की महान सामाजिक बदलाव बिना महिलाओं का उत्थान किए असंभव है। महिलाओं की सामाजिक स्थिति को देखकर ही किसी समाज की सामाजिक प्रगति मापी जा सकती है।' मार्क्स ने विश्व को संघर्ष करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा दुनिया के सारे मजदूरों एक हो जाओ तुम्हारे पास खोने को कुछ भी नहीं है सिवाय अपनी जंजीरों के। मार्क्स ने एक ऐसे समता मूलक समाज की संकल्पना की जिसमें स्त्री-पुरुष अमीर-गरीब काले-गोरे जैसे विभेद रहित समानता स्थापित हो सके। मार्क्स लोकतंत्र के पक्के हिमायती से वे समाजवादी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लोकतंत्र को महत्व देते थे। उन्होने कहा था कि- `लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है।' मार्क्स ने मानवता को धर्म के ऊपर रखा। उन्होंने धर्म की आलोचना करते हुए उसे अफीम की संज्ञा प्रदान की तथा इसे शोषण के विरुद्ध संघर्ष करने में अवरोध माना। वैज्ञानिक समाजवाद के जन्मदाता मजदूरों, किसानों एवं पीड़ितों के मसीहा कहे जाने वाले मार्क्स को संसार हमेशा याद रखेगा। मार्क्स ने वर्ग-संघर्ष, पूंजीवाद, ऐतिहासिक भौतिकवाद,सामाजिक परिवर्तन आदि पर अपने महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए जो वर्तमान और भविष्य में भी प्रासंगिक रहेंगे। १४मार्च १८८३ ई.को इस महान विचारक का निधन हो गय

  डाॅ. जितेन्द्र प्रताप सिंह
        रायबरेली(उ.प्र.)

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