गंगा दशहरा.......!!
Explore the divine story of Ganga Dussehra and the descent of the holy river Ganga to Earth, the redemption of King Sagar’s 60,000 sons, and the legendary penance of King Bhagirath.

Ganga Dussehra : त्रेतायुग के समय में पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म रघुकुल में राजा दशरथ जी यहां हुआ था! अगर हम थोड़ा पीछे की पीढ़ियों में झांकते है तो हमें भलीभांति यह ज्ञात होता है कि राजा भागीरथ जिनके प्रयास से ब्रह्मकमंडल ब्रह्मांड से मकरवाहिनी मां भगवती गंगा का धरती पर अवतीर्ण हुआ था; वो रघुकुल के पूर्वज थे! भगवान श्रीराम राजा दशरथ जी के पुत्र थे, दशरथ जी राजा अज के पुत्र थे, अज राजा नाभाग के पुत्र थे, नाभाग राजा ययाति के पुत्र थे, ययाति राजा नहुष के पुत्र थे....!!
इस तरह क्रमश: राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ जी हुए जिनके प्रयास से गंगा धरती पर आई थी और राजा भागीरथ जी के पुत्र ककुत्स्थ हुए थे, ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए थे और रघुकुल की स्थापना यहीं से आरंभ हुई थी....!!
राजा भागीरथ की पीढ़ी में हम पीछे चलते हैं तब हमें गंगा दशहरा का पूरा प्रकरण अर्थात गंगा अवतीर्ण की कथा स्पष्ट हो जायेगी....!!
रघुकुल के पहले इक्ष्वाकु वंश प्रचलन में था और इस वंश में राजा भरत हुए थे जिनके नाम पर अपने देश का नाम भारत पड़ा! राजा भरत के पुत्र का नाम असित था, राजा असित के पुत्र का नाम सगर था और यहीं से गंगा अवतीर्ण की कहानी का आरंभ होता है....!!
राजा सगर के ६०,००० पुत्र थे जिनमें सबसे बड़े पुत्र का नाम असमंजस था! एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ करने के लिए एक घोड़ा छोड़ दिया था, तब देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छलपूर्वक चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया! जब घोड़ा लौट कर पुन: नहीं आया तब राजा सगर ने घोड़े की खोज में अपने ६०,००० पुत्रों को लगा दिया! घोड़े की खोज करते हुए वो सभी ऋषि कपिल मुनि के आश्रम में पहुंच गए जहां घोड़ा बंधा हुआ था और मुनि ध्यान अवस्था में लीन थे...!!
राजा सगर के पुत्रों ने मुनि के आश्रम में शोर मचा कर मुनि का ध्यान भंग कर दिया जिससे मुनि क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपनी क्रोधाग्नि से राजा सगर के सभी पुत्रों को भस्म कर दिया....!!
माई
राजा सगर को जब इस प्रकरण का पूरा मालूम हुआ तब उन्होंने मुनि से विनती करते हुए अपने पुत्रों की मोक्ष मुक्ति के बारे में पूछा! तब मुनि कपिल ने कहा कि हे राजन यदि ब्रह्म लोक से भगवती गंगा का धरती पर अवतीर्ण हो जाए तब गंगाजल स्पर्श से तुम्हारे पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी....!!
तत्पश्चात राजा सगर ने अपने राज्य का कार्यभार अपने बड़े बेटे असमंजस को सौंप कर गंगा जी को प्रसन्न करने के लिए वन में तपस्या करने लग गए! तपस्या करते हुए राजा सगर देवलोक गमन कर गए, बाद में राजा के बड़े पुत्र असमंजस ने पुत्र अंशुमान को राजपाट का भार सौंप कर तपस्या करने लग गए, फिर अंशुमान के पुत्र राजा दिलीप और फिर राजा दिलीप के पुत्र राजा भागीरथ ने घोर तपस्या कर के मां भगवती गंगा को प्रसन्न कर लिया.....!!
मां गंगा प्रसन्न हो कर राजा भागीरथ से उनकी अभिलाषा पूर्ण करते हुए कहती है कि मैं धरती पर जब आऊंगी तब मेरा वेग इतना प्रचंड होगा की मैं धरती को चीर कर पाताल लोक चली जाऊंगी! अत: मेरे प्रचंड वेग को रोकने के लिए आप भगवान शंकर को प्रसन्न कीजिए....!!
तत्पश्चात राजा भागीरथ जी ने भगवान शंकर की तपस्या की और शिवसहस्त्रनाम स्तोत्र के द्वारा शंकर भगवान को प्रसन्न कर लिया...!!
अथ राजा स पुण्यात्मा ज्येष्ठे मासि शुभेअहनी!
हस्तायां मंगलदिने शुक्लपक्षे महामुने!!
अर्थात् इस प्रकार पुण्यात्मा राजा भागीरथ ज्येष्ठमास के शुक्लपक्ष में हस्त नक्षत्रसे युक्त मंगलवार शुभ दिन को उच्च ध्वनि में शंख बजाते हुए रथ पर आरूढ़ हो गए.....!!
खिले हुए कमल के समान मुखवाली उन पृथ्वी ने राजा भागीरथ के साथ ही स्वर्ग में जाने का दृढ़ निश्चय किया! तब रथियों में श्रेष्ठ राजाने सारथि से कहा- महाबली! रथ को शीघ्रता से चलाओ और स्वर्ग लोक में ले चलो! यह सुनकर सारथि ने वायुतुल्य तीव्र वेगवाले उत्तम घोड़ों को तुरंत चलाया! तब वह उत्तम रथ मेरुश्रगपर सहसा पहुंच गया! तत्पश्चात राजा ने प्रलयकालीन घनगर्ज के समान महाशंख बजाया! जब शंख की ध्वनि वैकुंठधाम को प्राप्त हुई तब नीर रूपिणी पराप्रकृति भगवती गंगा द्रवरूप में होकर भगवान विष्णु के पद कमल से निकल कर कल-कल ध्वनि करती हुई वेगपूर्वक मेरुश्रग पर गिरी.....!!
ज्येष्ठे शुक्लदशम्यां तु गंगा वै नि: ससार ह!
परित्रणाय लोकानां महापातकि नामपि!!
अर्थात् ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को माहपापी जनों के भी उद्धार के लिए भगवती गंगा प्रकट हुई.....!!
पवन कुमार सुरोलिया
वलसाड़ (गुजरात)
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