एच जी वेल्स विज्ञान कथाओं का जादूगर

एच जी वेल्स का पूरा नाम है हर्बर्ट जॉर्ज वेल्स और उनका जन्म २१ सितंबर १८६६ को ब्रोमली, केंट, इंग्लैंड में हुआ था। उनके पिता का नाम जोसेफ वेल्स और माता का नाम सारा नील था। उनकी पहली पत्नी का नाम इसाबेल मैरी वेल्स और दूसरी पत्नी का नाम एमी कैथरीन रॉबिन्स था जिनसे उनके दो बच्चे थे। वेल्स का परिवार एक मजदूर वर्ग की पृष्ठभूमि से आता था। उनके पिता ने पेशेवर क्रिकेट खेलते थे और एक हार्डवेयर स्टोर चलाया करते थे। वेल्स का स्वास्थ्य शुरू में ठीक नहीं रहता था और उसके माता-पिता अक्सर उसके खराब स्वास्थ्य के लिए चिंतित रहते थे। ७ साल की उम्र में, एक दुर्घटना के कारण कई महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहना पड़ा।

Dec 2, 2024 - 12:15
Dec 2, 2024 - 15:31
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एच जी वेल्स  विज्ञान कथाओं का जादूगर
science fiction

आप एक बार यह विवरण पढेंगे तो आपको विश्वास ही नहीं होगा कि यह किसके बारे में बात हो रही है फिर भी अनुमान लगाइए। एक कपड़े की दुकान का मालिक जोर जोर से बच्चे को डांट रहा था ‘‘जल्दी कर, ग्राहक चला जायगा, तब कपड़ा निकाल कर दोगे क्या?’’ छोटा बच्चा, जो उस दुकान का नौकर था, जितना जल्दी कर सकता था कपड़े का थान निकाल कर दे रहा था। हाथ काम में लगे थे, दिमाग दुकान के मालिक की डाट के प्रति सजग था पर मन उड़ रहा था किसी ऐसे कल्पनालोक में जहां दासता, यह परवशता नहीं होगी! उस बच्चे के मन मस्तिष्क में अनेक प्रश्न बार-बार कौंध रहे थे कि परवशता से छुटकारा कैसे पाया जाय? कैसे ऊंचा उठ जाय, कुछ बनने की कामनाओं को कैसे पूरा किया जाय? प्रत्येक वस्तु के लिये पैसा चाहिए, पैसे से ही आवश्यक साधन सुविधाएं एकत्र हो सकते हैं।

दूसरे ही पल वह लड़का सोचता ‘‘मेरी मां तो गरीब है गरीब न होती तो मुझे यों थोड़े से पैसों के लिये इस उम्र में ऐसी नौकरी क्यों करनी पड़ती? लेकिन फिर भी मेरी महत्वाकांक्षाएं अडिग हैं। मुझे ऊंचा उ'ना है। आगे बढ़ना है। सारी जिंदगी यही दासता नहीं करना है। साधन नहीं हैं तो मैं उन्हें जुटाऊंगा। कठिन से कठिन श्रम करूंगा। अपने ध्येय को प्राप्त करने के लिये जो भी क'िनाइयां सामने आऐंगी उन्हें पराजित करूंगा और दुनिया को दिखा दूंगा कि भाग्य नहीं मनुष्य की कर्मनिष्ठा बड़ी है।’’

बालक का संकल्प प्रबल होता गया, और उसने निश्चित दिशा में प्रयत्न करने प्रारम्भ कर दिये। उसके हृदय में एक ऐसा व्यक्ति बनने की महत्वाकांक्षा थी जो संसार प्रसिद्ध हो, जिसे सब आदर तथा श्रद्धा के साथ स्मरण करें और जो काल पर अपने अमिट पदचिह्न छोड़ जाये। उसे लगा की लेखन की विधा में आगे बढ़ने से उसके व्यक्तित्व को नयी दिशा मिल सकती है फिर क्या उसने अपने सारे प्रयत्न इस दिशा में केन्द्रित कर दिए।

सुबह से शाम तक दुकान पर काम करता वह, रात को छुट्टी पाता, तो घर आकर पढ़ना प्रारम्भ कर देता। गये रात तक उसका अध्ययन चलता रहता। सुबह भी दुकान जाने पहले जो कुछ भी रात को पढ़ा था उसको दोहरा लेता जिससे उसकी पुनरावृत्ति हो जाती। धीरे धीरे उसे पढने में इतना रस आने लगा कि किताबें दुकान पर भी उसके साथ रहतीं जितने समय कोई ग्राहक न आता उतने समय उसका अध्ययन चलता रहता। उसकी इस निष्ठा से उसका मालिक भी अभिभूत था और वह भी उसे कुछ न कहता।

बच्चे को पता लग चुका था कि लिखने के लिये पहले पढ़ना और ज्ञान बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है इसलिए उसके पास जो भी समय रहा उसने पढने में ही लगा दिया। अब उसने धीरे-धीरे लेखन भी प्रारम्भ किया। पहले छोटे- छोटे लेख लिखने शुरू किये। अपने आप लिखता फिर काटता फिर लिखता। जब तक पूरा संतोष न हो जाता कि यह प्रत्येक दृष्टि से उत्कृष्ट हो गया है तब तक उसे संवारता ही रहता। कभी किसी मदद की आवश्यकता पड़ती, तो वह परिचित लोगों के पास जाता और अपनी समस्या का समाधान कर लेता। जो भी इस की गहन निष्ठा, प्रबल प्रयासों तथा अटूट लगन को देखता वही इस के प्रति सहानुभूति प्रकट करता और भरसक सहायता के लिये तैयार हो जाता। लाइब्रेरी से पुस्तकें लाकर पढ़ीं कुछ परिचित लोगों की सहायता से प्राप्त कीं। अधिकतर उसने सामाजिक उपन्यासों का ही अध्ययन किया जिसके फलस्वरूप जीवन का एक दर्शन उसके सामने आया और सामने आया मानव का मनोवैज्ञानिक स्वरूप।

धीरे-धीरे लेखों से अलग हटकर उसने कहानियां लिखनी प्रारम्भ कीं। लिखते-लिखते जब उसे पूर्ण विश्वास हो गया कि अब मेरी कहानियां लोगों को मनोरंजन एवं उल्लास देने के साथ उन्हें जीवन की एक दिशा देने में भी पूर्ण समर्थ हैं तब उसने कहानियों का प्रकाशन भी प्रारम्भ कर दिया। जनता में उसकी कहानियों का भरपूर स्वागत हुआ। वे लोगों को इतनी प्रिय लगीं कि जनता में उसकी कहानियों की धूम मच गई, लोग मुक्त कं' से उसकी सराहना करने लगे।
लोगों ने सराहना की, तो उत्साह और बढ़ा! पत्र, पत्रिकाओं में भी छपाना प्रारम्भ किया! इससे उसका व्यक्तित्व निखर कर प्रकाश में आया और लोगों ने उसे खूब उत्साहित किया। उसके विचारों में परिपक्वता आ गई थी और कलम में प्रौढ़ता। आत्मविश्वास से लबरेज उसने उपन्यास लिखना प्रारम्भ किया तो उसमें भी उसे आशातीत सफलता प्राप्त हुई।

गरीबी अपने आप में एक ऐसी शिक्षिका है जो न जाने क्या क्या सिखा देती है, न जाने कितना ज्ञान भर देती है जीवन में। इस युवक ने भी गरीबी की पा'शाला में जिंदगी की किताब पढ़ी थी। सो लेखों में तथा उपन्यासों में वह मार्मिकता रहती कि छपते ही हाथों हाथ बिकते। लोग पढ़ते पसंद करते और सराहते।

अपने अदम्य साहस, प्रबल मनोकामना, महत्वाकांक्षा, लगन, उत्साह, क'िन श्रम तथा आत्मविश्वास के बल पर ही यह व्यक्ति सफलता अर्जित कर सका। ये सब गुण हों, तो कोई भी मनुष्य प्रयास करके अपना अभीष्ट पा सकता है आगे बढ़ सकता है उन्नति के शिखर पर पहुंच सकता है, इस महान लेखक की तरह, जिसका नाम था एच जी वेल्स। एच जी वेल्स को जाना जाता है विज्ञान कथाओं और साइंस फिक्शन के लिए। साइंस फिक्शन किसी बेसिर-पैर की काल्पनिक उड़ान का नाम नहीं, बल्कि स्थापित वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित्ा एक सुसंग'ित व बेहद तर्कपूर्ण कथा प्रवाह का नाम है।

साइंस फिक्शन लेखक यहीं अपनी महत्तवपूर्ण भूमिका अदा करता है। अपनी रचना में वह एक ठोस वैज्ञानिक संकल्पना को जन्म देकर किसी अज्ञात तथ्य को सामने लाता है और नए शोध की भूमिका तैयार करता है। यहीं उसकी भूमिका खत्म होती है। किसी भी साइंस फिक्शन की उत्कृष्टता इस बात में निहित होती है कि उसकी परिकल्पना का आधार कितना वैज्ञानिक और कितना तार्किक है।

विज्ञान संकल्पना लेखक इस मामले में एक शोधार्थी की भूमिका निभाता है। अपने कथाप्रवाह में भावनाओं के साथ उन्मुक्त बहने की इजाजत उसे नहीं होती बल्कि मानवीय भावनाओं और सामाजिक मूल्यों को स्थापित करते हुए उसे वैज्ञानिक सिद्धातों और सहज तर्क के एक तने हुए तार पर संतुलन साधना होता है।

एच जी वेल्स का पूरा नाम है हर्बर्ट जॉर्ज वेल्स और उनका जन्म २१ सितंबर १८६६ को ब्रोमली, केंट, इंग्लैंड में हुआ था। उनके पिता का नाम जोसेफ वेल्स और माता का नाम सारा नील था। उनकी पहली पत्नी का नाम इसाबेल मैरी वेल्स और दूसरी पत्नी का नाम एमी कैथरीन रॉबिन्स था जिनसे उनके दो बच्चे थे। वेल्स का परिवार एक मजदूर वर्ग की पृष्ठभूमि से आता था। उनके पिता ने पेशेवर क्रिकेट खेलते थे और एक हार्डवेयर स्टोर चलाया करते थे। वेल्स का स्वास्थ्य शुरू में ठीक नहीं रहता था और उसके माता-पिता अक्सर उसके खराब स्वास्थ्य के लिए चिंतित रहते थे। ७ साल की उम्र में, एक दुर्घटना के कारण कई महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहना पड़ा।

वेल्स ने ब्रोमली में थॉमस मोर्ले की अकादमी में अध्ययन किया, लेकिन अपने पिता की चोट के कारण १४ वर्ष की आयु में उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी, जिसके कारण वे खेलने और अपने स्कूल का खर्च उठाने में असमर्थ हो गए। अंततः१८८३ में उन्होंने एक निजी स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया।

१८८४ में उन्हें साउथ केंसिंग्टन के नॉर्मल स्कूल ऑफ साइंस में छात्रवृत्ति मिली, जहाँ उन्हें विज्ञान में गहरी रुचि विकसित हुई। यहाँ उन्होंने विशेषज्ञ थॉमस हेनरी हक्सले के अधीन जीवविज्ञान और डार्विनवाद का अध्ययन किया। हालाँकि वे अपनी डिग्री पूरी नहीं कर पाए और १८८७ में अपनी छात्रवृत्ति खो दी, और इस प्रकार वे फिर से निजी स्कूलों में शिक्षक के रूप में अपने पेशे में लौट आए। अंततः उन्होंने १८९० में लंदन विश्वविद्यालय से विज्ञान में डिग्री प्राप्त की। उन्होंने १८९१ में अपनी चचेरी बहन इसाबेल से विवाह किया, जो उनके चाचा और चाची की बेटी थी। यह शादी थोड़े समय ही चली और बाद में वेल्स ने अपनी एक छात्रा एमी कैथरीन रॉबिंस के लिए चार साल तक साथ रहने वाली अपनी पत्नी को छोड़ दिया। एमी से उनके दो बेटे थे। शादीशुदा होते हुए भी वेल्स के प्रेम संबंध अनेक महिलाओं से भी रहे।

वेल्स लंबे समय से लिख ही रहे थे और एक परिपक्वता उनके लेखन में आ चुकी थी तब उन्होंने १८९५ में अपनी कई कहानियाँ पहली बार प्रकाशित कीं। शैक्षिक विषयों पर ३ साल तक लिखने के बाद, उन्होंने अपना पहला उपन्यास द टाइम मशीन प्रकाशित किया। तब एक लेखक के रूप में उनका करियर वास्तव में शुरू हुआ और फलने-फूलने लगा। उन्होंने शिक्षण छोड़ दिया और वैज्ञानिक कल्पनाओं की एक श्रृंखला शुरू की। वेल्स का समाजवाद और कट्टरपंथ से जुड़ाव १८८४ में ही शुरू हो गया था और यह उनके जीवन के बाकी समय तक उनके साथ रहा।

रचना दीक्षित

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