ज़िन्दगी
शामो सहर ख्वाब नये दिखला रही है जिंदगी। बस गुजरती बस गुजरती जा रही है जिंदगी।। हार ना तू ऐ मुसाफिर बस यूंही चलता चल। देखिये अब मंजिल पर जा रही है जिंदगी।।
शामो सहर ख्वाब नये दिखला रही है जिंदगी।
बस गुजरती बस गुजरती जा रही है जिंदगी।।
हार ना तू ऐ मुसाफिर बस यूंही चलता चल।
देखिये अब मंजिल पर जा रही है जिंदगी।।
किसी की आंख में आंसू किसी के होंठों पे हंसी।
दर्द-ओ-गम देकर हमें बहला रही है जिंदगी।।
मल्लाह ओझल नाव टूटी और हम हैं बेख़बर।
भंवर में कैसे ये झकोले खा रही है जिंदगी।।
जिसकी ना कोई राह ना कोई मंजिल का पता।
हमसे पूछे कोई कहां ले जा रही है जिंदगी।।
कोई खुश है कोई नाखुश इस ज़माने में सुहैल।
ये बताओ अब कैसी रास आ रही है जिंदगी।।
नौशाब उद्दीन अहमद सुहैल
दतियावी, मध्य प्रदेश
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