अम्मांँ
तनिक नहीं सुख पाये अम्मांँ अपने बालकाल में बड़े-बडे़ दुख पाये अम्मांँ अपने जीवन काल में। बाली उमरिया व्याह कर आ गईं बन के बहू ससुराल बड़े को आईं बड़ी कहाईं पर छोटी ससुराल में। खुद से बड़े देवर की भाभी और बड़ी ननदों की दासी किसी की मामी किसी की चाची बन गयीं बाल्यकाल में। पत्नी तो वह बनीं बाद में पहले तो अम्मांँ कहलाईं

तनिक नहीं सुख पाये अम्मांँ अपने बालकाल में
बड़े-बडे़ दुख पाये अम्मांँ अपने जीवन काल में।
बाली उमरिया व्याह कर आ गईं बन के बहू ससुराल
बड़े को आईं बड़ी कहाईं पर छोटी ससुराल में।
खुद से बड़े देवर की भाभी और बड़ी ननदों की दासी
किसी की मामी किसी की चाची बन गयीं बाल्यकाल में।
पत्नी तो वह बनीं बाद में पहले तो अम्मांँ कहलाईं
सौतन के बच्चों को खिलाया अपने क्रीड़ा काल में।
कभी मार चिमटों की खाई कभी सासु गालियाँ सुनाईं
गुड़ियों वाली उमर उलझ गयी पति के माया जाल में।
जब से व्याह पिया घर आई घर की चौखट न लांँघी
सिर से पाँव तक वदन छिपाये अम्मांँ अब ससुराल में।
दिन भर चौका चूल्हा करतीं रात को पति सेवा मे खटतीं
किसको अपना दर्द दिखायें हाय घर जंजाल में।
भूखी रह कर सबको खिलातीं खुद पानी पीकर रह जातीं
कितनी सहनशील थीं अम्मांँ अपने शोषणकाल में।
पति छोड़कर साथ चले गये बेटे पोते दूर जा बसे
बिटियांँ भी हो गयीं पराई चली गयीं ससुराल में।
अरमानों से बना घरौंदा अपने लोगों ने ही रौंदा
रह गयीं अम्मांँ हाय अकेली घिर गयीं मोह जाल में।
एक समय ऐसा भी आया नहीं किसी को पास बुलाया
बिना बताये विदा हो गयीं अम्मांँ शून्यकाल में।
जया शर्मा
कानपुर रोड लखनऊ
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