पालन पोषण और परिवार
फिर भी कभी-कभी ऐसा होता है कि परिवार के लोगों में अस्वस्थता देखने को मिल जाती है। बच्चों के शारीरिक और मानसिक जीवन का गठन बहुत कुछ अभिभावकों पर निर्भर करता है। पालन पोषण से सम्बन्ध रखने वाली सामान्य सी बातें भी बच्चों के जीवन में महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। वैसी प्रत्येक बच्चे के स्वभाव, संस्कार, मूल प्रवृत्तियों में अपनी कुछ न कुछ विशेषतायें ठीक उसी तरह होती हैं जैसे अलग अलग चेहरे अंगूठे की अलग-अलग छाप। फिर भी मां-बाप द्वारा बच्चों का पालन पोषण उनके विकास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

`पालन-पोषण का मतलब है, किसी बच्चे या युवा को देखभाल देना और उसे सुरक्षित और स्थिर जीवनशैली देना. पालन-पोषण के ज़रिए, परिवार की ज़रूरतों को पूरा किया जाता है. पालन-पोषण के कुछ और अर्थ ये हैं: भरण-पोषण करना, देखभाल करना, खिलाना-पिलाना, परवरिश करना, लालन-पालन करना. परिवार हर व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह वह बुनियाद है, जो हमें जीवन के कठिन समय में सहारा देती है।
हम हमेशा यही चाहेंगे कि हमारा परिवार यानी हमारे परिवार में रहने वाले सभी सदस्य हमेशा स्वस्थ रहें अच्छे रहें खुश रहें मेरा परिवार एक छोटा, परंतु खुशहाल परिवार है, मेरा परिवार मेरी शक्ति है जो मुझे नई ऊँचाइयों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता रहता है। संक्षेप में, मैं हमेशा अपने परिवार का ऋणी रहूँगी, उन्होंने मेरे लिए जो कुछ भी किया है। मैं उनके बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकती। वे मेरे पहले शिक्षक और मेरे पहले दोस्त हैं। परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी अभिभावक की होती है वैसे तो अभिभावक अपनी यह जिम्मेदारी को पूर्ण रूप से निभाते हैं।
फिर भी कभी-कभी ऐसा होता है कि परिवार के लोगों में अस्वस्थता देखने को मिल जाती है। बच्चों के शारीरिक और मानसिक जीवन का गठन बहुत कुछ अभिभावकों पर निर्भर करता है। पालन पोषण से सम्बन्ध रखने वाली सामान्य सी बातें भी बच्चों के जीवन में महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। वैसी प्रत्येक बच्चे के स्वभाव, संस्कार, मूल प्रवृत्तियों में अपनी कुछ न कुछ विशेषतायें ठीक उसी तरह होती हैं जैसे अलग अलग चेहरे अंगूठे की अलग-अलग छाप। फिर भी मां-बाप द्वारा बच्चों का पालन पोषण उनके विकास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अच्छी तरह खाद पानी देकर, काट छांट करके माली पौधों को अधिक उपयोगी और फलदायी बना सकता है। उपेक्षा, साज-सम्हाल के अभाव में मूल्यवान पौधा भी सूख जायगा या अविकसित, भौंड़ा रह जायगा जिससे मधुर फलों की भी कोई आशा नहीं की जा सकती। इसी तरह बच्चों का ठीक-ठीक पालन पोषण किया जाय, उनकी शिक्षा का समुचित ध्यान रक्खा जाय तो मनुष्य की शक्ल में पैदा होने वाला प्रत्येक बालक उत्कृष्ट और महान व्यक्ति बन सकता है। इसके विपरीत ठीक-ठीक पालन पोषण न होने पर बच्चों के निर्माण में ध्यान न देने से होनहार बालक भी अविकसित रह जाते हैं।
बाल्यकाल में जिन आदतों की नींव लग जाती है वे ही सारे जीवन भर अपना प्रभाव डालती रहती हैं। बचपन में पड़े संस्कार, भावनाएं जीवन का एक प्रमुख अंग बन जाते हैं। वस्तुतः बाल्यकाल सम्पूर्ण जीवन की नींव है। बच्चों की कोमल मनोभूमि पर पड़े हुए विभिन्न प्रभाव उसके मानस पटल पर चित्रवत् अंकित हो जाते हैं। अच्छा या बुरा जैसा भी प्रभाव बच्चों पर पड़ता है वैसे ही वे बन जाते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों पर अच्छा प्रभाव पड़े, उन्हें अच्छाइयों की प्रेरणा मिले। यह सब मां बाप के ऊपर ही निर्भर है। बच्चों का पालन पोषण एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है। इसे पूर्ण करने के लिए उन्हें काफी समझदारी, ज्ञान, विचारशीलता से काम लेना आवश्यक है।
कई माता-पिता बच्चों पर आवश्यकता से अधिक प्यार, स्नेह, लाड़ करते हैं। हांलाकि बच्चों के लिए स्नेह, प्यार दुलार की उतनी ही आवश्यकता है जितनी उन्हें खिलाने पिलाने की। अभिभावकों के लाड़ प्यार से बच्चों का मानसिक विकास होता है। उनके जीवन में सरसता पैदा होती है उनका व्यक्तित्व पुष्ट बनता है किन्तु अमर्यादित लाड़-प्यार बच्चों के जीवन में अनेकों बुराइयां पैदा कर देता है। जब अमर्यादित लाड़ प्यार से बच्चों को कोई काम नहीं करने दिया जाता, उनकी उचित-अनुचित मांगों को पूरा करने में कोई कसर नहीं रखी जाती तब उनके तनिक से रूठने मचलने या दूसरे बच्चों की शिकायत पर परेशान हो जाना मां बाप की ऐसी भूल है जिससे बच्चों में अनेकों बुराइयां, खराब आदतें पैदा हो जाती हैं। ऐसे बच्चे आत्मनिर्भर, स्वावलम्बी नहीं बन पाते। वे अपने प्रत्येक काम की पूर्ति दूसरों से चाहते हैं। परावलम्बन, आलस्य, आरामतलबी, फिजूलखर्ची, आवारागर्दी आदि बुराइयां मां बाप की उन सामान्य-सी भूलों से ही पैदा होती हैं जो बच्चों के लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा में उन्होंने लाड़-प्यार वश कीं। यह एक आम बात है कि ‘लाड़ले बच्चे अक्सर बिगड़ जाते हैं।’ ऐसे बच्चों में जिन्दगी के कठिन दिनों में चलने की शक्ति नष्ट हो जाती है।
प्रत्येक बालक में अपनी एक जन्म जात प्रतिभा होती है। एक विशेषता होती है। बच्चे की इस मूलभूत प्रतिभा, प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर उसी दिशा में उसे बढ़ाया जाय तो वह एक दिन असाधारण स्थिति प्राप्त कर सकता है। इसके विपरीत यदि बालक को उसकी मूल प्रवृत्ति, प्रतिभा के विपरीत चलाया जायगा तो वह विशेष सफलता, विकास की स्थिति प्राप्त करने में असमर्थ रहेगा। वह बेचारा सामान्य सी घिसी पिटी जिन्दगी ही व्यतीत करेगा। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि माता पिता बच्चे की मूल प्रवृत्ति, मूल प्रतिभा को जानें, पहिचानें और उसी के अनुरूप उसे विकसित होने की दिशा, साधन, सुविधाएं प्रदान करें। जो मां बाप अपने ही दृष्टिकोण से अपनी इच्छानुसार बच्चे का भविष्य देखना चाहते हैं वे बड़ी भूल करते हैं।
यासमीन तरन्नुम " कवंल "
जबलपुर मध्य प्रदेश
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