“ गले नहीं लगा पाए "
चुन चुन कर जिससे प्यार पाते रहे। जिसकी छाया में हमेशा मुस्कुराते रहे।। हजारों लाखों खुशियां मनाते रहे। जिसके दम से मकान को घर बनाते रहे।। जिसकी रहने से कोई गम महसूस ना हुआ।

चुन चुन कर जिससे प्यार पाते रहे।
जिसकी छाया में हमेशा मुस्कुराते रहे।।
हजारों लाखों खुशियां मनाते रहे।
जिसके दम से मकान को घर बनाते रहे।।
जिसकी रहने से कोई गम महसूस ना हुआ।
जिसकी आगोश में आकर अपना दुख भुलाते रहे।।
जिसके होने से पूरी दुनिया खुशनुमा थी।
जो थी तो खुद को हंसता पाते रहे।।
घर की सारी रौनक जिसके दम से थी।
अपने दम पर उसे हंसा ना पाए।।
हर तरफ उसके मुसीबतों की झाड़ियां थी।
फिर भी उसके कदमों से कांटे हटा ना पाए।।
देलेरी से दुख बर्दाश्त कर रही थी वो।
लाखों तरह के दर्द सह रही थी वो
किसी से कुछ ना कह रही थी वो
खामोशी से सब कुछ सह रही थी वो।
उसके दुखों को हम मिटा ना पाए।।
`मोहब्बत से गले उनको लगा ना पाए'
अनमोल चाहत जो हम सबको देती रही।
उस `अनमोल मांं' को क्यों बचा ना पाए।।
यासमीन तरन्नुम " कवंल "
जबलपुर मध्य प्रदेश
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