ज़मीर मरा हुआ
जिनका मर जाता है ज़मीर, वे लफ्जों को अल्फाज नहीं बना सकते, आमिर का अलम बन जाती है, बुजुर्गान मशक्कत क्यों? बेमौसम बारिश का प्लान बन जाता है, लफ्जों को अल्फाज नहीं बना सकते!!

जिनका मर जाता है ज़मीर,
वे लफ्जों को अल्फाज नहीं बना सकते,
आमिर का अलम बन जाती है,
बुजुर्गान मशक्कत क्यों?
बेमौसम बारिश का प्लान बन जाता है,
लफ्जों को अल्फाज नहीं बना सकते!!
घर-घर की कहानी बताने वालों से पूछो,
आपका भी लिखा जाएगा अफसाना,
तुम्हारा इतिहास भी दिखेगा वक्त के दर्पण में,
आप चाहे कितने मक्कार बन सकते हो?
वे लफ्जों को अल्फाज नहीं बना सकते!!
तेरा हसीन से इज़हार हो तो क्या हुआ?
यौवन कैद मत कर निकाह में कबूल करके,
हाथों में हिना लगती है खूबसूरत,
बुजुर्गान में किसी की जिंदगी से ना कर
व्यापार सकते?
वे लफ्जों को अल्फाज नहीं बना सकते!!
प्रियतम को शौहर की रसीदगी पसंद नहीं आई,
फारूक- ए-आज़म मुजाकर पड़ा दहलीज पर,
`मनराय' कबूल करना ही उपाय नहीं है,
तलाक गले की फांस बन जाती है,
जिनका मर जाता है जमीर,
वे लफ्जों को अल्फाज नहीं बना सकते!!
डॉ. महेंद्र सिंह
झुंझुनूं, राजस्थान
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