पल बीत गए
आँसू थमकर पलकों पर जम गए। राह में आपकी कई पल बीत गए। सफलता प्यार में कभी ना मिली, कल्पना में दिल पढ़ना सीख गए। सूरज को भी अस्त होना होता है, अँधेरी रात के बादल जीत गए।
आँसू थमकर पलकों पर जम गए।
राह में आपकी कई पल बीत गए।
सफलता प्यार में कभी ना मिली,
कल्पना में दिल पढ़ना सीख गए।
सूरज को भी अस्त होना होता है,
अँधेरी रात के बादल जीत गए।
दिल समंदर की लहरें पीछे हट गई,
जल नहीं रेगिस्तान यहाँ दिख गए।
बाग के सब फूल भी मुरझा गए,
भँवरे यहाँ आकर रस पी गए।
ज़रूर फैलेगी लता यह प्यार की,
‘दक्ष’ झरने मुहब्बत के बह गए।
डॉ. दिव्या देढिया ‘दक्ष’
वडाला, मुंबई
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