आस्था का पर्व नवरात्र...
७. कालरात्रि- `एक वेणी जपकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्टी कर्णिका कणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।। वाम पादोल्लसल्लोहलताकंटक भूषण। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरागिभर्यडकरी।।'

भारतीय जनमानस अपनी जड़ों से जुड़ा है। अपने संस्कार, संस्कृति, परंपराएं, पारिवारिक पूजा अर्चना के नियम पीढ़ी दर पीढ़ी उसी तरह सहजता से अपनाता है जैसे कि जीवन के लिए हवा पानी भोजन और मानसिक शक्ति व उर्जा के लिए पूजा अर्चना को सात्विकता से निभाना जरूरी है। भारत में सब धर्मो के अनुयायी अपनी आस्था, विश्वास और रीतिनुसार त्योहारों और पर्वों को मनाते हैं। आदिकाल से चले आये सभी धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों का वैज्ञानिक और मानवीय पहलु है। हर छोटी से छोटी क्रिया भी विश्व शांति और मानवता के उत्थान के लिए अग्रसर रहती है। भारत में नारी को पूज्यनीय माना गया है। मातृशक्ति के पर्व के रूप में साल में चार बार नवरात्रि मनाई जाती है। जिन में दो गुप्त नवरात्रि सहित शारदीय नवरात्रि और बासंती नवरात्रि जिसे चैत्र नवरात्रि भी कहते हैं। ये चारों नवरात्रि ऋतु चक्र पर आधारित है और सभी ऋतुओं के संधिकाल में मनाई जाती है। गुप्त नवरात्रि तंत्र सिद्धि के लिए विशेष माने जाते हैं। आध्यात्मिक रूप को जाने तो यह प्रकृति और पुरूष के संयोग का काल है। प्रकृति मातृशक्ति है इसलिए इस दौरान देवी की पूजा होती है।
माँ के नौ रूपों में बिराजें हमारे आँगन।
१. प्रथम शैलपुत्री-
`वन्देवांछितलाभायं चन्द्रर्धकृतशेखरम्
वृषारूढ़ां शूलधारा शैल पुत्री यशस्विनिम।।
पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण यह नाम मिला। वृषभ इनका आसन है।दाहिने हाथ में त्रिशूल और.बाए में पुष्प कमल धारण किया है। प्रथम दिन इनकी आराधना होती है। साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करता है। माँ सफेद कन्नेर के पुष्पों से प्रसन्न है जाती है। सम्पूर्ण जड़ पदार्थ का पहला स्वरूप है। पत्थर, मिट्टी, जल वायु अग्नि आकाश सब शैल पुत्री का रूप है। इनका पूजन यानि जड़ पदार्थ में भी ईश्वर को अनुभव करना है।
२. ब्रह्म चारिणी-
`दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू
देवी प्रसीदतु मय ब्रहम्चारिणयनुतमा।
`यहाँ ब्रह्मा का अर्थ तपस्या है। तप का आचरण करने वाली। इनका स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय है। इन के बाएं हाथ में कमल और दाएं में जपमाला है। इनकी आराधना से साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित हो जाता है। इनकी पूजा से तप, त्याच और वैराग्य की भावना जाग्रत होती है. ब्रह्मचारिणी का दूसरा अर्थ है जड़ में ज्ञान का बीज, चेतना का संचार ही इस रूप की महिमा है। जड़ और चेतन के संयोग से अंकुरण ही सत्य है। इन्हें वटवृक्ष के पतों और पुष्पों की माला अर्पित की जाती है।
३. चंद्रघंटा-
पिण्डज प्रवशरूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता
प्रसादं तनुते मद्धये चंद्रघंटेति विश्रुता।'
तीसरे दिन इन के विग्रह का पूजन होता है। इनका स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। शरीर का रंग स्वर्ण समान है। इनकी आराधना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। इन्हें शंखपुष्पी के पुष्प चढ़ाने से पराक्रम में वृद्धि होती है और घर में खुशहाली आती है।
घंटा ध्वनि से तरंगित संसार। जीव में वाणी प्रकट होती है। जिस की अंतिम परिणिती बैखरी (वाणी) है।
४. कुष्मांडा-
`सुरासम्पूर्णकलशं रूधिरापुतमेव च दधाय हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु ये.''।।
अपनी मंद हसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण कुष्मांडा नाम पड़ा। इस दिन साधक का मन अनाहद चक्र में स्थित होता है। इन की आराधना से भक्त को व्याधियों से मुक्ति और भवसागर से सहज पार हो जाने की ताकत मिलती है । इन्हें पीले रंग के फूल चढ़ाने चाहिए। सृष्टि के निर्माण करने के.लिए स्त्री और पुरूष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति आवश्यक है। जो भगवती का ही शक्ति अंश है और यह प्रत्येक जीव में दृष्टिगोचर होता है।
५. स्कन्दमाता-
`सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।'’
ये भगवान स्कन्द कुमार `कार्तिकेय' के नाम से भी जाने जाते हैं। स्कन्द की माता होने के कारण नाम पड़ा स्कन्दमाता। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित होता है। इनका व्रण शुभ्र है। यह कमल के आसन पर हैं। सिंह भी इनकी सवारी है। इनकी आराधना से साधक की सभी बाह्य क्रियाओं एवं चितवतियों का लोप हो जाता है। इन्हें नीले रंग के पुष्प अर्पण करने चाहिए।
पुत्रवती माता पिता का स्वरूप है। तात्पर्य यह है कि हर पुत्रवान माता पिता स्कन्द माता के रूप हैं।
६. कात्यायनी-
`चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दधा देवी दानवघातिनी।।'
कात्यायनी महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर कन्या रूप में उत्पन्न हुई। ये अमोघ फलदायी हैं। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है। बेर के पेड़ के पत्ते और पुष्प चढ़ाने से शत्रुओं पर विजय मिलती है। कन्या के रूप में माता पिता को प्रसन्नता प्रदान करती है। ये दर्शाती हैं कि कन्या के माता पिता पूज्यनीय हैं।
७. कालरात्रि-
`एक वेणी जपकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्टी कर्णिका कणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वाम पादोल्लसल्लोहलताकंटक भूषण।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरागिभर्यडकरी।।'
इनका स्वरूप देखने में भयंकर है पर ये सदा शुभफल देती हैं। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित होता है। इन्हें गुंजामाला भेट करनी चाहिए। इस रूप में यह दर्शाया गया है कि जड़ हो या चेतन अंत/मृत्य अवश्यंभावी है। ऐसा माना जाता है कि यह सात स्वरूप तो पूजा से प्रत्यक्ष सुलभ होत्ो हैंं पर आठवां और नौंवा सुलभ नहीं है।
८. महागौरी-
र्श्वैत वृषे समरूढ़ा र्श्वेतांबराधरा शुचिः
महागौरी शुभं दध्यान्महादेवप्रमोददा।'
इनकी शक्ति अमोघ और फलदायनी है। इन्हें कलावा की माला चढ़ानी चाहिए। यह स्वरूप महागौरी गौर वर्ण का है।
९. सिद्धिदात्री-
सिद्धगन्धर्वयक्षाधैरसुरैरमरैरषि।
सेव्यामाना सदा भूयात सिद्या सिद्धिदायिनी।।
सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती है। इन की उपासना के बाद देवी के लिए जो भोजन बनाया है वह नेवैद्य थाली में रखकर प्रार्थना करनी चाहिए। इन्हें गुड़हल के फूल अर्पित करने चाहिए। यह ज्ञान और बोध का प्रतीक है। जिसे जन्म जन्मांतर की साधना से पाया जाता है। यह पाकर साधक परम सिद्ध हो जाता है।
प्रथम शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्म चारिणी
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्
पंचम स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्
नवम् सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीतिर्ताः।
उक्तान्येति नामानि ब्रह्मणैव महात्मनाः।
हमारे मनीषियों ने साल में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ दिन अर्थात नवमी तक और इसी प्रकार ठीक छः मास बाद अश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी यानि विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक। सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है।
इन दिनों मनुष्य अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करता है। कुछ साधक तो पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों का जाप करते हैं। नवरात्रों में ५१ शक्ति पीठों पर भक्तों का सैलाब होता है।
आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा दिन में ही कर लेते हैं जबकि हमारे ऋषि मुनियों ने हजारों लाखों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के रहस्यों को जान चुके थे। दिन के कोलाहल के अलावा, दिन में सूर्य किरणें आवाज की तरंगों और रेड़ियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोकती हैं। इस का वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य किरणें जिस प्रकार रेडियो तरंग को रोकती हैं ठीक उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में दिन के समय रूकावट आती है। रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा ज्यादा है। मंदिरों में शंख और घंटे की आवाज के कंपन से दूर दूर तक वातावरण किटाणु रहित हो जाता है।
नवरात्र यानि नौ रातों का समूह, इस रूपक द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है। इसके भीतर ही निवास करती है जीवन शक्ति दुर्गा देवी है। इन मुख्य इंद्रियों में अनुशासन, स्वच्छता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र के नौ द्वारों को शुद्ध करने का पर्व र्है नवरात्र, नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए हैं। शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई हम रोज करते हैं पर अंग प्रत्यंगों की पूरी तरह भीतरी सफाई करने के लिए हर ६ माह के अंतर में सात्विक आहार, व्रत, शुद्ध बुद्धि, धर्म कर्म, सद्चरित्र और मंत्रों द्वारा मन मंदिर में देवी को स्थापित करने का पर्व नवरात्र महोत्सव।
ज्योतिष व आकाशीय विज्ञान के अनुसार चैत्र नवरात्रि के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य १२ राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं। अगले चक्र में पहली राशि मेष है। सूर्य और मंगल की राशि मेष है। दोनों अग्नि तत्व के हैं। इसी संयोंग से गर्मी आरंभ होती है। चैत्र नवरात्रि से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। इसी दिन से साल के राजा, मंत्री, सेनापति, कृषि के स्वामी ग्रह का निर्धारण होता है। अन्न, धन-धान्य, व्यापार, सुख शांति का आंकलन किया जाता है। नवरात्रि में नवग्रह पूजन का भी यही कारण है। मातृ आराधना को शुचिता से पूर्ण करें और कण-कण के लिए प्रार्थना करें यही सच्ची पूजा है।
डॉ. नीना छिब्बर
जोधपुर
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