पद्मश्री बॉम्बे जयश्री

उस्ताद अमीर खां कहते थे कि `गाना वो है जो रूह सुने और रूह सुनाए।' संगीत का ऐसा ही जादू करने वाला कर्नाटकी संगीत का सुविख्यात नाम यानी ५८ वर्षीय बाम्बे जयश्री रामनाथ। जयश्री शास्त्रीय संगीत और फिल्म संगीत दोनों में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं। इसीलिए उनके इस अनोखे और उत्तम योगदान के लिए साल २०२१ में गणतंत्र दिवस पर उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पद्मश्री प्राप्त होने की सूचना उन्होंने सब से पहले अपनी मां को दी थी, क्योंकि जयश्री अपने माता-पिता के सपनों को साकार करने के लिए जी रही थीं।

May 30, 2025 - 15:12
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पद्मश्री बॉम्बे जयश्री
Padmashri Bombay Jayshree

    संगीत एक ऐसी कला है, जिसके द्वारा मनुष्य अपनी संवेदना को पूरी तरह और सुंदरता के साथ व्यक्त कर सकता है। शास्त्रीय संगीत भारतीय संगीत का मुख्य अंग है, जो शब्द प्रधान न हो कर, ध्वनि प्रधान है। जिसमें स्वर के आरोह-अवरोह को ही अधिक प्राधान्य दिया जाता है। उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत का उदगम और उसकी परंपरा के साथ कर्नाटकी संगीत कई मामलों में साम्य रखते हुए रागों की श्रंखला, प्रस्तुत करने की शैली में भिन्नता रखता है। दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत का मुख्य स्वरूप कर्नाटक संगीत है। भारतीय संगीत में जो सामान्य रूप से होता है, उसमें भी ताल और राग ही मुख्य होता है। यह ज्यादातर भक्ति संगीत में देखने को मिलता है, जो देवी-देवताओं को संबोधित कर के गाया जाता है। कर्नाटक शैली के विषयों में मंदिरों का वर्णन,पूजा-अर्चना, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति शामिल है। पुरंदर दास को कर्नाटक शैली के जनक के रूप में जाना जाता है। ञबकि मुथुस्वामी दीक्षितावतार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की त्रिमूर्ति कहा जाता है।
उस्ताद अमीर खां कहते थे कि `गाना वो है जो रूह सुने और रूह सुनाए।' संगीत का ऐसा ही जादू करने वाला कर्नाटकी संगीत का सुविख्यात नाम यानी ५८ वर्षीय बाम्बे जयश्री रामनाथ। जयश्री शास्त्रीय संगीत और फिल्म संगीत दोनों में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं। इसीलिए उनके इस अनोखे और उत्तम योगदान के लिए साल २०२१ में गणतंत्र दिवस पर उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पद्मश्री प्राप्त होने की सूचना उन्होंने सब से पहले अपनी मां को दी थी, क्योंकि जयश्री अपने माता-पिता के सपनों को साकार करने के लिए जी रही थीं।
बाम्बे जयश्री के नाम से जानी जाने वाली इस कर्नाटकी गायिका को `बाम्बे' विशेषण के बारे में पूछने पर पता चला कि एक बार जब वह किसी प्रोग्राम के लिए दक्षिण भारत जा रही थीं तो सुब्बुडु नाम के विवेचक ने अपने गीत को हाईलाइट करते हुए बहुत सुंदर समीक्षा की थी। उस समय वहां जयश्री नाम के तमाम लोग थे, इसलिए उन्होंने जयश्री रामनाथ को `बाम्बे जयश्री' कहने का निश्चय किया और तब से बाम्बे जयश्री नाम ही उनकी पहचान बन गया।
जयश्री रामनाथ २८ साल की थीं, जब उन्होंने कर्नाटकी संगीत में पूर्णतया एक प्रगतिशील कैरियर की शुरुआत की थी। वैसे उन्होंने बचपन से ही कर्नाटकी संगीत में गाना शुरू कर दिया था। जयश्री रामनाथ में संगीत की मजबूत नींव परिवार के संगीतमय वातावरण के कारण पड़ी। माता-पिता दोनों ही संगीत के शिक्षक थे, इसलिए समग्र महाराष्ट्र और गुजरात में भजन और फिल्मी संगीत के उत्सवों और कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हुए पंचरंगी बाम्बे में पलीबढ़ीं। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत, `लाइट म्युजिक' शैलियां तथा फिल्मी गीत सीखने का अलौकिक आनंद भी प्राप्त किया। जयश्री ने हिंदी, मलयालम, कन्नड़, तमिल, तेलुगु जैसी अनेक भाषाओं में गाने गाए हैं। बचपन में `लग जा गले' और अन्य गानों की प्रैक्टिस करतीं तो लताजी कोई खास तरह का गाना कैसे गाती हैं, इसकी चर्चा भी करतीं। रेडियो पर सुबह साढ़े ७ बजे आने वाला 'संगीत सरिता' कार्यक्रम पूजा की तरह नियमित सुनतीं।
बचपन और कालेजकाल के दौरान ली गई कर्नाटकी संगीत की तालीम उन्होंने लगभग गुप्त रखी थी। उन्होंने तमाम भाषाओं में बोर्नवीटा, मीलमेकर और रेक्सोना जैसी कंपनी के गुणगान करने वाले और विशेषताएं बताने वाले सोलो या युगल जिंगल्स गाए हैं। उसी दौरान उन्होंने कर्नाटकी संगीत की मुश्किल तालीम बाम्बे के प्रख्यात गुरु टी. आर. बालामणी से ली। वह रफी, लता और आशा के फिल्मी गानों को बहुत पसंद करती थीं और कर्नाटक म्युजिक में स्टारडम होने के बावजूद अपनी इस पसद को बिना किसी हिचक के बनाए रखा। मेहंदीहसन और फरीदाखानुम भी उनकी उतनी ही फेवरिट हैं। अपनी तारस्वरीय परफेक्ट आवाज के लिए वह भारतीय शास्त्रीय संगीत की तालीम और अपनी बचपन की संगीतमय पृष्ठभूमि को क्रेडिट देती हैं। उनके एल्बम `वात्सल्यम' और `अग्नि' उनकी अद्भुत सफलता की कहानी कहते हैं। फिल्म `लाइफ आफ पी' में गाया उनका गाना एक मां और बेटे के बीच का प्रगाढ़ प्थार दर्शाता है। वह अपने कांसर्ट कैरियर और सालों से गाए जाने वाले फिल्मी गानों के बीच कोई विरोधाभास नहीं देखतीं। उनके असंख्य एल्बम हैं। वह आल इंडिया रेडियो की `ए' ग्रेड की कलाकार हैं। वह दूरदर्शन पर अक्सर आती रहती हैं। श्रृति की शुद्धता जयश्री रामनाथ की गायकी की गुणवत्ता साबित करती है, जिसमें चिंतनशीलता भी है। उनकी गायकी सौंदर्यलक्षी है। वह वीणा वादन भी जानती हैं।
आवाज की स्थिरता और उसमें खनकते गुंजन की वजह से उनकी बराबरी एम.एस.सुब्बालक्ष्मी से होती रहती है। जबकि संगीत समारोह में उनकी शानदार आवाज उनकी उपस्थिति दर्ज कराती है। गाते समय जयश्री के हाथ बिना मतलब नहीं हिलतेडुलते और चेहरे पर भी कोई खास हावभाव नहीं होता, जो उनकी शैली को हानि पहुंचाए। उनमें अपना एक संतुलित स्वीकार देखने को मिलता है। गाते समय अक्सर वह अपने ही राग के सौंदर्य में तद्रुप हो कर खो जाती हैं। वह दृढ़तापूर्वक कहती हैं कि संगीतकार गायकी द्वारा अपनी संवेदनाओं को रसिक श्रोताओं में संक्रमित कर सकता है। श्रोता गायक एक जैसे लगाव का अनुभव कर के भावविभोर हो सकते हैं और इस प्रवाह में तैरते हुए आनंदसागर में डूब सकते हैं।
आज जयश्री निश्चित रूप से कर्नाटकी संगीत के अग्रणी सितारों में एक हैं, जिन्हें बहुत चाहने वाले हैं। वह देश-विदेश में रहने वाले युवा भारतीयों में भारतीय संगीत का प्रचार करने का भी काम करती हैं। वह टी.एम.कृष्ण के साथ संगीत के इतिहास और परंपरा की गहरी समझवाले भावी संगीतकारों और संगीतरसिकों को तैयार करने की पहल से भी जुड़ी हैं। उन्होंने जिस `मृतका' संस्था की स्थापना की है, उसकी `वॉइसीजविधीन' नाम की कॉफी टेबल पुस्तक भी प्रकाशित कराई है, जो कर्नाटक संगीत की सात महा प्रवीण व्यक्तियों को दी गई श्रद्धांजलि है। वह `स्वानुभव' नाम का एक वाषक कार्यक्रम चलाती हैं, जो विद्यार्थियों को भुला चुकी गुरु परंपरा को फिर से जीवंत कर के महान प्राचीन संगीतकारों का परिचय कराती है। टी.एम.कृष्ण और जयश्री जिसमें काम करते हैं, उस `रीयल इमेज' कंपनी द्वारा जानकी `मार्गाजीरागम' फिल्म के साथ भी जुड़े हैं, जो कर्नाटकी म्युजिक कांसर्ट की ऑफबीट फिल्म है। 
जयश्री की सब से बड़ी संपत्ति उनका परस्पर प्यार से जुड़ा परिवार है। उनके पिता एन.एन.सुब्रमण्यम एक शौकीन गायक और शिक्षक थे, जयश्री को सफल गायक बनते देखने के लिए अब वह जीवित नहीं हैं। जयश्री हमेशा अपनी मां सीता का स्वप्न साकार करने में लगी रहती हैं। उनके दोनों भाई बलराजन और साबेश उनके मजबूत आधारस्तंभ हैं। भाभी जानकी साबेश का कहना है कि `जरूरत पड़ने पर उनके दोनों भाई सारा काम छोड़कर दौड़ पड़ेंगे।' दोनों भाई जयश्री को उचित सलाह सूचना दे सकें, इसके लिए पर्याप्त कर्नाटकी संगीत सीखा है। दोनों कंपनी के एक्जीक्यूटिव हैं और खाली समय में अपने संगीत का व्यवसाय करते हैं। साबेश ने संगीत शिक्षा की पारंपरिक परंपरा को आगे बढ़ाया है। छुट्टियों में जयश्री का पूरा परिवार किसी खास पर्यटन स्थल पर मिलता है। उस समय उनके बीच ज्यादातर शास्त्रीय संगीत या फिल्म संगीत की ही बातों पर चर्चा होती है। जयश्री के पति रामनाथ एक फाइनेंस प्रोफेशनल और संगीत के असली प्रेमी हैं, जो हिंदी और बंगाली फिल्म के गाने गाने का आनंद लेते हैं। उनका बेटा अमृत रामनाथ उनका शिष्य भी है, जो वेस्टर्न क्लासिकल म्युजिक के अलावा वायलिन और पियानो भी बजाता है।
एक संगीतकार के रूप में जयश्री की प्रगति और सिद्धि के लिए सब से अधिक श्रेय परदे के पीछे रह कर प्रेरणा देने वाली उनकी मां सीता हैं। पति की अकाल मौत के बाद आजीविका के लिए वह संगीत सिखाने लगी थीं। जयश्री मात्र तीन साल की थीं, तभी उन्हें लग गया था कि जयश्री में संगीत की अनोखी प्रतिभा छुपी है। बगल के कमरे में जब वह बड़ेबड़े विद्यार्थियों को संगीत सिखा रही होतीं तो 'रजनीवर्णम' की बारीकियों को जयश्री पकड़ लेती थीं।  सीता की संगीत की अभिरुचि असाधारण रूप से उदार दृष्टिवाली थी। वह जयश्री की संगीत की प्रतिभा को उजागर करना चाहती थीं। मां जब कभी किसी उत्तम संगीतकार के गुरु को सुनती तो जयश्री को उनके पास सीखने की संभावनाओं का पता करती। उनका कहना था कि वह शिक्षक जयश्री जैसी प्रतिभाशाली बालक को सिखाने के लिए उथ्सुक है? इसीलिए जयश्री महावीर जयपुरवाले और गौतम मुखर्जी जैसे गुरुओं से भारतीय संगीत और टी.एम.बालमणी और भरत नाट्यम गुरु कल्याण सुंदरम जैसे गुरु से कर्नाटकी संगीत सीख सकीं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि उनके तीनों बच्चे संगीत की अनेक प्रतियोगिताओं में इनाम जीतने के कारण या मां हिंदी फिल्म के गायकों की प्रशंसक रहीं, बोलने के पहले गाना शुरू कर दिया था।
पद्मश्री के अलावा अन्य ३१ प्रतिष्ठित पुरस्कार बाम्बे जयश्री के नाम हैं, जो हमारे देश के लिए गौरव की बात है।कोलकाता में पैदा हुई और मुंबई में पलीबढ़ी और चेन्नई में रहती इस गायिका ने १९८२ में कैरियर की शुरुआत की तो २००५ में 'संगीत चूड़ामणी', २०१४ में 'विश्व कला भारती अवार्ड' या 'संगीत वेदांत' जैसे नामांकित अवार्ड्स उन्हें मिले हैं। वह खुश हैं कि बेहरीन से सिडनी या टोरंटों से सिंगापुर की उनकी यात्रा चक्रवात की तरह चलती रहती है।

वीरेंद्र बहादुर सिंह 
नोएडा, (उ.प्र.)

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