स्किन बॉन्ड – दिल से भारतीय अमेरिकी कवि और लेखक एडगर एलन पो
जब बॉन्ड आठ साल के थे, तब उनके माता-पिता अलग हो गए, जिससे उन्हें १९४२ से १९४४ तक अपने पिता के साथ दिल्ली में रहने का मौक़ा मिला। बॉन्ड इस अवधि को अपने जीवन का सबसे यादगार समय बताते हैं क्योंकि उनके पिता उनके साथ बहुत करीबी रिश्ता रखते थे। वे कहते हैं कि उनके पिता उनके लिए एक बेहतरीन साथी की तरह थे, जो उन्हें सिनेमा, किताबों की दुकानों और पुरानी इमारतों में ले जाते थे। १९४३ में, अपने पिता द्वारा घर पर ही पढ़ाई करने के एक साल बाद, बॉन्ड शिमला के बिशप कॉटन स्कूल गए

रस्किन बॉन्ड को एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक के तौर पर जाना जाता है। वह गुलाम भारत में पैदा हुए अंग्रेज थे। लेकिन उत्तराखंड और मसूरी की खूबसूरती ने इनको हमेशा के लिए भारतीय बना दिया। १९ मई १९३४ को हिमाचल प्रदेश के कसौली में एंग्लो-इंडियन माता-पिता अलेक्जेंडर बॉन्ड और एडिथ क्लार्क के घर जन्मे रस्किन बॉन्ड ने बचपन में एक गतिशील जीवनशैली जी। उन्होंने अपने बचपन के पहले छह साल जामनगर में बिताए जहाँ उनके पिता शाही बच्चों को पढ़ाते थे। उसके बाद, जब उनके पिता को रॉयल एयर फ़ोर्स में नौकरी मिल गई तो वे देहरादून चले गए।
जब बॉन्ड आठ साल के थे, तब उनके माता-पिता अलग हो गए, जिससे उन्हें १९४२ से १९४४ तक अपने पिता के साथ दिल्ली में रहने का मौक़ा मिला। बॉन्ड इस अवधि को अपने जीवन का सबसे यादगार समय बताते हैं क्योंकि उनके पिता उनके साथ बहुत करीबी रिश्ता रखते थे। वे कहते हैं कि उनके पिता उनके लिए एक बेहतरीन साथी की तरह थे, जो उन्हें सिनेमा, किताबों की दुकानों और पुरानी इमारतों में ले जाते थे। १९४३ में, अपने पिता द्वारा घर पर ही पढ़ाई करने के एक साल बाद, बॉन्ड शिमला के बिशप कॉटन स्कूल गए और वहाँ पढ़ने के प्रति उनका प्यार पनपा। उन्हें बच्चों की ज्यादा किताबें पढ़ने का मौका नहीं मिला और इसलिए, उन्होंने सीधे क्राइम और थ्रिलर से शुरुआत की और फिर डिकेंस, स्टीवेंसन और जेबी प्रीस्टली की क्लासिक्स की ओर बढ़ गए। और जब बॉन्ड को अपने स्कूल में मज़ा आने लगा, तो उन्हें अपने पिता की मौत की दुखद खबर मिली, जिससे उनका दिल टूट गया। उन्होंने कहा कि उनके सामने एक बड़ा खालीपन आ गया था और उन्हें लगभग तुरंत ही पता चल गया कि उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया है, और आगे देखने के लिए कुछ भी नहीं है, बिल्कुल कुछ भी नहीं है। जब बांड के पिता की मृत्यु हुई तब उनकी उम्र मात्र दस साल थी। वह ब्रिटेन में अपनी मौसी के पास चले गए और वहां २ साल तक रहे। जिसके बाद उनके रिश्तेदार उन्हें कट्टर अंग्रेज बनाना चाहते थे। लेकिन उस मासूम बच्चे को सादा जीवन बिताना काफी पसंद था। इस पर रिश्तेदार की फटकार पड़ती जिससे वे गुमसुम रहने लगे। इसी अकेलेपन को दूर करने के लिए वे जब हिंदुस्तान की वादियों में आये तो यहीं के होकर रह गये। उस नाम से आज पूरी दुनिया वाकिफ है। वो नाम है रस्किन बॉन्ड। मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड।
महज १६ साल की उम्र में रस्किन बॉन्ड ने अपना पहला उपन्यास लिखा था। हाईस्कूल पास करने के बाद वह अन्य युवाओं की तरह अपने जीवन में कुछ बढ़कर और बेहतर चाहते थे। इस दौरान उन्होंने लंदन में अपना पहला उपन्यास `रूम ऑन द रूफ' लिखना शुरू कर दिया। जब रस्किन २१ साल के थे तब उनका उपन्यास प्रकाशित हुआ था।
साल १९५६ में रस्किन ने अपने इस उपन्यास के लिए `जॉन लेवेनिन राइस पुरस्कार' जीता था। यह सम्मान उसे दिया जाता है, जो ३० वर्ष से कम उम्र के ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का लेखक होता है। इस पुरस्कार में उन्हें जो पैसे मिले उनका उपयोग उन्होंने भारत में देहरादून में बसने के लिए किया। इसके अलावा उन्होंने जीवन यापन के लिए देहरादून के कई समाचार पत्रों में प्रâीलांसिंग का काम किया। यहां पर वह अपने दत्तक परिवार के साथ रहने लगे जहाँ उनका पालन पोषण उनकी माँ और सौतेले पिता मिस्टर हैरिसन द्वारा किया गया। भारतीयता के रंग में रंगे बांड को पक्का अंग्रेज बनाने में मिस्टर हैरिसन कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। इसलिए वह अक्सर उन की पिटाई भी कर देते थे। तब एक दिन विरोध में अपने संरक्षक पर हाथ उठा वो घर से भाग गये। यह सब कुछ बहुत दुखद था। लेकिन इन सब विपरीत परिस्थितियों ने उनके हृदयस्पर्शी लेखन के लिए अच्छी जमीन तैयार कर ली। `रुम ऑन द रूफ' इन्हीं घटनाओं की परिणति है। अब उन्हें यह लगने लगा कि उन्हें पूरी तरह से लेखक बनने के लिए प्रयास शुरू करना चाहिए और इसके लिए उन्हें लगा कि मसूरी ज्यादा उपयुक्त जगह रहेगी तो वे १९६३ में वे पूर्णकालिक लेखक बनने मसूरी चले गए। मसूरी में स्थित रस्किन के घर का नाम `आईवी कॉटेज' है।
रस्किन बॉन्ड अपनी गर्मी की छुट्टियां देहरादून में अपनी दादी के घर पर बिताते थे। उनकी दादी बहुत अच्छी कुक थीं। और वे रस्किन का बहुत ख्याल रखती थीं। उनके बाल साहित्य अपने बचपन की स्मृतियां और खट्टे मीठे अनुभव से प्रेरित है। `क्रेज़ी टाइम्स विद अंकल केन' में उनकी लिखी हुई कहानियां आज भी बच्चों को बहुत पसंद आती है। इसमें अंकल केन उनकी दादी के भतीजे थे जो उनसे मिलने अक्सर आया करते थे। ब्लू अंब्रेला, द चेरी ट्री नाम की कहानियां भी उनकी बाल अनुभूतियों की सच्ची परिचायक है। उनकी कहानियों के किरदार रस्टी और अंकल केन बच्चों के बीच आज भी बहुत प्रसिद्ध हैं।
रस्किन बॉन्ड को बाल साहित्य में उनके योगदान के लिए १९९९ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। २०१४ में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
`अवर ट्रीज स्टिल ग्रोज इन देहरा' के लिए १९९३ में उन्हें प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। यह किताब १४ बेहतरीन कहानियों का संकलन है। उनके ऐतिहासिक उपन्यास `ए फ्लाइट ऑफ़ पीजंस' जो १८५७ के विद्रोह पर आधारित है, पर जुनून नाम की हिंदी फिल्म बन चुकी है। उनके उपन्यास `सुसेन के सेवन हस्बैंड' पर हिंदी फिल्म सात खून माफ बन चुकी है। रस्किन बॉन्ड की कुछ विख्यात किताबों में `ए फ्लाइट ऑफ पीजन्स', `घोस्ट स्टोरीज प्रâॉम द राज', `दिल्ली इज नॉट फॉर', `इंडिया आई लव', `पैंथर्स मून एंड दर स्टोरीज' और ‘रस्ट’ के नाम से उनकी आत्मकथा की सीरीज है। रस्किन बॉन्ड ने अब तक ५०० से भी ज्यादा कहानियां उपन्यास और कविताएं लिखी हैं। उनकी ज्यादातर रचनाएं बच्चों के लिए हैं। रस्किन बांड के पसंदीदा लेखक रविंद्र नाथ टैगोर, रूड्यार्ड किपलिंग और चार्ल्स डिकेंस हैं।
अपनी दादी के बारे में रस्किन बांड ने एक कविता भी लिखी है - ग्रैंडमा क्लांइब्स ए ट्री। आठ बरस की उम्र से शुरू कर ६२ बरस की उम्र तक कितनी भी ऊंचाई के किसी भी प्रकार के पेड़ पर आसानी से चढ़ जाने वाली दादी मां के अनोखे शौक के बारे में पढ़कर लोग हैरान हो जाते हैं। लेकिन एक बार पेड़ पर चढ़ जाने के बाद पेड़ से ना उतर पाने वाली एक दुर्घटना के बाद उनके के पिता द्वारा उनकी मां की इच्छा पर एक ट्री टॉप हाउस तैयार करवा दिया और इस घटना से वे बहुत प्रभावित हुए।
बच्चों के लिए लिखी अपनी एक और कहानी ‘द चेरी ट्री’ में अच्छे-बुरे अनुभवों को झेलते हुए एक चेरी के बीज की फलदार पेड़ बन जाने तक की जीवन यात्रा को देखते हुए आठ साल के नन्हे राकेश के बालमन में उपजी यह पंक्तियां चकित कर देती हैं कि भगवान होने पर शायद ऐसी ही अनुभूति होती होगी।
`एक नन्हा दोस्त' कहानी के शीर्षक से लगता है कि ये जरूर किसी छोटे बच्चे से उनकी दोस्ती की कहानी होगी। लेकिन नहीं यह तो एक नन्हा चूहा है जो अकेले कमरे में काम से लौटे थके हारे रस्किन का इंतजार करने वाला साथी है। मकान मालकिन के नाराज होने के बावजूद भी रस्किन उसके लिए फर्श पर ब्रेड और चीज का चूरा बिखरा कर रखते हैं। सुखद लगता है रस्किन का उसके भाग्य पर ईर्ष्यालु हो जाना, जब कमरा खाली कर जाने से पहले चूहे को एक चुहिया का साथ मिल जाता है। ‘टोपाज’ की रसभरे होठों वाली हमीदा, ‘द आईज हैव इट’ में लंबे बालों में महकती खुशबू वाली नेत्रहीन लड़की, ‘हैंडफुल आप नट्स’ की इंदु, ‘द रूम आन द रूफ’ की मिसेज मीना कपूर हो या कि फिर ‘टाइम स्टॉप्स एट शामली’ में लेखक की पुरानी परिचिता मिस्टर दयाल की पत्नी सुशीला के लिए बरसों पहले वाला ज्यागा प्यार। ‘द नाइट ट्रेन एट देवली’ पढ़कर लगता है कि प्लेटफार्म पर बांस की टोकरी बेचती रस्किन से मिली उस अनाम लड़की की बेहद काली आंखों की अधीरता ही उनके प्रेम की असली नायिका है। अपनी एक बेहद लोकप्रिय कहानी `ब्लू अंब्रेला' में दुकानदार रामभरोसे के लिए लिखे संवाद 'मेरा भी दिल है और मैं इसकी खूबसूरती को अपनाना चाहता हूँ' की तरह ही रस्किन बांड ने भी पहाड़ों की रानी मसूरी और देहरादून की वादियों को हमेशा के लिए दिल में रख लिया है और अपनी कृतियों में भी बांड के चरित्र इसी तरह के हैं जो अपने से लगते हैं अपनों में से निकले ही लगते हैं जिससे आप उनसे दिल से जुड़ जाते हैं और खुद भी उस कथा के पात्र बन जाते हैं। यही उनके लेखन का जादू है।
रस्टी बॉन्ड द्वारा निर्मित एक और लोकप्रिय काल्पनिक चरित्र है। एक १६ वर्षीय अनाथ एंग्लो-इंडियन लड़का जो देहरादून में रहता है और उसका कोई वास्तविक परिवार नहीं है। रस्टी का चरित्र जीवन, रिश्ते, खुशी और प्यार के बारे में उलझनों से जूझने पर एक किशोर का दृष्टिकोण प्रदान करता है। वह अपने संरक्षक जॉन हैरिसन के साथ रहना शुरू करता है, जो सख्त और कठोर है। रस्टी अपने संरक्षक के नियमों और आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य है और अवज्ञा करने की हिम्मत नहीं करता है जिससे वह असहाय महसूस करता है क्योंकि वह जानता है कि अगर वह ऐसा करता है, तो उसे बेंत से पीटा जाएगा। उसका कोई असली दोस्त नहीं है और वह खुद को देहरादून के यूरोपीय हिस्से में अपने संरक्षक के घर में बहुत अकेला पाता है। वह भारतीय संस्कृति और जीवन शैली को अपनाना चाहता है। यह चरित्र उनके जीवन पर आधारित लगता है।
एक किस्सा उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार उनसे किसी ने पूछा कि आप अगले जन्म में क्या बनना चाहते हैं? इस पर उनका जवाब था कि मैं तोता बनकर किसी पेड़ पर रहना चाहूँगा। ऐसा है उनका प्रेम हरियाली और पेड़-पौधों के प्रति, उनकी हरियाली से आसक्ति इस कदर उनके लेखन में रच-बस गई है कि ‘अवर ट्रीज स्टिल ग्रोज इन देहरा’ के लिए उन्हें प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी अवॉर्ड से भी नवाजा गया। यह किताब १४ बेहतरीन कहानियों का संकलन है। जिनमें अपने पिता द्वारा लगाए गए कटहल और आम-नींबू के पेड़ों वाले पुराने देहरादून शहर को उन्होंने याद किया है। एक मर्मस्पर्शी कविता भी किताब के आखिरी पन्ने पर उन्होंने लिखी है।
अविवाहित रहने के सवाल पर रस्किन मजेदार जवाब देते हैं कि अभी देर कहां हुई है? क्या आपने कभी किसी लड़की से प्यार किया है? और वे चुटीले अंदाज में कहते हैं- `हम तो बहुत लड़की से प्यार किया, मगर वो हमको वापिस नहीं प्यार किया और जब किया तो बहुत लेट हो गया'। रस्किन का हिंदी बोलने का यही अंदाज है। अच्छी बात यह है कि वे अभी लिख रहे हैं। हम सब उनके शतायु होने की प्रार्थना करते हैं और उनके जन्म दिन १९ मई पर दिल से याद करते हैं।
रचना दीक्षित
ग्रेटर नोएडा
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